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बलिया का जिला महिला अस्पताल : जहां एनेस्थीसिया चिकित्सक की कमी गरीब महिलाओं की प्रसव में बाधक , अल्ट्रासाउंड भी डॉक्टर के अभाव में बंद , प्राइवेट अस्पतालों की हो गयी है चांदी, 20 फरवरी 2019 से पीपीसी में नसबन्दी सर्जन के अभाव में बंद

बलिया का जिला महिला अस्पताल : जहां एनेस्थीसिया चिकित्सक की कमी  गरीब महिलाओं की प्रसव में बाधक , अल्ट्रासाउंड भी डॉक्टर के अभाव में बंद , प्राइवेट अस्पतालों की हो गयी है चांदी, 20 फरवरी 2019 से पीपीसी में नसबन्दी सर्जन के अभाव में बंद
मधुसूदन सिंह

बलिया 4 अक्टूबर 2019 ।। सरकार कहती है गरीबो के इलाज की पूरी व्यवस्था मुहैय्या है । लेकिन बलिया का जिला महिला अस्पताल ऐसा है जहाँ एनेस्थीसिया चिकित्सक की कमी के कारण गरीब महिलाओं का सिजेरियन प्रसव नही हो पा रहा है जिससे इनको प्राइवेट नर्सिंग होम में लूटने के लिये अपने आप का समर्पण मजबूरी है । वही अल्ट्रासाउंड भी विशेषज्ञ चिकित्सक के न होने से महीनों से बंद पड़ा है । इस संबंध में जब सीएमएस डॉ माधुरी सिंह से पूंछा गया तो उनका जबाब था कि महिला अस्पताल में ऑपरेशन से प्रसव न होने के पीछे सीएमओ बलिया डॉ पीके मिश्र द्वारा डीएचएस से अनुमोदित एनेस्थीसिया चिकित्सक के संविदा की नियुक्ति को अनुमोदित न करना जहां प्रमुख कारण है , वही इन सबके पीछे सीएमओ कार्यालय के बाबू मुन्ना का बड़ा हाथ है । चार माह से अनुमोदन की फ़ाइल को लटकाकर इसने महिला अस्पताल में गरीब महिलाओं के सिजेरियन डिलीवरी को बंद करा दिया है । डॉ सिंह के मुताबिक इसकी जिलाधिकारी और सीएमओ से कई बार शिकायत भी की , फिर भी इसने अनुमति वाली फ़ाइल को अनुमोदित नही कराया , नतीजा 4 माह तक बिना वेतन के कार्य करने के बाद एनेस्थीसिया चिकित्सक  28 सितम्बर 2019 से महिला अस्पताल आना छोड़ दिये और सिजेरियन डिलीवरी मजबूरन बन्द हो गयी ।
 यही नही सीएमएस डॉ माधुरी सिंह ने सीएमओ बलिया पर दूसरा गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जो पीपीसी सेंटर महिला अस्पताल के अंडर में चलता था उसको सीएमओ बलिया अपना बताकर अपने स्तर से एक चिकित्सक की नियुक्ति करके चला रहे है । कहा कि अगर पीपीसी सीएमओ साहब ही चलाना चाहते है तो चलाये पर ठीक से । आगे कहा कि पीपीसी में फरवरी 2019 से तत्कालीन सर्जन डॉ आशा सिंह की मौत के बाद से नसबन्दी बाधित है , उसको सर्जन की नियुक्ति करके कम से कम सप्ताह में दो दिन ही सही क्यो नही शुरू करा रहे है । कहा कि  डीएचएस की मीटिंग में , सीएमओ साहब से , डीएम साहब से यह विनती कर चुकी हूं कि कम से कम महीने में एक दिन भी महिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड कराने की व्यवस्था हो जाय तो काफी गरीब मरीजो को राहत मिल जाएगी पर दुर्भाग्य है कि आज तक मेरी बात को गंभीरता से लिया ही नही गया और अल्ट्रासाउंड पूर्णतः बन्द पड़ा है । जब बलिया एक्सप्रेस ने महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ माधुरी सिंह के स्वयं के बयान जिसमे बताया गया था कि मैं सिर्फ दो दिन ही बलिया ड्यूटी कर पाऊंगी , के जबाब में कहा कि मेरी बात को दुष्प्रचारित करने के लिये तोड़ मोड़ कर कहा गया । मैंने कहा था कि मैं सप्ताह में दो दिन नही रह पाऊंगी , जबकि प्रचारित हुआ कि मैं सिर्फ दो दिन ही रहूंगी । कहा कि अस्पताल में 92 रुपये में 1 लीटर दूध दाल रोटी हरी सब्जी सलाद भर्ती मरीजों को मिलता है , यह किसी ने नही बताया । कहा कि सीएमओ बलिया अगर एनेस्थीसिया चिकित्सक की संविदा नियुक्ति को अनुमोदित कर दे तो उसी दिन से महिला अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी शुरू हो जाएगी ।
 प्राइवेट अस्पतालों की हो गयी है चांदी
जिला महिला अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी बन्द होने से प्राइवेट अस्पतालों की चांदी हो गयी है । प्रसव सम्बन्धी थोड़ी भी परेशानी दिखने पर महिला अस्पताल से रेफर होने के बाद मरीजो के परिजनों के पास अपने आपको खुली आँखों से प्राइवेट अस्पतालों में लूट को देखने के अलावा कोई चारा नही बचता है । बता दे कि प्राइवेट अस्पतालों में एक डिलीवरी कम से कम 25 हजार में करायी जाती है । अगर कोई दिक्कत हुई तो यह 40 हजार तक पहुंच जाता है । अब अगर सीएमओ कार्यालय के बाबू पर सीएमएस महिला अस्पताल अगर अगर आरोप लगाती है तो प्राइवेट अस्पतालों के बिल को देखने के बाद इनकी शिकायत में तो दम लगता ही है ।
पीपीसी में नसबन्दी न होने से प्राइवेट अस्पताल हो रहे है मालामाल
   पीपीसी सेंटर पर  तैनात डॉ आशा सिंह की मौत के बाद से ही नसबन्दी फरवरी 2019 से बंद है लेकिन इसको शुरू करने के प्रति किसी ने भी रुचि नही दिखलायी है । वर्तमान सीएमओ बलिया डॉ पीके मिश्र ने पीपीसी सेंटर को अपने अधीन बताते हुए इसका संचालन शुरू करा दिया है लेकिन आजतक ये भी यहां नसबन्दी शुरू नही करा पा रहे है जबकि इनके अधीन लगभग आधा दर्जन सर्जन कार्यरत है । अगर ये चाहे तो इन सर्जनों की बारी बारी से सप्ताह में अगर दो दिन भी ड्यूटी लगा देते तो यहां प्रति सप्ताह 50 से 75 नसबन्दी तो आसानी के साथ हो ही जाती । यहां नसबन्दी न होने से सीएमओ कार्यालय से मेरीगोल्ड के रूप में पंजीकृत प्राइवेट अस्पतालों की तो लाटरी ही खुल गयी है । ऐसे में एक तरफ जहां सरकारी अस्पतालों की नसबन्दी का लक्ष्य पूरा नही हो पा रहा है वही मेरीगोल्ड प्राइवेट अस्पताल  दोनो हाथों से सरकारी योजना का लाभ सीएमओ कार्यालय की अदूरदर्शी नीति के कारण उठाकर मालामाल हो रहे है ।