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कारखास व सिपाहियों पर अबतक कार्यवाही न होने से क्षेत्रीय लोगो मे गहरी निराशा,गोवंशों की सुपुर्दगी में भी बड़ा खेल

 


मधुसूदन सिंह

बलिया ।। जनपद के सर्वाधिक चर्चित थानों में से एक नरही थाने के कारखास  व अन्य सिपाहियों के खिलाफ दो पिकेटो के पास बिक रहे अवैध गांजा का मीडिया द्वारा खुलासा और बिक्रेताओं द्वारा कारखास  को माहवारी देने की बात कैमरों पर स्वीकार करने के बावजूद इनके खिलाफ कार्यवाही न होना क्षेत्रीय लोगो के बीच निराशा और चर्चा का विषय बन गया है । लोगो का कहना है कि श्री त्रिपाठी के सहयोग से थाना क्षेत्र का ऐसा कोई भी बाजार नही है जहां अवैध रूप से मादक पदार्थो की बिक्री न होती हो । साथ ही लोगो का कहना है कि पिकेट के एकदम पास गांजा बिकता हो और तैनात सिपाहियों को इसकी भनक न हो ,इसको स्वीकार नही किया जा सकता है । ऐसे पुलिस कर्मियों को दंड न मिलना,इनके मनोबल को बढ़ाने वाला है ।

गोवंशों की सुपुर्दगी में भी खेल

केवल मादक पदार्थो की तस्करी व बिक्री में ही नही गो वंशो की तस्करी और पकड़े जाने पर इनको सुपुर्दगी देने का भी कारखास के माध्यम से जबरदस्त खेल खेला जाता है । यही नही जब गोवंश की कोई गाड़ी पकड़ी जाती है तो लिखा जाता है कि इतनी राशि गोवंश पकड़ी गई । इसमें यह कही नही लिखा जाता है कि दुधारू गाय पकड़ी गई,बछिया बछड़े पकड़े गये या बैल पकड़े गये । जब गाड़ी पकड़ कर थाने आती है तो कारखास का गेम शुरू होता है । इनकी मेहरबानी से इनके चहेते इन गायों बछड़ो और बैलों को अपनी सुपुर्दगी में ले लेते है ।

सुपुर्दगी में गये जानवरों की स्थिति क्या है,नही पूंछता कोई थानेदार

सुपुर्दगी लेने वाले जानवरो की स्थिति क्या है,जिंदा है या मर गये है,यह जानने का कोई भी थानेदार कोशिश ही नही करता है । इसी का फायदा उठाते हुए सुपुर्दगी मिलने के मात्र एक सप्ताह के अंदर अधिकतर गो वंश ,चाहे नाव से या पैदल बक्सर पुल के माध्यम से गो कशी करने वालो तक पुनः पहुंच जाते है । अगर कड़ाई के साथ मात्र सुपुर्दगी वाले मामलों की ही जांच कर दी जाय तो सुपुर्दगी के नाम पर गोकशी कराने वालों और इसमें शामिल पुलिस कर्मियों की बड़ी संख्या सामने आ सकती है । लेकिन इसको कराने के लिये उच्चाधिकारियों में इच्छा शक्ति होना बहुत जरूरी है ।