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भृगु काम्प्लेक्स (लोहिया मार्केट ) बलिया की नीलामी पर उच्च न्यायालय की रोक, नीलाम हो चुकी दुकानों को कब्जा देने पर भी रोक

 


मधुसूदन सिंह

बलिया।। आगामी 12 दिसंबर को समाप्त हो रहे नगर पालिका परिषद बलिया के द्वारा पिछले अक्टूबर माह मे तथाकथित बोर्ड की बैठक करके  लोहिया मार्केट का नाम परिवर्तित करके भृगु काम्प्लेक्स करके शुरू की गयी नीलामी प्रक्रिया पर माननीय उच्च न्यायालय प्रयागराज के माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री राजेश बिंदल और श्री जेजे मुनीर की खंडपीठ द्वारा रोक लगा दी गयी है। यही नही माननीय उच्च न्यायालय ने इस बोर्ड बैठक के माध्यम से 14 वे और 15 वे वित्त के द्वारा कराये जाने वाले निर्माण कार्यों की निविदाओ पर भी रोक लगा दी है।



बता दे कि वार्ड नंबर 2 की सभासद संगीता देवी ने माननीय उच्च न्यायालय मे एक जनहित याचिका दायर करके वर्तमान बोर्ड द्वारा आनन फानन मे तथाकथित बैठक के माध्यम से लोहिया मार्केट का नाम बदल कर नीलामी प्रक्रिया पर मार्केट के निर्माण कार्य अपूर्ण होने के बावजूद नीलाम करने की प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की थी। बता दे कि नगर पालिकाओ की बोर्ड बैठक के लिये शासन के द्वारा कम से कम 3 घंटे का समय निर्धारित करते हुए इसकी वीडियो रिकार्डिंग की अनिवार्य किया हुआ है। लेकिन नगर पालिका परिषद बलिया की अक्टूबर मे हुई अंतिम बैठक न तो 3 घंटे तक हुई और न ही इसकी वीडियो रिकार्डिंग ही की गयी है।






बता दे कि शहर के दो बैंको भारतीय स्टेट बैंक और एचडीएफसी बैंक द्वारा दुकानों के आवंटन के लिये 2500 रूपये मे टेंडर फॉर्म बेचा जा रहा है। विदित हो की नगर पालिका द्वारा पहले चरण मे जिन दुकानों की नीलामी की गयी थी उसमे एक दुकान 17 लाख से ज्यादे मे नीलाम हुई थी। इस नीलामी प्रक्रिया मे आरक्षण के नियमों को भी मनमाने तरीके से लागू किया गया था। यह शर्त रखी गयी थी कि जिस दुकान पर केवल एक फॉर्म पड़ेगा, उस दुकान की नीलामी नही होगी लेकिन निविदा डालने वाले को अगल बगल की किसी एक दुकान की नीलामी प्रक्रिया मे भाग लेने का मौका दिया जायेगा  लेकिन ऐसा नही किया गया।

यही नही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पगड़ी लेने पर बहुत पहले से ही रोक लगा रखी है लेकिन नगर पालिका बलिया ने इस नीलामी प्रक्रिया मे पगड़ी ली है, जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना की श्रेणी का कृत्य है। आरक्षण मे किसी भी गरीब को कोई लाभ नही होने वाला है। सबसे पहले 2लाख की पगड़ी जमा करने के बाद कम से कम 5 लाख दुकान की न्यूनतम बोली रखी गयी थी। यह दुकान वार लगभग 8 लाख तक रखी गयी थी। जो एक गरीब के बस के बाहर की बात है। यह प्रक्रिया सीधे सीधे अमीरों को दुकान आवंटित करने की थी।