पिता जी को काव्यांजलि के द्वारा श्रद्धांजलि
आप के पवित्र चरणों मे शत शत नमन
पिता जी को काव्यांजलि के द्वारा श्रद्धांजलि
(मधुसूदन सिंह , संपादक बलिया एक्सप्रेस)
दोस्तो , वैसे तो इस दुनिया मे जो आया है उसको जाना ही है , यही नश्वर सत्य है । लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है जो ऐसा कर गुजरते है जो विरले लोग ही कर पाते है । मेरे पिता जी स्व हरदेव सिंह भी ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी आदमी थे । कम पढ़े लिखे होने , दियारे के किसान होने के वावजूद , अपने खेतों के ढेलों और कांटो में चले पर हम भाइयो को हमेशा इनसे दूर रखा । जिस आदमी ने मामूली शिक्षा हासिल की हो , अगर उस व्यक्ति ने अपने बच्चों को इंजीनियर बनाने का सपना ही नही देखा बना भी दिया , वही अपने सभी बच्चों की खुशियों को देने के लिये अपने दिन का चैन और रातो की नींद गवाई ,और अपनी हैसियत से अधिक खुशियां बच्चो को दिलायी, ऐसे थे हमारे बाबू जी । 31 जनवरी 2006 को बाबू जी हम लोगो को अपने नश्वर शरीर से तो छोड़कर चले गये लेकिन वर्षो गुजर जाने के बाद भी आज भी मन मंदिर, घर के हर कोने में , रास्ता भटकने पर सीख के रूप में हमेशा साथ है । मै बाबू जी की पुण्यतिथि पर काव्यांजलि के द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूँ । काव्यांजलि में जो भी रचनाये विभिन्न कवियों की शामिल किया हूं , उन को पढ़ने के बाद मुझे विश्वास है कि आप को अपने पिता जी की याद जरूर आ जायेगी । लीजिये प्रस्तुत है काव्यांजलि द्वारा श्रद्धांजलि ......
पापा आप बहुत याद आते है
(सुनील कुमार)
जब भी मन व्याकुल होता है,
अन्दर ही अन्दर रोता है
सपने धुंधले लगते हैं
जब रात का सन्नाटा होता है
आप बहुत याद आते हो ...
समय था वो भी,
बेबाक़ी से इस दुनिया में रहता था
जो आता मन में, मैं वो करता था,
क्योंकि, पता था मुझे,
मेरे सर पे आपका हाथ था,
बेफिक्र था क्योंकि, आपका साथ था
जब सोचता हूं अपनी बेबाक़ी को, तब...
आप बहुत याद आते हो I
याद है मुझको,
जब भी मैं परेशान होता
चाहे छुप-छुप कर ही रोता
आप चुपके से झांक लेते थे
मेरा दर्द भांप लेते थे
और कहते
बेटा, चिंता क्यों करते हो
मैं हूं ना
आज जब छुपके रोता हूं,
मैं हूं ना
का स्वर खोजता हूं
नहीं सुनाई देती वो आवाज, तब....
आप बहुत याद आते हो ...
अब एक कदम आगे बढ़ाने पर
डर लगने लगता है,
कुछ गलत हुआ तो
कौन संभालेगा
मन यही सोचा करता है,
डर जब पैरों की
बेड़ियां बनने लगता है, तब.....
आप बहुत याद आते हो ...
भोर हो, सांझ हो या हो रात,
याद आती है आपकी
हर एक बात,
घर का हो कोई कोना
छत हो, या हो दीवार
हर चीज़ आपकी याद दिलाती है
ऐसा लगता है जैसे, मुझमें अब तो
बस सांस ही बाकी है,
और वो सांस जब लेता हूं, तब..
पापा, आप बहुत याद आते हो ..
आप बहुत याद आते हो ..
पिता की याद में
(पूनम तुषामड़)
यूँ तो रोज़ ही छलक जाती है
चंद बूँदें इन आँखों से
जब भी आपकी याद आती है
परन्तु कई बार मन घुटता है
अंतर में आँखों से आँसू नहीं बहते
परन्तु मन में उमड़ आती हैं
कई यादों की धाराएँ एक साथ
बचपन से जवानी तक के
सफ़र की हर बात
तब ख़ुद को समझाने पर भी
नहीं होता है विश्वास
आज आप नहीं हैं हमारे बीच
अपने बच्चों के पास
पापा न जाने क्यूँ एक ही बात सताती है
जब भी आपकी याद आती है
क्यूँ चले गए आप अचानक
इतनी दूर
आपके साथ ही जैसे चली गई है
हमारी हर ख़ुशी, हमारे चेहरों कीं रौनक
हमारा उत्साह, हमारा विश्वास ..
पिता
पिता…पिता जीवन है, सम्बल है, शक्ति है,
पिता…पिता सृष्टि मे निर्माण की अभिव्यक्ति है,
पिता अँगुली पकड़े बच्चे का सहारा है,
पिता कभी कुछ खट्टा, कभी खारा है,
पिता…पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है,
पिता…पिता धौंस से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है,
पिता…पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है,
पिता…पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है,
पिता…पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है,
पिता है तो बच्चों को इंतज़ार है,
पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं,
पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं,
पिता से परिवार में प्रतिपल राग है,
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है,
पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ती है,
पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिती की भक्ती है,
पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ती है,
पिता…पिता रक्त निगले हुए संस्कारों की मूर्ती है,
पिता…पिता एक जीवन को जीवन का दान है,
पिता…पिता दुनिया दिखाने का एहसान है,
पिता…पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है,
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है,
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है,
तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो,
पिता का अपमान नहीं उनपर अभिमान करो,
क्योंकि माँ-बाप की कमी को कोई बाँट नहीं सकता,
और ईश्वर भी इनके आशीषों को काट नहीं सकता,
विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है,
माँ-बाप की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है,
विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्रा व्यर्थ हैं,
यदि बेटे के होते माँ-बाप असमर्थ हैं,
वो खुशनसीब हैं माँ-बाप जिनके साथ होते हैं,
क्योंकि माँ-बाप की आशिषों के हज़ारों हाथ होते हैं
(ओम व्यास ‘ओम’ )
बाबू जी
घर की बुनियादें दीवारें बामों-दर थे बाबू जी
सबको बाँधे रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबू जी
तीन मुहल्लों में उन जैसी कद काठी का कोई न था
अच्छे ख़ासे ऊँचे पूरे क़द्दावर थे बाबू जी
भीतर से ख़ालिस जज़बाती और ऊपर से ठेठ पिता
अलग अनूठा अनबूझा सा इक तेवर थे बाबू जी
कभी बड़ा सा हाथ खर्च थे कभी हथेली की सूजन
मेरे मन का आधा साहस आधा डर थे बाबू जी
(आलोक श्रीवास्तव)
पिता की अहमियत
( प्रीति)
परिवार को जो हर हाल में संभालता है
हर परिस्थिति में हर बात का हल निकालता है
न कोई इच्छा न कोई जरूरत रहती अधूरी
वो इस कदर प्यार से पालता है
खूबियों से इतनी नवाज़ा है खुदा ने जिसको
खुदा का हर रंग उसमें सिमटता है
एक निवाला खिलाने की ख्वाहिश में हमको
वो हर रोज़ यूं ही मर मिटता है
खुशियों का समंदर देने तुझको
उसका हर पल कुछ जर्रे सा कटता है
मोड़ लेती है मुंह कायनात पूरी
जब पिता का सांया सर से उठता है...
🌹अर्पण 🌹
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संरक्षक है पिता प्रकृति का,
फिर भी उपेक्षित रहता है।
देकर अपनी खुशियाँ सारी,
आतप ही केवल सहता है।।
दोष, रोष, ही, देते रहते,
अपना पराया है हर पल ।
सहना ही है नियत उसकी,
कह न सका कल आज कल।।
मानता है ' माँ ' को सब ही,
प्यासा ' पिता ' ही रहता है ।
कर्म, धर्म, सब करके भी,
कुछ किया नही सब कहता है।।
चलता रहता वो निरन्तर,
सफल साधना में हो लीन।
तन मन की भी सुध न होती,
खुश रहता है हो भी मलीन।।
" देव् " नहीं है , परमेश्वर,
श्रेष्ठता ही, इसकी गाथा है ।
हर काल, हाल, होके निर्मल,
हरता , सबकी वो , ब्यथा है ।।
जर्जर होकर भी जनक ही,
कह न पाये , चाहत को।
छोड सभी को , चलना चाहे,
देना ही , चाहे वो राहत को।।
भाव सहित , यह अर्पण है,
हैं , रचना समर्पित आपको ।
हे पथ प्रदर्शक , शक्ति देना,
सह सकूँ , उस ताप को ।।
(डॉ सुनील कुमार ओझा(हलचल)
उपसंपादक -बलियाएक्सप्रेस
प्राध्यापक, अमर नाथ मिस्र पी0जी0 कालेज दुबेछपरा,बलिया)
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