Breaking News

25 अगस्त 1942 : अंग्रेजी फौज से लड़ने के लिये बन्दूकें छीनी



मधुसूदन सिंह 

 बलिया।।23 अगस्त को फौजी-दमन को देखते हुए क्रान्तिकारियों ने महसूस किया कि जिले पर से हम लोगों का अधिकार फिर ब्रिटिश हुकूमत के हाथों में चला जायेगा,इसलिये कुछ नवयुवक हथियारों को एकत्रित करने के लिए निकल पड़े। 24 तक छाता से श्री अब्दुल सत्तार की 2 बन्दूकों को वे ले लिए थे। 25-26 की रात में भरसौता गांव के श्री शिव बालक सिंह के यहाँ से भी एक बन्दूक क्रांतिकारियो के हाथ लगी। उसी गांव के श्री राय साहब माधो प्रसाद के पास भी एक बंदूक थी । लगभग 35 नव-युवक उन्हें जगा कर उनसे बन्दूक सांगे । वे फौजी आदमी थे। घर में गए और बन्दूक लेकर खड़े हो गए। उसी समय नव-युवकों ने उन्हें पकड़ लिया और उनकी बन्दूकें छीन लिया। उसी रात को लगभग 2 बजे सिहाकुण्ड मे राम नगीना तिवारी के मकान पर यह दल बन्दूक लेने गया। वहाँ पर दो बंदूके थी। गांव के लोग इन क्रान्तिकारियों को डाकू समझ बैठे और चौकन्ने हो गये।फिर भी कान्तिकारियों ने यह तय किया कि किसी भी कीमत पर बंदूको को ले लेना है।जाते ही उन्होंने सन्दूक को तोड़ा जहाँ उन्हें एक बंदूक मिली।

गांव के लोगो ने उन्हें घेर लिया। नवयुवकों ने कहा हम डाकू नही है।हम फौज से मुकाबला करने के लिए बन्दूक लेने आए हैं। किन्तु गाँव वाले इनकी बात नहीं माने और इन लोगों पर हमला कर दिये। श्री रामनाथ प्रसाद जो क्रान्तिकारियों के नेता थे, उन्हें और उनके १० साथियों को गांव वालों ने घायल करके गिरफ्तार कर लिया । वे क्रान्तिकारी गाँव के लोगों पर बन्दूक चलाने की अपेक्षा गिरफ्तार होना ही पसन्द किए। जो लोग भाग गए थे वे आस-पास के गाँवों में जाकर लोगों को इकट्ठा करके साथियों को छुड़ाने का प्रयास करने लगे। लोगों के पहुंचने से पहले ही श्री विरेन्द्र बहादुर सिंह ने एक पत्र द्वारा चेतावनी दी कि "ये क्रान्तिकारी हैं, इन्हें छोड़ दो वरना हम गांव जला डालेंगे ।" पत्र पाते ही सभी लोग छोड़ दिए गए और गंगा के उस पार दियारे में चले गए।




बंदूको की लूट के संबंध मे 26 अगस्त को दर्ज हुआ मुकदमा

छट्ठू मिश्र ने 26 अगस्त 1942 को कोतवाली बलिया में निम्नलिखित रिपोर्ट लिखवाई 

कल रात को रामनगीना तिवारी सा० सिंहाकुण्ड थाना सहतवार के घर पर 30-40 आदमी बन्दुक, लाठी, बल्लम लेकर 2 बजे रात को डाका डालने आए । 3-4 फायर बन्दूक का किया। हम लोगों ने और गाँव के आदमियों ने डाकुओं का मुकाबला किया और चार डाकू एक बन्दूक के साथ मकान के दरवाजे पर पकड़ लिया। बाकी डाकू भाग कर जनेरा के खेत में चले गये थे। रात भर खेत को घेरे रहे। सबेरे 6 डाकू उस खेत में पकड़े और 3 बन्दूकें टोपीदार उसी खेत में और कारतूस व एक पानी की बोतल उन्हीं डाकुओं के पास मिला और एक बन्दूक का बक्स भी उसी जनेरा के खेत में मिला और एक अंग्रेजी टोपी जो डाकू पहने थे मिल गई । डाकुओं में हुल्लर राय भरसौंता , शंकराचार्य अगरौली, परमेश्वर सिंह दौनी , श्रीनाथ दौनी , शिवटहल राम, सुदामा सिंह दौनी , रामचन्द्र कुंवर, शिवनाथ ओझा हल्दी, राम लक्षण पान्डे बांसडीह, रामनाथ बरई बलिया ने पता बतलाया है। जो भाग गए हैं उनमें से केदार, परमा, देवनाथ साकिन सिहाकुन्ड और चन्द्रदीप राय  बादिलपुर को हम लोगों ने पहचाना और देखे हुए हैं। डाकुओ को अपने दरवाजे पर गांव वालों की सुपुर्दगी में छोड़ कर आप के पास आए हैं। बदरी सिंह साकिन भरसौता हमारे दरवाजे पर सबेरे आए। वे कहते थे कि बन्दूक हमारी है दे दो, हमने नहीं दिया ।

 

बलिया के कोतवाल मि० नादिर अली खाँ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा :--

यह तहरीर मुझको 26 अगस्त 1942 को 5 बजे शाम राम नगीना तिवारी सा सिहाकुण्ड व छट्ठू मिसिर सा० मुहम्मदपुर ने दी है। लाइन से कुछ गारद लेकर सिंहाकुंड गया।वहाँ पहुँच कर मालूम हुआ कि मुलजिमान मुन्दर्जा तहरीर को 4-5 बजे शाम को मुलजिमान के मददगारान 100-150 की तादाद में आकर छुड़ा ले गए हैं। मैं 4 प्रदद बन्दूक व एक बक्स कारतूस का और फौजी बोतल पानी की जो मिली रवाना करता हूँ । 31 अदद सरकारी राइफल के कारतूस थे, वह लाइन में दे दी है।