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किसानों, छात्रों का आंदोलन के बाद पुरानी पेंशन का मुद्दा इस चुनाव में कितना रहेगा कारगर

 



मधुसूदन सिंह

लगभग 1 साल तक चले किसान आंदोलन के बाद भी अबतक नही सुलझे वो सवाल जिनको लेकर किसानों ने आंदोलन किया था । केंद्र सरकार की टालो नीति का खामियाजा आ पश्चिमी यूपी में भाजपा उम्मीदवारों के बहिष्कार के रूप में दिखने लगा है । पूरे देशभर में 85 करोड़ लोगों को माह में 2 बार मुफ्त में खाद्यान्न देने के बाद भी अगर सभी ओपिनियन पोल में पंजाब में भाजपा अगर दहाई की संख्या भी नही छू रही है तो निश्चित जानिये किसानों को भाजपा सरकार के वादों पर भरोसा नही रह गया है । इस बात को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को गंभीरता से सोचना चाहिये ।

भाजपा के सामने दूसरी सबसे बड़ी समस्या सुरसा के मुंह की तरह विकराल होती जा रही बेरोजगारी की समस्या है । पिछले दो वर्षों में अकेले कोरोना के चलते ही करोड़ो युवक सड़को पर आ चुके है । सरकार सरकारी विभागों को प्राइवेट हाथों में तो सौंपती जा रही है लेकिन इनके ऊपर नियंत्रण नही रख पाने के चलते प्राइवेट सेक्टर में भी नौकरियों का अकाल पड़ा हुआ है । रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षाओं के खिलाफ बिहार व यूपी में फैला छात्रों का हिंसक आक्रोश इसका जीता जागता उदाहरण है । यह स्पष्ट रूप से चेतावनी है कि अब बेरोजगारों की उपेक्षा सरकारों को महंगी पड़ेगी । यूपी समेत 5 राज्यो के चुनाव में इसका असर पड़ना लाजिमी है ।



तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा कर्मचारियों की पुरानी पेंशन का है । यह मुद्दा काफी गर्मा चुका है । कर्मचारियों का भी कहना पूरी तरह से जायज है कि जब 60 साल की उम्र तक सरकारी सेवा देने के बाद उनको पुरानी पेंशन नही मिल रही है तो विधायको सांसदों को पुरानी पेंशन क्यो मिल रही है । भाजपा सरकार का ही नारा था - एक देश एक कानून ,फिर नेताओ के लिये अलग और कर्मचारियों के लिये अलग अलग पेंशन क्यो ? 

पेंशन कर्मचारियों के लिये जीवन जीने का सहारा होती है । पेंशन के लालच में ही सही परिजन वृद्धावस्था में सेवा करते है । अगर यह पेंशन नही रहेगी तो बुजुर्गों को लोग बिना दूध देने वाली गाय की तरह घरों से बाहर कर देंगे । सरकार क्या बुनुर्गो का यही हश्र देखना चाहती है ? कहा जाता है कि जिस प्रदेश का कर्मचारी सरकार के खिलाफ हो जाता है,उस सरकार का जाना तय माना जाता है ।

पिछली इंदिरा गांधी की सरकार से लगायत मनमोहन सिंह की सरकार तक जमाने मे हुए चुनावों को देखने के बाद यह कहने में कोई गुरेज नही है कि किसानों,नौजवानों और सरकारी कर्मचारियों के विरोध पर उतरने के बाद कोई भी सरकार सत्ता में बनी नही रह सकी है । अभी भी वक्त है,सरकार को किसानों नौजवानों कर्मचारियों में अपनी विश्वसनीयता कायम करनी चाहिये,नही तो...







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