Breaking News

23 दिसंबर जन्मदिन पर विशेष :शब्द की साख को समृद्ध बनाया केशव चंद्र वर्मा ने :डॉ० भगवान प्रसाद उपाध्याय



प्रयागराज।। साहित्य और संगीत के अप्रतिम  शलाका पुरुष  केशव चंद्र वर्मा ने सृजन कर्म को अपना ध्येयपथ चुना तो वही संगीत को जीवन जीने की कला के रूप में अंगीकार किया। संगीत और साहित्य का अद्भुत पारखी उन जैसा बिरला ही होगा । अस्सी के दशक में साहित्यिक आयोजनों और गतिविधियों में मेरी सक्रिय भागीदारी हो चुकी थी और कई समृद्ध साहित्यिक आयोजनों का साक्षी बन चुका था। हिंदी साहित्य सम्मेलन और  हिंदुस्तानी अकादमी जैसी संस्थाओं  में निरन्तर कार्यक्रमों  में  आने जाने से विभिन्न साहित्य साधकों के सानिध्य में आने का सौभाग्य मिल चुका था। जिन दिनों सरस्वती शिशु मंदिर करछना में प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत था , उन दिनों मेरी  त्रैमासिक पत्रिका  साहित्यांजलि का प्रकाशन भी शुरू हो चुका था , और प्रत्येक अवकाश के दिनों में नगर में आकर जाने-माने साहित्यकारों और कवियों लेखकों के  सानिध्य में आने का सौभाग्य मिल चुका था। नवंबर 83 में साप्ताहिक नवांक  में आने के बाद मेरी गतिविधियों में  वृद्धि और सुप्रसिद्ध साहित्यकारों कवियों लेखकों से मिलने की श्रृंखला अटूट हो गई।

 एक दिन नवांक  कार्यालय में आकाशवाणी के महेंद्र भैया ( महेंद्र नाथ  तिवारी) पधारे। उनके हाथ में एक आमंत्रण पत्र था जो उन्होंने मुझे सीधे देकर कहा कि इसमें आपको आना है।  वर्मा जी ने विशेष रूप से आपको बुलाया है। आमंत्रण पत्र खोल कर देखा तो श्रद्धेय  विजयदेव नारायण साही के जन्मोत्सव  के बहाने एक गोष्ठी का आयोजन हिंदुस्तानी अकादमी में किया जा रहा था। आदरणीय  केशव चंद्र वर्मा जी उसके मुख्य आयोजक थे। निर्धारित तिथि के दिन हिन्दुस्तानी  एकेडमी  सभागार में पहुंचा तो बीचो-बीच तखत पर कुछ ख्यातिलब्ध साहित्यकार और सामने भारतीय पद्धति से बैठने की व्यवस्था के अनुरूप अनेक चिर परिचित साहित्यकार उपस्थित थे। मैं भी उन लोगों के बीच बैठ गया और पूरे आयोजन का  विधिवत  समाचार बनाकर उसी दिन शाम को श्री वर्मा जी को दे दिया। उन्होंने उसमें कुछ संशोधन किया और विभिन्न समाचार पत्रों में भेज दिया। आयोजन समाप्त हो गया तो मुझसे उन्होंने कहा - कल सुबह घर पर आओ , तुमसे कुछ बात करनी है। वैसे तो इससे पूर्व कई बार मिल चुका था , किंतु उनके आमंत्रण की गंभीरता को मैं समझ चुका था इसलिए दूसरे दिन सुबह दस बजे उनके आवास पर टैगोर टाउन पहुंच गया।







  जाते ही उन्होंने मुझे ऊपर अपने अध्ययन कक्ष में स्नेह पूर्वक   बैठाया ,  फिर मुझसे उन्होंने  पूछा  कि - अपने समाचार पत्र कार्यालय में कितने बजे  तुम्हारा  जाना होता है ?  मैंने उनसे कहा - मुझे दोपहर  के बाद  दो  बजे से शाम  सात  बजे तक रहना पड़ता है । सुबह  दिनचर्या  के बाद एक  बजे तक लेखन और अध्ययन में व्यतीत होता है। श्री  वर्मा जी ने अधिकार पूर्वक कहा कि - कल से तुम  तुम  घंटे मेरे साथ बैठोगे और मेरे लेखन कार्य में सहयोग करोगे। काम की अधिकता के कारण कई पुस्तकें अधूरी पड़ी हैं और छायानट  पत्रिका के लिए भी सामग्री एकत्र करना पड़ता है। तुम रहोगे तो मुझे बड़ी सहायता मिलेगी।यह मत समझ लेना कि मैं तुम्हें निशुल्क सेवा के लिए आमंत्रित कर रहा हूँ। तुम्हें उचित पारिश्रमिक मिलेगा। मैंने बहुत विनम्र भाव से कहा -  आदरणीय पारिश्रमिक बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, अपितु आपका सानिध्य मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होगा।

  मैं कल से नियमित रूप से आपके यहां  दस  साढ़े  दस  बजे  तक आ जाऊंगा और  एक  बजे  से  पहले ही  चला जाऊंगा ।वार्तालाप के क्रम में ही उन्होंने अपनी बेटी वंदिता वर्मा को आवाज देकर कहा था कि चाय  मेरे पास भी पहुंचा देना। तब तक चाय और नमकीन बिस्किट आदि आ चुका था जलपान के बाद उन्होंने  छायानट की एक प्रति मुझे भेंट की और कहा यह पत्रिका संगीत नाटक अकादमी  लखनऊ  से निकलती है , इसके संपादन का दायित्व मुझे मिला हुआ है। तुम इसमें मेरा सहयोग करोगे , और हां कल जो शाही जी के आयोजन की खबर बनी थी उसे थोड़ा संशोधित कर दे रहा हूँ  , इसे धर्मयुग में अपने नाम से भेज दो।  उन दिनों साप्ताहिक धर्मयुग और साप्ताहिक हिंदुस्तान की प्रतियां  लगभग  सभी  साहित्यकारों   लेखकों  के यहां  हाथों-हाथ ली जाती थीं। मैं उस का नियमित पाठक श्री श्याम कुमार जी के यहां जनवरी 80 से ही बन चुका था।

दूसरे दिन धर्मयुग में वह समाचार भेजा गया और वह सचित्र उसमें प्रकाशित भी  हुआ। मैंने अपने कई समवयस्क साहित्यिक मित्रों को उसे दिखाया। अधिकांश ने मेरी पीठ थपथपाई ,  क्योंकि उन दिनों धर्मयुग जैसी पत्रिका में स्थान पाना बड़ी बात थी।अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए मेरा नियमित लेखन चल रहा था और यह एक सुखद अवसर था जो मुझे अनायास ही प्राप्त हो गया था। छायानट  के लिए आई हुई रचनाओं में संशोधन परिमार्जन तथा श्री वर्मा जी की पुस्तकों की पांडुलिपि तैयार करने में सहयोग करना  यही  क्रम चलने  लगा और दो   ढाई  घंटे कैसे व्यतीत हो जाते थे, इसका आभास ही नहीं होता था।बीच-बीच में महेंद्र भैया भी आकर मेरी सुधि लिया करते थे और उन्हीं दिनों मुझे आकाशवाणी के कार्यक्रम में भी अपनी वार्ता प्रस्तुत करने का अवसर मिलने लगा। 

श्री वर्मा जी की पुस्तक शब्द की  साख और कोशिश संगीत समझने की  दोनों की पांडुलिपियाँ  मेरे द्वारा ही तैयार की गईं।  शब्द की साख में उन्होंने रेडियो लेखन और रेडियो  प्रहसन   का विवरण  प्रस्तुत किया। यह  एक उल्लेखनीय पुस्तक है जिसे लोकभारती  प्रकाशन  द्वारा  प्रकाशित किया गया। एक और   उल्लेखनीय ग्रन्थ  सुमिरन को बहानो नामक पुस्तक में उन्होंने अपने संस्मरणों  को विविध रुपों  में वर्णित किया  है।  कोशिश संगीत समझने की, पुस्तक में संगीत के विविध आयामों का वर्णन किया गया है।

केशव कालीधर के नाम से प्रारंभिक लेखन में उन्होंने हास्य व्यंग्य विधा की कई पुस्तके लिखीं। जब श्री वर्मा जी की पुस्तक कोशिश संगीत समझने की। पांडुलिपि तैयार हो रही थी उनके आदरणीय दामाद श्री गिरीश वझलवार जी भी यदा-कदा आया करते थे और फिर संगीत पर सार्थक चर्चा हुआ करती थी। वर्मा जी की पुत्री वंदिता वर्मा  विश्वविद्यालय में अध्यापिका हो गई थीं  और उनकी पत्नी  श्रीमती सरोज वर्मा  के निधन के पश्चात उनका एकाकीपन दूर करने के लिए उनके सानिध्य में कई शुभेक्षु और साहित्यकार निरंतर आते जाते रहते थे।

 इसी क्रम में एक दिन राग दरबारी के सुप्रसिद्ध लेखक पंडित श्री लाल शुक्ल जी पधारे और उनके यहां वह अतिथि के रूप में रहे। श्री वर्मा जी की दूसरी पुस्तक शब्द की साख की पूरी पांडुलिपि मेरे ही लेखांकन में तैयार हुई और वह लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित हुई। कभी-कभी बाई का बाग स्थित चुन्नू बाबू के प्रेस में भी मुझे जाना पड़ता था किंतु मेरे  आश्चर्य का ठिकाना तब नहीं रहा जब वह पुस्तक प्रकाशित होकर आई और उसकी भूमिका में आदरणीय वर्मा जी ने मेरा विशेष रूप से उल्लेख किया था। पूरी पांडुलिपि तैयार होने के बाद उन्होंने भूमिका कब लिखी और किस समय श्री दिनेश ग्रोवर और रमेश ग्रोवर के पास पहुंचाया , इसकी  मुझे भनक तक नहीं लगी। पुस्तक प्रकाशित हो गई और उनका स्नेहिल आशीर्वाद मुझे मिला।इसके पश्चात मैंने एक आयोजन में उन्हें अतिथि के रूप में आमंत्रित किया  तो वह सहज ही उसे स्वीकार करके  मेरे  द्वारा आयोजित राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान समारोह को गौरवान्वित करने के लिए मेला क्षेत्र में पहुंचे। उनकी कई  पुस्तकों को इस बीच  पढ़ने का मुझे अवसर मिला और उनके साथ कई वर्षों तक काम करने का एक सुखद अनुभव भी  मिला।

श्री वर्मा जी अपने सानिध्य में आने वाले नवोदित लेखकों और रचनाकारों को बहुत प्रोत्साहित करते थे। समय-समय पर उनकी आर्थिक सहायता भी किया करते थे और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन के लिए प्रेरित करते रहते थे। उन्हीं के सौजन्य से सुप्रसिद्ध साहित्यकार  उपेंद्र नाथ अश्क जी का साक्षात्कार लेने का सौभाग्य मुझे मिला था। इसके साथ ही परिमल के जो सम्मानित साहित्यकार थे, उनके बारे में भी जानने और सुनने का सुखद अवसर मिला।आकाशवाणी में कार्यक्रम के दौरान अनेक विभूतियों से आत्मीय संबंध हो गए उसमें श्रद्धेय  कैलाश गौतम जी  ( गोवर्धन भैया) नरेश मिश्र जी  (राम नरेश) युक्ति भद्र  दीक्षित  (मतई  काका) और पंडित विष्णु कांत मालवीय जी प्रमुख रहे।आकाशवाणी के संपर्क में आने के बाद वहां हिंदी अधिकारी के रूप में सेवाएं दे रहे सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार कौशल पांडेय ज्ञ जी से भी आत्मीयता बढ़ी और फिर अपनी पत्रिका देने के बहाने मैं प्राय उनसे मिलने लगा। केशव चन्द्र वर्मा जी का रचना संसार बहुत ही समृद्ध था और उनकी संगीत साधना भी अपरिमित थी। आज उनकी जयंती के अवसर पर हम उन्हें सादर नमन कर रहे हैं।


निवास : 

पत्रकार भवन  , गंधियांव, 

  करछना  , प्रयागराज  ( उ० प्र०) 

पिनकोड  --  212301 

मोबाइल --  8299280381

                 9935205341