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आपातकाल की अनसुनी कहानी, जब पहली बार देश के प्रधानमंत्री को कोर्ट में जाकर देनी पड़ी गवाही

 


लखनऊ ।। 25 जून 1975 को गुजरे एक अरसा बीत चुका है। लेकिन खौफ संस्थाओं का अवमूल्यन राजनीतिक स्वतंत्रता की हत्या दमन न्यायपालिका पर हमले और निर्भीक और स्वतंत्र पत्रकारिता पर आए संकट का मूल्यांकन अब भी जारी है। घटनाक्रम में मूल में श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा मध्यवधि चुनाव में जनता से किये गए वादे एंव रायबरेली के खुद के इलेक्शन में की गई अनियमितता प्रमुख है।


असल मे 1971 के मध्यावधि चुनाव की तारीखों का चयन स्वम प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। श्रीमती गांधी रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी थी। किंतु संयुक्त विपक्ष का कोई बड़ा नेता उनके विरुद्ध चुनाव लड़ने को तैयार नही था। 19 जनवरी 1971 को संयुक्त विपक्ष ने समाजवादी नेता राजनारायण घोषणा की तो श्रीमती गांधी ने उनकी उम्मीदवारों को हल्के में लेने की कोशिश की। डॉ लोहिया के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के राजनारायण सदन के अंदर और बाहर श्रीमती गांधी के प्रबल आलोचक के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। 

9 मार्च को मतगणना होने पर श्रीमति गांधी तकरीबन लाखो मतों के अंतर से निर्वाचित हो गई। विपक्ष इस हार को आसानी से स्वीकार करने को तैयार नही था। नतीजतन राजनारायण के पक्षकार अधिवक्ता शांति भूषण द्वारा कोर्ट में गंभीर आरोप पत्र दाखिल किया गया। 


आरोप पत्र में हिंदू महासभा उम्मीदवार स्वामी अद्वेतानन्द  को 50 हजार रुपये की घुस देकर चुनाव मैदान में उतारना ,आमतदाताओं को आकर्षित करने के लिए धोती,कंबल, और शराब आदि का प्रयोग के साथ सबसे सनसनीखेज आरोप यशपाल कपूर की भूमिका को लेकर था,जो श्रीमती गांधी को ओएसडी रहते हुए उनके चुनाव एजेंट की भूमिका निभा रहे थे। 

जैसे जैसे केस अंतिम दौर पर पहुँचने लगा,पूरे देश की निगाहें इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर टिक गई। हाई कोर्ट के जानेमाने वकील सतीश चंद्र खरे श्रीमती गांधी के पक्षकार अधिवक्ता थे। आजाद भारत मे पहली बार किसी प्रधानमंत्री को स्वम कोर्ट में जाकर गवाही देनी पड़ी। 

लंबे इंतजार के बाद 12 जून 1975 का दिन आ पहुँचा। न्यायमूर्ति सिन्हा के सचिव घर पर सीआईडी के अधिकारी चक्कर लगाने लगे। उन्हें डराने की कोशिश की गई। शांति भूषण को भी प्रलोभन दिए गए,किंतु 12 जून को जस्टिस सिन्हा ने श्रीमती गांधी को चुनाव में भ्रष्ट तरीके अख्तियार करने का दोषी मानकर उनके चुनाव को अवैध घोषित कर दिया और 6 साल के लिए उन्हें अयोग्य करार दिया। 

सभी विपक्षी दल एक सुर में श्रीमती गांधी के इस्तीफे की मांग की और राष्ट्रव्यापी आंदोलन के लिए मोरार जी भाई और नानाजी देशमुख के नेतृत्व में संघर्ष समिति बनाने का निर्णय किया। लेकिन श्रीमती गांधी ने इस्तीफा न देने की घोषणा कर दी और कुछ चाटुकार उन्हें देश का पर्यायवाची बताने में जुट गए। 

आखिरकार 25 जून की शाम को दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल जनसभा का आयोजन हुआ,जिसमे जयप्रकाशनारायण द्वारा संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया गया। उन्होंने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मैं आज सभी पुलिसकर्मियों और जवानों का आह्वान करता हूँ कि इस सरकार के आदेश न माने क्योंकि इस सरकार ने शासन करने की अपनी वैधता खो दी है। 


इसके उपरांत 25 जून 1975 की मध्यरात्रि को देश मे इमरजेंसी (आपातकाल) लगा दिया गया। जेपी मोरार जी भाई ,चौधरी चरण सिंह,अटल बिहारी बाजपेयी,लालकृष्ण आडवाणी, राजनारायण मधु लिमये समेत 2 लाख नेताओ और कार्यकर्ताओं के बिना कारण बताये डीआईआर और मीसा जैसे काले कानूनों में जेल भेज दिया गया। 

कुलदीप समेत 2000 पत्रकार अरेस्ट किये गए। पीआईबी से न्यूजपेपर को निर्देश मिला कि बिना परमिशन के कोई समाचार प्रकाशित न किया जाए ।आपातकाल सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए सबक है। पारिवारिक राजकायम करने हेतु कोई दल या नेता भविष्य में प्रयासरत न हो,इसके लिए दलों में आंतरिक लोकतंत्र कायम रहना चाहिए। किसी व्यक्ति या दल की सीमा से देश का मुकाम सदैव ऊंचा रहना चाहिए। ( साभार लॉ ट्रेंड )