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पर्युषण महापर्व - मैत्री दिवस (12 सितंबर 2021 ) :जाने क्या है इसका महत्व




सरोज दुग्गड़

खारूपेटिया असम ।। जैन धर्मानुलंबियो का एक बड़ा पर्व पर्युषण महापर्व - मैत्री दिवस 12 सितंबर रविवार को है । इस पर्व को मनाने से पूर्व आठ दिनों तक जैन सम्प्रदाय के लोग क्षमा याचना करते हुए अनुष्ठान करते है और तथागत भगवान महावीर से विनती करते है कि जाने अनजाने में उनसे जो भी गलती हो गयी हो, उसको क्षमा करें ।

श्रीमती सरोज दुग्गड़ कहती है कि हमने आठ  दिन पर्युषण महापर्व की आराधना की और  आत्मावलोकन किया । अपने मन और क्रियाकलापो को धर्म में नियोजित किया । आत्म निरीक्षण का ये विलक्षण पर्व सिर्फ जैन धर्म में ही मनाया जाता है ।

                    मैत्री दिवस 

क्षमा मांगना और देना दोनों ही अपने आप में विशिष्ट है । पर्युषण महापर्व का अंतिम दिन मैत्री दिवस है । मन की ग्रंन्थियों को खोलने का दिन ,वैर विरोध को छोड़ने का दिन है । मनुष्य छदमस्त है, सामुदायिक जीवन में कभी - कभी किसी के प्रति भी राग द्वेष आ जाता है , क्षमायाचना कर मन निशल्य कर लेना चाहिए । निश्छल मन क्षमा दे भी सकता है, ले भी सकता है । आपस के वैर भाव मिटाकर प्रेम बढ़ाने से ही इस दिन को मनाने की सार्थकता होगी । जैन धर्म में चौरासी लाख जीव योनी से  क्षमा याचना का विधान है । कहा कि मैं भी विगत वर्ष में जाने अनजाने हुई भूलों के लिए आप सभी से बारंबार "खमतखामणां " करती हूँ!

वैर विरोध को छोड़ कर मैत्री भाव बढ़ाएं ,

अहिंसा की धरती  संयम का फूल खिलाएं !

पर्युषण महापर्व की सार्थकता को समझें ,

  आत्मिय भावो से क्षमायाचना कर पाएं !


जहां क्षमां भाव विकासीत  हो जाए  ,

आग्रह ,आवेश  , झगड़े मिट   जाए 

आओ मित्रो आज पावन  मैत्री दिवस 

खमतखामणां कर भारहीन हो जाए 


इस पर्व को मिच्छामि दुक्कडम के नाम से भी जाना जाता है ।

मिच्छामि का मतलब मिथ्या हों, दुक्कडम का मतलब दुष्कर्म (मेरे) अर्थात मेरे द्वारा किये गये दुष्कर्म मिथ्या हो । जैन अनुयायी पर्युषण पर्व के अंत मे हर वर्ष सब जीवो से क्षमा मांगते हैं तथा आगे उन जीवो के प्रति करुणा और शांति बनाये रखने की भावना भाते हैं।

मिच्छामि दुक्कडम या उत्तम क्षमा बोल कर अपने सारे दुष्कर्म या फिर किसी को ठेश पहुँची हो तो माफी मांगना, एक साहसी काम है। क्षमा मांगते समय आपके मन मे मान या बैर भाव नही होगा। आपके मित्र जो शायद किसी कारण से आपसे नाराज़ हो, आप उन्हें भी मना सकते हो और शत्रुओं से क्षमा मांगने व क्षमा करने से अच्छा कार्य क्या हो सकता हैं ?

इसलिए मिच्छामि दुक्कडम एक बहुत अच्छी भावना है। इसे सिर्फ जैनो को नही बल्कि विश्व के हर व्यक्ति को मनानी चाहिए ।


रविंद्र जैन नईदिल्ली कहते है कि मिच्छामी दुक्कडम’ का भाव इस चित्र में प्रकट किया गया है।


‘मिच्छामी दुक्कडम’ जैन धर्म की बहुत ही महत्वपूर्ण प्रथा है। इसे समझने के लिए जैन दर्शन के मूल, ‘कर्म सिद्धांत’ को समझना होगा।

हम अपने मन, वचन और शरीर के द्वारा जो भी क्रिया करते हैं, उसमें प्रायः राग-द्वेष अथवा कषाय की वृत्ति होने के कारण हमें किसी न किसी प्रकार का कर्म-बंध होता रहता है जो कि हमारे जन्म-मरण के चक्र का मूल कारण है। यदि उन कर्मों में राग-द्वेष की तीव्रता नहीं है तो उनके परिणाम को प्रायश्चित अथवा क्षमापना द्वारा निष्क्रिय किया जा सकता है।

किसी भी भूल अथवा ग़लती का प्रायश्चित जितनी जल्दी होगा उतनी ही सुगमता से उसके परिणाम को निष्क्रिय किया जा सकता है। किंतु यदि प्रायश्चित एक वर्ष के भीतर न किया जाए तो वह कर्म-बंध प्रगाढ़ हो जाता है तथा उसका परिणाम भुगतना ही पड़ता है।

‘मिच्छामी दुक्कडम’ प्रथा का उद्देश्य आत्म चिंतन करके अपने दोषों पर दृष्टि डालना, उनका प्रायश्चित करना तथा उनके फलस्वरूप होने वाले कर्म-बंधन से मुक्त होना है। प्रति वर्ष संवत्सरी के पर्व पर जैन धर्म के अनुयायी जाने अथवा अनजाने में हुई अपनी भूलों का प्रायश्चित करके सभी प्राणियों से क्षमा याचना करते हैं।

व्यवहारिक दृष्टि से देखा जाए तो इस प्रथा से व्यक्ति को अपनी भूलों का अहसास होता है, विनम्रता भाव आता है तथा आपस में मित्रता व समन्वयता को बढ़ावा मिलता है।


राजेश कुमार कहते है कि मिच्छामि दुक्कडम यह हिन्दी शब्द नहीं है यह अर्ध मग्धी या प्राकृत शब्द है जिन भाषा में जैन आगम लिखे गए है। इसका अर्थ है मेरा किया हुआ मिथ्या हो। याने अगर मुझे किसिसे मन मुटाव हुआ है तो उसको में क्षमा करता हूं। क्यूंकि क्षमापना एक तरफा नहीं होती तो मै यह भी साथमे जताता हूं की मेरी और से आपको को कुछ एसा मेरे मन वचन या शरीर से जान बूझ कर या अनजाने में कोई एसा घटा हो तो मै चाहूंगा वोह भी मिथ्या हो और आप मुझे भी क्षमा करे। कोई दुष्कर्म हुआ हो उसको मिथ्या करने की प्रार्थना है गुजारिश है। यह दैनिक पखवाड़े चौमासी और वार्षिक कर्तव्य बताया गया है । यानी यह वार्षिक कर्तव्य बताया गया है हर जैन का जिसके लिए रुजुता प्राप्त हो उस वजह से इसे आठ दिनों में मनाते है और आखरी दिन सवांत्सरिक क्ष्मापना दिन का होता है जिसको सवांत्सरी प्रतिक्रमण करके क्ष्योपक्षम करते है इसमें जीव अजीव सारे पदार्थो के उपयोग में की हुवी जिवादी हिंसा दुर्व्यवहार और उपेक्षा अनुचित वर्ताव और दुर्लक्ष को आधार करके कोई जाने अनजाने हुवे अतिचारों की सूची पढ़ी जाती है और मानव जाती की और से हमारे साथ हुवे किसी भी दुर्व्यवहार को माफ किया जाता है और उसके प्रति संवेदना करके उसके भी कर्म रुजुता योग्य बने उनसे भी क्षमा प्रार्थी जाती है। तो यह सभी को आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक भाषा में बताए तो bad act action by mind language body and soul की हिस्ट्री को डिलीट करना होता है।ताकि आगे के जीवन को पॉजिटिव मोड में लाया जा सके। With uninstalled past act,it reduces your system data ।