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बलिया के बागीपन की पहचान है महाबीरी झंडा

 



बलिया ।। बलिया यानि बागियों की धरती, भक्त प्रहलाद के पुत्र विरोचन के पुत्र महादानी महाराज बलि की राजधानी बलियाग यानि बलिया की धार्मिक,सांस्कृतिक इतिहास बड़ा लम्बा चौड़ा है,लेकिन हम बलिया को सबसे पहले पड़े बागी नाम से ही अवगत कराते हैं ।

यह अगस्त का महीना है । अभी पिछले गुरुवार को ही 19 अगस्त बिता है यानी बलिया बलिदान दिवस । यह वह दिन है जब आज से 79 साल पहले गुलामी में भी बलिया आजाद हो कर बलियाराष्ट्र बन गया था । बता दे कि  यह बागीपन और बगावती तासीर वाली आग कोई नई नही थी,बलिया ने हमेशा बागी रुख ही अख्तियार किया है, और इसका एक और प्रतीक है महाबीर जी का झण्डा  ।

कैसे और क्यो हुई महाबीरी झंडे की शुरुआत

बलिया के राजकीय इंटर कालेज के छात्र ठाकुर जगन्नाथ सिंह को बम्बई (मुंबई) से निकलने वाले साप्ताहिक अखबार जमशेद के माध्यम से पता चला कि जार्ज पंचम की दिल्ली में होने वाली ताजपोशी की खुशी में लोकमान्य तिलक मांडले जेल से छोड़ दिए जायेंगे। गवर्नमेंट स्कूल में सभी विद्यार्थियों को बताया गया कि सभी लोग आठ-आठ आना पैसा जमा करेंगे, जिसके एवज में उन्हें जार्ज पंचम की ताजपोशी का तगमा दिया जाएगा और मिठाई मिलेगी।

ठाकुर साहब ने अठन्नी तो जमा कर दी, लेकिन उनके दिलों-दिमाग में विद्रोह की आग जल पड़ी थी। तब शहर के आदित्य राम मंदिर में विद्यार्थी परिषद की बैठक हुई। बैठक में पं. हृदय नारायण तिवारी, मुनीश्वर मिश्र, केदारनाथ उपाध्याय, शिवदत्त तिवारी, नंदकिशोर चौबे और पं. परशुराम चतुर्वेदी (जो बाद में ख्यातलब्ध साहित्यकार हुए) सहित कुल 35 छात्र शामिल हुए। यहीं जार्ज पंचम की ताजपोशी का विरोध करने और महाबीरी झण्डा जुलूस निकालने की योजना बनी, जो अब तक कायम है ।

साल 1910 जब देश गुलाम था,अंग्रेजी हुकूमत की यातना चरम पर थी । बंगाल में लोग अकाल से मर रहे थे, बावजूद इनको राहत पहुंचाने के,  अंग्रेजी शासक अपने नये हुक्मरान जार्ज पंचम की ताजपोशी के जश्न में दिल्ली में भव्य दरबार के आयोजन की तैयारी में जश्न को यादगार बनाने के लिए जोर शोर से लगे हुए थे । अंग्रेज शासको ने ताजपोशी की खुशी में यूनियन जैक  झण्डे के साथ हिन्दुस्तान के हरेक गाँव, कस्बे और शहर में प्रभात फेरी निकालने का आदेश जारी किया,तो बलिया के स्कूली छात्रों का नेतृत्व बागी बन इस गुलामी के आदेश का विरोध करता है । इस विरोध का नेतृत्व महाबीर जी का झण्डा करता है ।

 लोकमान्य तिलक महाराज की जय, बजरंग बली की जय के उदघोष के साथ,राजकीय इण्टर कालेज बलिया के छात्र स्वतन्त्रता सेनानी आदरणीय पूजनीय  जगरनाथ ठाकुर के स्कूली छात्रों के गुट ने इस प्रभात फेरी का विरोध किया और ,इस विरोध में महाबीरी झंडे के साथ प्रभात फेरी निकालने की शुरुआत की । इसी दिन से महाबीरी झंडा अंग्रेज शासको के खिलाफ विरोध के लिये सबसे बड़ा हथियार बन गया । 1910 से निकलने वाला महाबीरी झंडा अनवरत आजतक निकलता आ रहा है ।


1942 में दमन के बाद भी 1943 में निकला था जुलूस

 6 मई 1910 को होने वाली ताजपोशी के विरोध में पहली बार महाबीरी झंडे का जुलूस निकाला गया। आजादी के आन्दोलन की कोख से निकले महाबीरी झंडा जुलूस को सौ साल पहले 1920 में आई वैश्विक आपदा स्पेनिश फ्लू भी नहीं रोक पाई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान भी बलियावासी अपनी परंपरा को कायम रखने सफल रहे थे।

उस समय जुलुस में कोई झांकी नहीं होती थी, केवल महाबीरी झंडा लेकर लोग सड़कों पर निकलते थे। 1942 की अगस्त क्रांति के बाद ब्रिटिश फौज ने बलिया जिले में बहुत क्रूरता से दमनात्मक कार्रवाई की, लेकिन अंग्रेजो को  अगले साल 1943 में जनता के प्रबल दबाव के कारण महाबीरी झण्डा निकालने की इजाजत देनी पड़ी।


सात दिन तक सड़क पर जमा रहा जुलुस

जंग-ए-आजादी के इस जुलुस ने अनेक झंझावात भी झेले हैं। 1968 में हुए पथराव और गोलीबारी में चार लोग मारे गए थे। 1990 में यह जुलुस सात दिनों तक सड़कों पर खड़ा रहा। 2005 में तीन दिन तक भगवान महावीर की पूजा अर्चना होती रही। लेकिन 2020 में कोरोना के कारण यह सांकेतिक रूप से ही निकाला गया ।

यह महाबीरी झण्डा  न केवल संकट हरण रामभक्त और युवको के आराध्य भगवान हनुमान की पूजा और आस्था को प्रदर्शित करता है बल्कि उन  पूर्वजों की आराधना का भी दिन है जिनकी वीरता और बलिदान के सामने वो अंग्रेज हार गये थे जिनके शासन में कभी सूर्य अस्त नही होता था । वर्तमान में इस झंडे का यह  आयोजन आज की नई पीढ़ी के लिए भले ही तेज संगीत और मनोरंजन का दिन होगा लेकिन  हम सब की जिम्मेदारी है कि भूलते युवा पीढ़ी को इसकी महत्ता व ऐतिहासिक महत्व को याद कराये ।

साम्प्रदायिक रंग देने की भी हुई कोशिश

अंग्रेजो की मुखालफत में निकला महाबीरी झंडा को सांप्रदायिक रंग में रंगने का भी खूब प्रयास हुआ जो अबतक नाकाम रहा है । गुलामी के दिनों से आजतक इस ऐतिहासिक झंडे को हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई सभी हर्षोल्लास के साथ मनाते आये है और आगे भी ऐसा ही होगा,क्योकि बलिया की गंगा यमुनी तहजीब सर्वधर्म और सद्भावना में यकीन रखती है ।

परतन्त्र भारत मे  बलिया में  सावन माह की पूर्णिमा यानी रक्षाबन्धन के दिन महाबीरी झण्डा, महाराष्ट्र में भाद्रपद यानी भादो में  गणेश पूजा और बंगाल में इसके बाद के महीनों में दुर्गा पूजा एवं अन्य देवी देवताओं के पूजन का आयोजन स्वतन्त्रता आन्दोलन को धर्म के आधार पर  संगठित और  मजबूत और विस्तार देने के लिए किया गया था । बलिया के झण्डे को अंग्रेजी हुकूमत ने रोकने की बहुत कोशिशें की, झण्डे को सम्प्रदायिकता का रूप दिया लेकिन नाकाम रहे,और महाबीर जी का यह झण्डा सौ से अधिक सालो से शान के साथ बलिया की धरती अनवरत निकल रहा है ।

 मै  सौभाग्यशाली हूँ कि  बीस वर्षों से इस आयोजन से जुड़ा हूँ, और दस वर्षों तक मैंने इस आयोजन का नेतृत्व किया और हमेशा प्रयास किया कि इस आयोजन और  झण्डे के ऐतिहासिक महत्व से आज की बलिया की युवा पीढ़ी को परिचित कराता रहूं , जिस झण्डे ने  आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया और अंग्रेजी हुकूमत को घटने टेकने पर मजबूर किया ।

                                                          संतोष चौरसिया

                                                          निवर्तमान अध्यक्ष

                                                 श्री महाबीरी झण्डा कमेटी,

                                                        अखाड़ा बालेश्वर घाट,

                                              बलिया मूर्ति झण्डा संख्या-06