बलिया : श्रीमद्भागवत कथा यज्ञ के दूसरे दिन भक्त ध्रुव के प्रसंग के माध्यम से बतायी गयी गुरु की महिमा,बिन गुरु कृपा हरिदर्शन असंभव
बलिया : श्रीमद्भागवत कथा यज्ञ के दूसरे दिन भक्त ध्रुव के प्रसंग के माध्यम से बतायी गयी गुरु की महिमा,बिन गुरु कृपा हरिदर्शन असंभव
बलिया 15 मार्च 2020 ।। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा रामलीला मैदान बलिया, मे 14 मार्च से 20 मार्च तक आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ कथा के द्वितीय दिवस पर भगवान की अनंत लीलाओं में छिपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को कथा प्रसंगों के माध्यम से उजागर करते हुए दिव्य ज्योति जागृति संस्थान एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य भागवताचार्य महा मनीष मिनी विदुषी सुश्री पद्महस्ता भारती जी ने नन्हे भक्त ध्रुव की संकल्प यात्रा को बड़े ही मार्मिक ढंग से कह सुनाया ।कहा कि भगवान तो भाव के भूखे हैं भावों से पुकारने पर वे झट दौड़े चले आते हैं । साध्वी जी ने बताया कि भक्त ध्रुव की संकल्प यात्रा प्रतीक है आत्मा और परमात्मा के मिलन की ।यह यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक मध्य सद्गुरू रूपी सेतु ना हो ,यही सृष्टि का अटल नियम है । ध्रुव ने यदि प्रभु की गोद को प्राप्त किया तो देवर्षि नारद जी की कृपा के द्वारा ,अर्जुन ने यदि प्रभु के विराट स्वरूप का साक्षात्कार किया तो जगद्गुरु भगवान श्री कृष्ण की महती कृपा से ,राजा जनक जीवन की सत्यता को समझ पाये तो गुरु अष्टावक्र जी के माध्यम से । मुंडकोपनिषद् भी कहता है -
तद्विज्ञानार्थ स गुरुमेवाभिगच्छेत ।
समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम ।।
अर्थात उस पर ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए हाथ में जिज्ञासा रूपी संविदा लेकर वेद को भलीभांति जानने वाले परब्रह्म परमात्मा में स्थित गुरु के पास ही विनय पूर्वक जाए । आपको ईश्वर के दर्शन अवश्य करवाए जायेंगे।
भक्त ध्रुव की कथा को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करते हुए कहा कि महाराज उत्तानपाद की दो रानियाँ थी, उनकी बड़ी रानी का नाम सुनीति तथा छोटी रानी का नाम सुरुचि था। सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नाम के पुत्र पैदा हुए। महाराज उत्तानपाद अपनी छोटी रानी सुरुचि से अधिक प्रेम करते थे और सुनीति प्राय: उपेक्षित रहती थी। इसलिए वह सांसारिकता से विरक्त होकर अपना अधिक से अधिक समय भगवान के भजन पूजन में व्यतीत करती थी। एक दिन बड़ी रानी का पुत्र ध्रुव अपने पिता महाराज उत्तानपाद की गोद में बैठ गया। यह देख सुरुचि उसे खींचते हुए गोद से उतार देती है और फटकारते हुए कहती है – ‘यह गोद और राजा का सिंहासन मेरे पुत्र उत्तम का है। तुम्हें यह पद प्राप्त करने के लिए भगवान की आराधना करके मेरे गर्भ से उत्पन्न होना पड़ेगा।’
इस कथा की मार्मिकता व रोचकता से प्रभावित होकर अपार जनसमूह के साथ-साथ शहर के विशिष्ट नागरिक भी इन कथा प्रसंगों को श्रवण करने के लिए पधारे। श्रीमद्भागवत को कथा में भाव विभोर करने वाले मधुर संगीत से ओत-प्रोत भजन-संकीर्तन को श्रवण कर भक्त-श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर झूमने को मजबूर हो गए। इसके अतिरिक्त स्वामी विश्वनाथ आनंद जी ने अपने विचारों में संस्थान के बारे में बताते हुए कहा कि संस्थान आज सामाजिक चेतना व जन जाग्रति हेतु आध्यात्मिकता का प्रचार व प्रसार कर रही है । माँ सरस्वती ने आज जिनके
कंठ में अपने दिव्य स्वर दिए- साध्वी सुश्री पदम प्रभा भारती जी, साध्वी सुश्री अभिनंदना भारती जी, साध्वी सुश्री सुमन भारती जी, साध्वी सुश्री अवनि भारती जी, गुरुभाई शिवम जी व गुरुभाई राम जी । इन भजनों को ताल व लयबद्ध साध्वी सुश्री दीपा भारती जी, साध्वी सुश्री अपर्णा भारती जी, साध्वी सुश्री प्रियंका भारती जी , साध्वी सुश्री निधि भारती जी, साध्वी सुश्री उज्जैशा भारती जी और गुरु भाई आशीष जी व गुरुभाई पवन जी ने किया ।
बलिया 15 मार्च 2020 ।। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा रामलीला मैदान बलिया, मे 14 मार्च से 20 मार्च तक आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ कथा के द्वितीय दिवस पर भगवान की अनंत लीलाओं में छिपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को कथा प्रसंगों के माध्यम से उजागर करते हुए दिव्य ज्योति जागृति संस्थान एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य भागवताचार्य महा मनीष मिनी विदुषी सुश्री पद्महस्ता भारती जी ने नन्हे भक्त ध्रुव की संकल्प यात्रा को बड़े ही मार्मिक ढंग से कह सुनाया ।कहा कि भगवान तो भाव के भूखे हैं भावों से पुकारने पर वे झट दौड़े चले आते हैं । साध्वी जी ने बताया कि भक्त ध्रुव की संकल्प यात्रा प्रतीक है आत्मा और परमात्मा के मिलन की ।यह यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक मध्य सद्गुरू रूपी सेतु ना हो ,यही सृष्टि का अटल नियम है । ध्रुव ने यदि प्रभु की गोद को प्राप्त किया तो देवर्षि नारद जी की कृपा के द्वारा ,अर्जुन ने यदि प्रभु के विराट स्वरूप का साक्षात्कार किया तो जगद्गुरु भगवान श्री कृष्ण की महती कृपा से ,राजा जनक जीवन की सत्यता को समझ पाये तो गुरु अष्टावक्र जी के माध्यम से । मुंडकोपनिषद् भी कहता है -
तद्विज्ञानार्थ स गुरुमेवाभिगच्छेत ।
समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम ।।
अर्थात उस पर ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए हाथ में जिज्ञासा रूपी संविदा लेकर वेद को भलीभांति जानने वाले परब्रह्म परमात्मा में स्थित गुरु के पास ही विनय पूर्वक जाए । आपको ईश्वर के दर्शन अवश्य करवाए जायेंगे।
भक्त ध्रुव की कथा को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करते हुए कहा कि महाराज उत्तानपाद की दो रानियाँ थी, उनकी बड़ी रानी का नाम सुनीति तथा छोटी रानी का नाम सुरुचि था। सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नाम के पुत्र पैदा हुए। महाराज उत्तानपाद अपनी छोटी रानी सुरुचि से अधिक प्रेम करते थे और सुनीति प्राय: उपेक्षित रहती थी। इसलिए वह सांसारिकता से विरक्त होकर अपना अधिक से अधिक समय भगवान के भजन पूजन में व्यतीत करती थी। एक दिन बड़ी रानी का पुत्र ध्रुव अपने पिता महाराज उत्तानपाद की गोद में बैठ गया। यह देख सुरुचि उसे खींचते हुए गोद से उतार देती है और फटकारते हुए कहती है – ‘यह गोद और राजा का सिंहासन मेरे पुत्र उत्तम का है। तुम्हें यह पद प्राप्त करने के लिए भगवान की आराधना करके मेरे गर्भ से उत्पन्न होना पड़ेगा।’
ध्रुव सुरुचि के इस व्यवहार से अत्यन्त दु:खी होकर रोते हुए अपनी माँ सुनीति के पास आते हैं और सब बात कह सुनाते हैं। अपनी सौत के व्यवहार के विषय में जानकर सुनीति के मन में भी अत्यधिक पीड़ा होती है। वह ध्रुव को समझाते हुए कहती है – ‘पुत्र ! तुम्हारी विमाता ने क्रोध के आवेश में भी ठीक ही कहा है। भगवान ही तुम्हें पिता का सिंहासन अथवा उससे भी श्रेष्ठ पद देने में समर्थ हैं। अत: तुम्हें उनकी ही आराधना करनी चाहिए।’
माता के वचनों पर विश्वास करके पाँच वर्ष का बालक ध्रुव वन की ओर चल पड़ा। भगवान कैसे मिलेंगे यह न जानते हुए भी बालक ध्रुव तपस्या करने लगे । बालक ध्रुव की कठोर तपस्या को देखकर माता लक्ष्मी ने श्रीहरि से बालक को दर्शन देने की बात कही , तब प्रभु श्रीहरि ने कहा कि बिन गुरु कृपा मेरा दर्शन मिलना कठिन है, जब तक ध्रुव पर गुरु कृपा नही होगी , दर्शन नही मिल सकता है, यही नियम है । इधर ध्रुव की कठोर तप को देखकर नारद जी पहुंचे और तप छोड़कर वापस घर लौटकर राजा तक बनाये जाने का प्रलोभन दिये , पर ध्रुव जब तप से हटने को तैयार नही हुए तो नारद जी ने अपने हाथ उनके सर पर रखकर अंतः करण में प्रभु के दर्शन कराये । ध्रुव को द्वादशाक्षर मन्त्र (ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय) की दीक्षा देकर यमुना तट पर अवस्थित मधुवन में जाकर तप करने का निर्देश दिया। गुरु नारद जी के आदेशानुसार ध्रुव भगवान के ध्यान में लीन थे। अचानक उनके हृदय की ज्योति अन्तर्विहित हो गई। ध्रुव ने घबराकर अपनी आँखें खोली तो उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी भगवान स्वयं खड़े थे। ध्रुव अज्ञान बालक थे, उन्होंने हाथ जोड़कर स्तुति करनी चाही किंतु वाणी ने साथ नहीं दिया। भगवान ने उनके कपोलों से अपने शंख का स्पर्श करा दिया। बालक ध्रुव के मानस में सरस्वती जाग्रत हो गई। उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान की भावभीनी स्तुति की। भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें अविचल पद का वरदान दिया।
घर लौटने पर महाराज उत्तानपाद ने ध्रुव का अभूतपूर्व स्वागत किया और उनका राज्याभिषेक करके तप के लिए वन में चले गये। ध्रुव नरेश हो गये। संसार में प्रारब्ध शेष हो जाने पर ध्रुव को लेने के लिए स्वर्ग से विमान आया। ध्रुव मृत्यु के मस्तक पर पैर रखकर विमान में आरूढ़ होकर स्वर्ग पधारे। उन्हें अविचल धाम प्राप्त हुआ। उत्तर दिशा में स्थित ध्रुव तारा आज भी उनकी अपूर्व तपस्या का साक्षी है।
यह प्रसंग यह बताता है कि किसी भी कार्य मे सफलता तब तक नही मिलती है जब तक सच्चा गुरु आपका मार्गदर्शन न करे ।
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने सभी को ईश्वर दर्शन के लिए आमंत्रित किया है ।दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ एक विलक्षण व अद्भुत कार्यक्रम है ।वर्तमान समाज की मुख्यधारा में रहते हुए भी वैदिक कालीन जीवनशैली से युक्त सेवादार व कार्यकर्ता कथा प्रांगण में अपनी अपनी सेवा में संलग्न दिखते हैं । मंच पर आसीन युवा साध्वियो को भक्ति रचनाओं का गायन करते देख ऐसा प्रतीत होता है मानो भारत पुनः ऋषियों की भूमि बन गया हो ।वास्तविकता में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की निःस्वार्थ और परमार्थी भावनाओं का ही पुंज है । उनकी अंतः प्रेरणा और संकल्प शक्ति का ओज है । नवयुग की स्थापना के लिए कटिबद्ध श्री आशुतोष महाराज जी की विश्व कल्याण को समर्पित इस भावना , प्रेरणा और संकल्प को धरातल पर साकार रूप में और अवतरित करने के लिए उनके असंख्य अनुयाई लगभग 10,000 भगवाधारी संत सेनानी यह सभी ब्रह्म ज्ञानी साधक संकल्पबद्ध है ।इस कथा की मार्मिकता व रोचकता से प्रभावित होकर अपार जनसमूह के साथ-साथ शहर के विशिष्ट नागरिक भी इन कथा प्रसंगों को श्रवण करने के लिए पधारे। श्रीमद्भागवत को कथा में भाव विभोर करने वाले मधुर संगीत से ओत-प्रोत भजन-संकीर्तन को श्रवण कर भक्त-श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर झूमने को मजबूर हो गए। इसके अतिरिक्त स्वामी विश्वनाथ आनंद जी ने अपने विचारों में संस्थान के बारे में बताते हुए कहा कि संस्थान आज सामाजिक चेतना व जन जाग्रति हेतु आध्यात्मिकता का प्रचार व प्रसार कर रही है । माँ सरस्वती ने आज जिनके
कंठ में अपने दिव्य स्वर दिए- साध्वी सुश्री पदम प्रभा भारती जी, साध्वी सुश्री अभिनंदना भारती जी, साध्वी सुश्री सुमन भारती जी, साध्वी सुश्री अवनि भारती जी, गुरुभाई शिवम जी व गुरुभाई राम जी । इन भजनों को ताल व लयबद्ध साध्वी सुश्री दीपा भारती जी, साध्वी सुश्री अपर्णा भारती जी, साध्वी सुश्री प्रियंका भारती जी , साध्वी सुश्री निधि भारती जी, साध्वी सुश्री उज्जैशा भारती जी और गुरु भाई आशीष जी व गुरुभाई पवन जी ने किया ।