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आशा : परेशानियों के बाद भी कर्मयोगी की तरह कर्मपथ पर रहती हैं अडिग






बीमारियों की निराशा में, बनती हैं स्वास्थ्य के लिए एक आशा

आर्थिक तंगहाली के बावजूद खुद से  ज्यादा  दूसरों की  फिक्र
बलिया ।। ‘आशा’ शब्द  सुनकर ही मन में खास तरह की  ऊर्जा व सकारात्मकता का एहसास होता है। आशा एक ऐसा शब्द है जो तमाम निराशाओं के बीच एक उम्मीद की किरण दिखाता है  लेकिन स्वास्थ्य विभाग  के पास एक या दो नहीं बल्कि आशाओं की एक पूरी फौज है जो कि खुद के नाम को चरितार्थ करते हुए दिन रात एक कर्मयोगी की तरह अपने कर्मपथ पर अडिग रहती हैं। खुद की व परिवार की आर्थिक तंगहाली की चिंता न करते हुए इन्हें अपने मरीजों की फिक्र ज्यादा रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले मरीज जब बीमारियों रूपी निराशा के भंवर में फंसे रहते हैं तो वह आशाएं ही होती हैं जो कि अपने स्वास्थ्य सेवाओं के जरिये इनको एक नई आशा देने का काम करती हैं। 
आशा स्वास्थ्य विभाग व ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुचारू रूप से मुहैया कराने के लिए पूरे सिस्टम के समक्ष एक आशा की किरण हैं। इन्हीं के बल पर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं मुहैयां हो पा रही हैं। केंद्र व प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं को ग्रामीण स्तर पर क्रियान्वित करने में इन आशाओं की महती भूमिका है। चाहे बात टीकाकरण की हो या फिर मिशन इंद्रधनुष और गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल (एचबीएनसी) की। हर आशा के पास अपने क्षेत्र के सभी मरीजों का पूरा ब्योरा  विस्तार से होता है। जैसे किन—किन बीमारियों के कितने मरीज हैं, कितनों का उपचार चल रहा है और कितने स्वस्थ हो चुके हैं। तो आइए जानते हैं उनकी चुनौतियों, संघर्ष और अनुभवों के बारे में। 


   आशा संगिनी संगिता बताती हैं कि गत बीते बुधवार (20 मई 2020) को गोपालपुर के हर्जन बस्ती में दंपति  माया और रमेश अपनी दो साल की बेटी अंशु को तथा एक दंपति रीना और राजन अपने आठ महीने के बच्चे रितिक को टीके नहीं लगवाए। उन्हें बहुत समझाया लेकिन वह अपने बच्चों को टीके लगवाने के लिए तैयार नहीं हुए। उन्हें टीका लगवाने के लिए दूसरा रास्ता अपनाना पड़ा। बीते शुक्रवार को गाँव के कोटेदार राशन बंटवा रहे थे । तो ये दोनों दम्पति वहां राशन लेने पहुंच गए। इस पर मै गोपालपुर ग्राम प्रधान मनोज थे  आशा बिन्दु बोलीं कि आपको राशन की चिंता है लेकिन अपने बच्चे की जान की चिंता नहीं है। इस दौरान वहां मौजूद और लोग भी समर्थन करने लगे तब जाकर दोनों दंपति  बच्चों को टीका लगवाने के लिए तैयार हुए और बीते शनिवार (23 मई) को उन्होंने अपने बच्चों को टीका लगवाया।
   प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कोटवाँ के क्षेत्र उदयी छपरा की आशा कार्यकर्ता बिन्दु सिंह ने बताया कि कुछ दिन पहले एक गर्भवती महिला का उनके पास फोन आया। उसने कहा कि मेरा प्रसव होने वाला है । मुझे बहुत तेज दर्द हो रहा है। मेरी मदद कर दीजिये। आशा ने दिन रात कुछ नहीं देखा और अपना किट बैग लेकर चल दी 102 एंबुलेंस बुलाई और हॉस्पिटल ले गई और जहां महिला को स्वस्थ बच्चा पैदा हुआ। आशा बिन्दु बताती हैं कि कुछ दिन पहले उनके साथ एक घटना घटी थी। बाढ़ का समय था उनका गांव पानी से घिरा हुआ था। एक महिला ने उन्हें फोन किया और कहा कि दीदी कहां है मेरे पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा है। वह उठी और तब भोर का समय था। सब लोग सोये हुये थे। उन्होने मल्लाह के घर जाकर नाव लेकर नाव पर बैठाकर फिर रोड पर 102 एंबुलेंस बुलाकर उसको पीएससी कोटवाँ पर लाया और उसका प्रसव कराया । आशा बिन्दु बताती हैं कि उन्होने इस वर्ष अप्रैल 2020 से अब तक 13 प्रसव कराये हैं। तीन इच्छुक महिला लाभार्थियों की नसबंदी करवाई है और उन्हें उसकी प्रतिपूर्ति राशि भी प्रदान करवाई। कोरोना के काल में अपने क्षेत्र में बाहर से जितने लोग आ रहे हैं। वह उन सभी का घर-घर जाकर सर्वे कर रही हैं  और 21 दिन तक घर में रहने की सलाह दे रही हैं । इसके अलावा ग्राम प्रधान के सहयोग से मिलकर प्रवासियों को स्कूल में कोरेटाईन करवा रही हैं।
   बलिया में 2900 आशा कार्यकर्ता और आशा संगिनी 119 है। दिन-रात लोगों को स्वस्थ रखने की जद्दोजहद में लगीं हैं। बीते सप्ताह 20 मई बुधवार और 23 मई शनिवार को करीब पाँच हजार गर्भवती और बच्चों का टीकाकरण करा चुकी हैं। एक दिन में जिले में होने वाले औसतन 60 के करीब जिले में औसतन प्रसव में भी उनकी बड़ी भूमिका होती है। वहीं कोविड-19 के दौरान 56 से 65 हजार के लगभग परिवारों को आशा कार्यकर्ता होम कोरेंटाइन करा चुकी हैं।