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बलिया पर फिर से अंग्रेजों का हुआ कब्जा : दमन का खौफनाक सिलसिला शुरू, जिलाधीश व एसपी ने जनता के नाम जारी की विज्ञप्ति



मधुसूदन सिंह

बलिया।। हर कीमत पर बलिया पर कब्जा करने की अंग्रेजों की कोशिश अगस्त 1942 के अंतिम सप्ताह मे सफल हो गयी और बलिया जिले पर अंग्रेजों का पूर्ण रूप से कब्जा हो गया।

अगस्त के अन्तिम सप्ताह तक पुलिस और फौज का दमन अपनी चरम सीमा पार कर चुका था। जिले के प्रत्येक थानों पर फौज ने पुनः कब्जा कर लिया।अगस्त 1942 के अन्त में जिला मजिस्ट्रेट ने प्रान्तीय सरकार को तार दिया कि बलिया पर पुनः कब्जा कर लिया गया। तभी एमरी ने ब्रिटेन की पार्लियामेंट मे कहा था की बलिया रिकॉनकार्ड, यानी बलिया पुनः जीता गया।



जिले मे पूर्ण रूप से अपना नियंत्रण करने के बाद जिलाधीश व पुलिस अधीक्षक ने अपने हस्ताक्षर से जनता के नाम विज्ञप्ति जारी कर 10 दिनों के बलिया पर कांग्रेस के स्वराज को कटघरे मे खड़ा करने का काम किया गया। जनता के नाम जारी विज्ञप्ति यह है ---

जिलाधीश एवं पुलिस अधीक्षक का बलिया की जनता के नाम विज्ञप्ति 

हाल से हुई गुंडागर्दी एवं अव्यवस्था का प्रभाव इस प्रदेश के अन्य जिलों की अपेक्षा सर्वाधिक इस जिले पर पड़ा, तथ्यों की जानकारी आप सबको है, उसे फिर से गिनाने की आवश्यकता नहीं। अव्यवस्था का कारण सर्व विदित है। ऐसे समय भारत वर्ष लड़ाई लड़ रहा है कांग्रेसदल ने खुले तौर पर सभी आवागमन के साधनों को नष्ट करने तथा सभी व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक कार्यों को छिन्न-भिन्न करने का उद्देश्य बना लिया है जब कि ऐसा कोई भी आन्दोलन शत्रु का सहायक मात्र हो सकता है। ऐसे का फल न तो स्वराज्य है और न कांग्रेस राज्य, बल्कि इस अभाग्य जिले में है,10 दिन के लिए निर्लज्ज गुन्डा राज ।




हम आप सबसे कहेंगे कि आप इस 10 दिनों के इस गुण्डा राज को देखें और उस पर विचार करें। क्या आप समझते हैं कि यह एक अच्छी व्यवस्था थी, क्या आप में से कोई या कोई कांग्रेसी नेता गुन्डों पर नियन्त्रण कर पाता, अगर पुलिस और सेना न आ गई होती ? हम आपसे यह नहीं कहते हैं कि आप अपने स्वराज्य के विचार छोड़ दें। ये ऊँचे विचार हैं और एक दिन अवश्य पूरे होंगे। लेकिन हम आपसे कहेंगे कि आप विचार करें कि क्या आप गुण्डागिरी द्वारा स्वराज्य प्राप्त करेंगे या शान्ति पूर्ण समझौते के तरीके से और अपने को उत्तरदायित्व संभालने के लिए प्रशिक्षित करने से ? आज की स्थिति में हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि जिन व्यक्तियों ने चोरी तथा लूट-पाट किया है और हत्या करने का प्रयास किया है उन लोगों के साथ राजनैतिक अपराध और किसी काम में कोई ढिलाई नहीं बरती जायेगी। आज सख़्ती की जरूरत है और सख्ती का इस्तेमाल होगा यह स्वाभाविक है कि वास्तविक अपराधियों का पता लगाने के साथ उनका पीछा करने में पुलिस द्वारा ऐसे लोगों को भी कष्ट हो सकता है जो निर्दोष थे या मूकदर्शक थे। हम इस बात का प्रयत्न करेंगे कि ऐसा न हो और पुलिस को सख्त आदेश  दिये गये है कि केवल वास्तविक अपराधियों को पकड़ा जाय तथा यदि वे फरार है तो वैधानिक तरीके से उनकी सम्पत्ति कुर्क जो जाय ।

किन्तु जब तक प्रमुख नेताओं के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं प्राप्त हो जाती तथा उनके छिपने के स्थान की सूचना प्राप्त नहीं हो जाती तब तक वांधित मनुष्यों के पकड़ने के सम्बन्ध में निश्चित होना बड़ा कठिन है। बिना सही सूचना के बहुधा खोज बेकार हो जाती है या निर्दोष व्यक्ति संदेह में गिरफ्तार हो जाते हैं । जहाँ तक निर्दोष जनता के कष्ट पाने की मात्रा का सम्बन्ध है वह इस बात पर निर्भर करता है कि हमें इन व्यक्तियों की सूचना प्राप्त करने में जनता का सहयोग कितना मिलता है । हम उन सबको गिरफ्तार करना नहीं चाहते जिन्होंने आन्दोलन में भाग लिया है। हम उन प्रमुख नेताओं को और उन व्यक्तियों को गिरफ्तार करना चाहते हैं, जिन्होंने वास्तव में लूट-पाट किया है अत्याचार का प्रयत्न किया है। दूसरे छोटे व्यक्तियों को जो नेताओं के पीछे भीड़ में लूट-पाट के बाद गये उन पर समूहिक जुर्माना किया जायेगा । सरकारी भवनों तथा यातायात के साधनों की क्षति पूर्ति केवल उन्हीं लोगों से न की जायेगी जिन्होंने क्षति की, बल्कि उन लोगों से भी जो इन घटनाओं के मूक दर्शक रहे और जिन्होंने भाग तो नहीं लिया किन्तु उचित अधिकारियों को घटना सूचना देने में अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया ।

सामूहिक जुर्माने मजिस्ट्रेटों की देख-रेख में वसूल होंगे और उनकी रसीद दे दी जायेगी। प्रत्येक गाँव, कस्वा अथवा शहर के ऊपर जुर्माना की मात्रा का निश्चय जिलाधीश की देख-रेख में वहाँ के लोगों द्वारा किये गये अपराध के अनुसार होगा । जुर्माना की वसूली मौके पर होगी। जुर्माना जल्दी वसूल होने से मामला जल्दी खत्म होगा। पुलिस को सख्त आदेश है कि जुर्माने की रकम अगर आवश्यकता पड़ी तो पुलिस की सहायता से केवल मजिस्ट्रेट ही वसूल करेंगे ।


अतः आप से हम कहते हैं कि आप जिले में पुनः शीघ्रातिशीघ्र सामान्य स्थिति लाने में हमारी सहायता करें, अगर आप निर्दोष हैं तो डरें मत ।अगर आप अपराधियों को जानते हैं तो आइये और हमें बताइये। अन्त में हमको सब पता लग जायगा लेकिन जितनी ही जल्द पता लगे उसी में आपका कल्याण है। नतीजा आपकी सहायता पर निर्भर करता है।

                                      आज्ञा से 

एल डी ऊंड                        एच टी ले0

आई0पी0एस0                     आई0 सी0 एस0

पुलिस अधीक्षक                     जिलाधीश  

                                       दिनांक 17-9-1942


बलिया कोतवाली में अमानुषिक अत्याचार


जिले के अधिकतर सेनानियों पर दफा 395/436 भा० द० वि० के अन्तर्गत पुलिस मुकदमा कायम करती थी । इन सेनानियों को गिरफ्तार करके पुलिस सीधे कोतवाली लाती थी। कुछ क्रान्तिकारियों को जेल से रिमाण्ड पर कोतवाली लाया जाता था। कोतवाली में इनके नाखूनों में पीन घुसेड़े जाते थे। पैरों को फैला कर बीच में दण्डे लगा दिये जाते थे ताकि बन्दी पैर न समेट लें। पोते में इंट बाँध कर लटका दिया जाता था जिससे क्रांतिकारी बेहोश होकर गिर पड़ते थे । थाने की छत के ऊपर उलटे टांग कर बेंतों से मारा जाता था और जब बन्दी बेहोश हो जाते थे तो उनका बँधा पैर खोला जाता था। कुछ लोगों की इन्द्रियों को रगड़ कर खून तक निकाल दिया जाता था, मुर्गा बना कर पीटना और बूट से सीने पर चहलना ये मामूली दण्ड थे। बहुत से बन्दियों को पैर के तलवे में हन्टर से मारा जाता था।

 श्री बाला राय को गुदा के रास्ते से हन्टर ही घुसेड़ दिया गया। श्री महानन्द मिश्र की मुंछे उखाड़ कर उनके मुंह में पेशाब कर दिया गया। श्री श्याम नरायन सिंह को इतना मारा गया कि उनकी जवानी ही चली गई। श्री रामजन्म सिंह को जेल से लाकर कोतवाली में बैठाकर चारों तरफ से डण्डे से पीटा गया। मि० ऊंड थाने आये और कोतवाल को दिया कि इन्हें जिन्दा ही गड्ढा खोद कर गाड़ दो। गड्ढे की खुदाई की गई किन्तु बाद में अन्य अधिकारियों के कहने पर उन्हें जिन्दा जमीन के अन्दर दफनाने का काम रोक दिया गया। श्री राम नाथ प्रसाद के नाखूनों मेंआलपीन घुसाए गए, सुला कर उनके सीने को बूट से रोदा गया और तलवे में बेंतो की मार पड़ी। मुहम्मद मुस्तफा का बुरी तरह पीट कर उनके सीने को चहला गया। श्री प्रभुनाथ सिंह को इतना पीटा गया कि उनके कान का पर्दा ही फट गया। श्री महानन्द मिश्र की मूंछें उखाड़ी गई और उनके मुह में पेशाब तक किया गया।


श्री रविन्द्र नाथ श्रीवास्तव को भी मुस्तफा की तरह पीटा गया। कोई क्रान्तिकारी जो कोतवाली में बन्द होता था उसे बिना पीटे हुए कोतवाली की पुलिस नहीं छोड़ती थी । उस समय कोतवाली क्रान्तिकारियों के लिए यातना शिविर मे बदल गई थी। जिसके अत्याचार को देखकर लोगों के दिल दहल जाते थे।


न्यायालयों में अन्याय


20 अगस्त 1942 को गजट में प्रकाशित स्पेशल क्रिमिनल कोर्ट आर्डिनेंस न0 2 के अनुसार मजिस्ट्रेटों को ऐसे मुकदमों को देखने का अधिकार मिल गया जिसे वे पहले देखने के अधिकारी नहीं थे । इस आर्डिनेन्स के द्वारा प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेटों को 20 अगस्त 1942 के बाद की घटनाओं को देखने का अधिकार दिया गया था अदालतों को सरसरी तौर पर मुकदमें के फैसले करने के अधिकार दिये गये थे। अभियुक्तों को सफाई देने की सुविधा भी नहीं दी जाती थी, मजिस्ट्रेट जेल में ही जाकर केस का फैसला करते थे। इन फैसलों में किसी की गवाही की भी जरूरत नहीं पड़ती थी ये 5से 7 साल तक कठोर कारावास की सजा के साथ ही बेंत लगाने की भी सजा देते थे। साथ ही जुर्माना भी करते थे।


मुरली मनोहर को सरकारी वकील पद से हटाया 


बाबू मुरली मनोहर जो सरकारी वकील थे और मुकदमें में बन्द लोगों का साथ देते थे उन्हें हटा कर खाँ बहादुर नजीरुद्दीन को सरकारी वकील नियुक्त किया गया। क्रान्तिकारियों के मुकदमें में खड़े होकर पैरवी करने का किसी वकील को साहस नहीं होता था । पं० शिवदान पाण्डेय वकील ने मुकदमों की पैरवी करने का कार्य प्रारम्भ किया। बाबू मुरली मनोहर को जब सरकारी वकील से हटा दिया गया। वे भी क्रान्तिकारियों की तरफ से पैरवी करने लगे। इन लोगों ने बहुत से बन्दियों को छुड़ा लिया। पुलिस ने पाण्डेय जी से कहा कि आप पैरवी करना छोड़ दें। जब पाण्डेय जी नहीं माने तो उन्हें नजरबन्द कर लिया गया। जेल से छूटने के बाद उनको जिले से बाहर निकाल दिया गया । पाण्डेय जी ने बनारस में भी बन्दियों की तरफ से वकालत करना शुरू कर दिया। जब वे बलिया पहुंचे तो उन्हें फिर नजरबन्द कर लिया गया। बाबू मुरली मनोहर को भी भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार करके अगस्त 1944 तक जेल में बन्द रखा गया।


इन दोनों वकीलों के बन्द हो जाने के कारण आन्दोलनकारियों को छुड़ाने के लिए कोई वकील न बचा। जो लोग थे भी वे इन गिरफ्तारियों को देखते हुए पैरवी करने का साहस नहीं किए । अब अदालतों में पुलिस जो चार्जशीट देती थी उसी पर मजिस्ट्रेट सजा कर देते थे । डिप्टी कलक्टर श्री पुरुषोत्तम सेठ से यह धांधली नहीं देखी गई। वे तत्काल अपना त्यागपत्र सरकार को भेज कर अलग हो गये ।