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दिल्ली : वसंत विहार में अखिल भारतीय मठ मंदिर समन्वय समिति के राष्ट्रीय कार्यालय का हुआ भव्य उद्घाटन

 




दिल्ली ।। हिन्दू धर्म आस्था का प्रतीक माना जाता है। आदि काल से वर्तमान परिवेश में इसकी परम्परा सृजित करने में सन्तो ने भी कोई कोर कसर नही छोड़ा है। मंगलवार को अखिल भारतीय मठ मंदिर समन्वय समिति के राष्ट्रीय कार्यालय का उद्घाटन पूज्य पाह श्री मज्जगद गुरु जोशी मठ शंकराचार्य व बद्रिकाश्रम पीठाधीश्वर महाराज जी द्वारा फीता काट कर किया गया। दिल्ली स्थित वसंत विहार में अखिल भारतीय मठ-मंदिर समन्वय समिति के राष्ट्रीय कार्यालय उद्घाटन के दौरान श्री मज्जगद गुरु ने कहा कि सभी धर्मों में सबसे बड़ा धर्म, सनातन धर्म है।





"विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं " -बद्रिकाश्रम पीठाधीश्वर महाराज 

अखिल भारतीय मठ मंदिर समन्वय समिति के राष्ट्रीय कार्यालय शुभारंभ पर बद्रिकाश्रम पीठाधीश्वर महाराज ने कहा कि विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त रहे हैं।उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई।सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहा जाता है और यह हजारों साल का इतिहास है। भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई पहचान मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, लिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे।  संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था। इतना ही नही श्री पीठाधीश्वर ने उत्साह से लवरेज होकर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म में गाणपत्य, शैवदेव, कोटी वैष्णव, शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे।



" मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या है " - पूज्य पाह जी महाराज 

राष्ट्रीय कार्यालय शुभारंभ के दौरान पूज्य पाह जी महाराज ने कहा कि गाणपत्य गणेशकी, वैष्णव विष्णु की, शैवदेव, कोटी शिव की, शाक्त शक्ति की और सौर सूर्य की पूजा आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे। तथा इसी वजह से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु, शिव और शक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे। सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति द, स्मृतियाँ, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है।कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन हो जाने के कारण देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की। वहीं जब औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन को ईसाई, मुस्लिम आदि धर्मों के मानने वालों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये जनगणना करने की आवश्यकता पड़ी तो सनातन शब्द से अपरिचित होने के कारण उन्होंने यहाँ के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म रख दिया। श्री पीठाधीश्वर महाराज ने कहा कि आज बजरंगबली का मंगलवार दिन है और निश्चित राष्ट्रीय कार्यालय खुल कर हमें देश भर एक नया सन्देश देगा। 




" इन आचार्यगण और सम्मानितगण की रही उपस्थिति "

दिल्ली के वसंत विहार में अखिल भारतीय मठ-मंदिर कार्यालय के उद्घाटन के अवसर पर कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमेर नाथ सिंह देवा एवं  दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र श्रीवास्तव जी द्वारा किया गया। जिसमें कानपूर से अरुण पूरी जी महाराज, हनुमानगढ़ी अयोध्या से श्री भरत दास जी महाराज, कामाख्या से नेपाली बाबा, आचार्य राजेश ओझा जी , ए के वाजपेयी  एवं समस्त संत समाज ने अपना आशीर्वाद वचन दिया। और गणमान्यों में  सतीश पाल जी पूर्व मंत्री यू पी सरकार , श्री दद्दन यादव पूर्व मंत्री बिहार सरकार रहे। वहीं मीडिया प्रभारी श्वेता पाठक ने आयोजन में उपस्थित सभी गणमान्यों का आभार व्यक्त किया। 



" नादान रुषांक ( बाबा ) को देखकर सन्तो ने दिया आशीर्वाद "

अखिल भारतीय समन्वय समिति के राष्ट्रीय कार्यालय शुभारम्भ पर नादान बालक रुषांक ( बाबा ) को देखकर उपस्थित सभी संतों ने न केवल आशीर्वाद दिया बल्कि पूछा कि रुषांक यहाँ कैसा लग रहा है।तो रुषांक ने जवाब दिया कि बहुत अच्छा। इसी पर स्नेह का बौछार संतों का हो गया।