'गरीबों को आरक्षण' पर हो सकता है सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज !
10 जनवरी 2019 ।।
गरीबो के लिये 10 फीसदी आरक्षण के बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी. हालांकि ये चुनौती अभी नहीं बल्कि इस आरक्षण को लेकर सरकार की अधिसूचना यानि नोटिफिकेशन जारी होने के बाद दी जा सकेगी. अगर तब सुप्रीम कोर्ट ये देखता है कि आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा हो रहा है और इससे संविधान की मूल भावना को ठेस पहुंचा है, तो इसे उसी तरह खारिज किया जा सकता है जिस तरह वर्ष 1991 में पीवी नरसिंहराव की सरकार द्वारा लाए गए बिल का हश्र हुआ था.
आर्थिक तौर पर कमजोर वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण का बिल मंगलवार यानि 08 जनवरी को लोकसभा से पास हुआ. इसके अगले दिन यानि बुधवार को राज्यसभा में इस पर करीब दस घंटे बहस चली. फिर इसे राज्यसभा ने भी 165-7 से पारित कर दिया. संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद अब ये बिल राष्ट्रपति के पास जाएगा. जहां उनके दस्तखत होते ही सरकार इस पर अधिसूचना जारी कर देगी.
चूंकि सरकार इस आरक्षण को चुनावों से पहले ही लागू करना चाहती है, लिहाजा जानकारों का मानना है कि एक सप्ताह के भीतर इसकी अधिसूचना जारी हो जानी चाहिए. दरअसल इस बिल के बारे में सही तरीके से व्याख्या अधिसूचना में ही होगी. ये देखने वाली बात होगी कि सरकार अधिसूचना में गरीबों को आरक्षण व्याख्या और प्रतिशत की बात किस तरह लिखती है.
सुप्रीम कोर्ट इसे किस तरह तरह देखेगा
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह कहते हैं कि सरकार के नोटिफिकेशन को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जा सकेगा. अगर नोटिफिकेशन में सरकार ने एसटी-एससी और ओबीसी के पहले से लागू 50 फीसदी आरक्षण के अलावा 10 फीसदी गरीबों को आरक्षण की बात जोड़ी तो तुरंत आरक्षण का प्रतिशत 50 फीसदी के ऊपर होगा, जिसे संविधान की मूल भावना को ठेस के तौर पर देखा जा सकता है. हालांकि ये इस पर निर्भर करेगा कि सरकार की नोटिफिकेशन में इस आरक्षण को किस तरह लाया जा रहा है.
क्या हुआ 1991 में नरसिंहराव सरकार के फैसले पर
इसी बिना पर 1991 में पीवी नरसिंहराव सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है. हालांकि तब नरसिंहराव सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन में केवल गरीबी के आधार पर आरक्षण की बात कही थी. अपीलकर्ता इंदिरा साहनी की नोटिस पर फैसला देते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि केवल गरीबी के आधार पर संविधान में आरक्षण को मंजूर नहीं किया जा सकता. गरीबी के साथ सामाजिक स्थिति और शैक्षिक पिछड़ेपन की ऐतिहासिकता की भी व्याख्या की जानी चाहिए.

राज्यसभा ने गरीबों को दस फीसदी आरक्षण विधेयक को 165-7 से पास कर दिया
तब कोर्ट ने क्यों रोक लगा दी थी
तब कोर्ट ने ये भी कहा था कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण संविधान की धारा 14 (समानता का अधिकार) को ठेस पहुंचाता है. पिछले कुछ सालों में कुछ राज्य सरकारों ने ऐसे आरक्षण के प्रावधान करने के प्रयास किए लेकिन जब वो मामले सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे तो उन पर रोक लगा दी गई, जिसमें ओडिसा और तमिलनाडु के मामले शामिल हैं.
क्या कहते हैं संविधान विशेषज्ञ
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप भी कहते हैं कि सरकार के इस बिल को नोटिफिकेशन के बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, तब सरकार को इसे जायज ठहराना होगा कि वो केवल गरीबी नहीं बल्कि सवर्णों को उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक पिछड़ेपन के कारण ये आरक्षण देने जा रही है.
बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य प्रेम कुमार मणि ने फॉरवर्ड प्रेस से कहा, ये संविधान सम्मत नहीं है. इसमें काफी अंतर्विरोध है और संविधान की मूल भावना को नष्ट करने की कोशिश है. प्रथम दृष्टया ही इसमें गड़बड़ी दिख रही है. मसलन पहले आयोग बनना चाहिए. उसकी रिपोर्ट आने के बाद ऐसा फैसला लेना चाहिए.
उन्होंने कहा, ये सवाल उठाए जा रहे हैं कि महज 13-15 फीसदी आबादी वाले सवर्ण के लिए दस फीसदी आरक्षण तो उस हिसाब से 54 फीसदी आबादी वाले ओबीसी के लिए आबादी के हिसाब से कम-से-कम 45 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए. इसमें इस तरह की कई गड़बड़ियां हैं, जिनके आधार पर हमारा मानना है कि इसका अदालती कार्यवाही में उलझना तय है.

संविधान में फिलहाल 49.5 फीसदी आरक्षण एसटी-एससी और ओबीसी को दिया गया है
सरकार ने क्या संशोधन किया है
सरकार ने गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया है. सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 15 में संशोधन की बात कही है.वर्तमान में इस अनुच्छेद के अनुसार – “राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा.”
इसी अनुच्छेद में दो और उपबंध जोड़े गए हैं. इसके तहत 15(4) और 15(5) के जरिए सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग या अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए विशेष प्रावधान की व्यवस्था की गई है. सनद रहे कि इसमें कहीं भी ‘आर्थिक’ शब्द का उल्लेख नहीं है.

1952 में जब आरक्षण लागू किया गया, तब ये 22.5 फीसदी अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए था
1952 में कितना आरक्षण दिया गया था
भारतीय संविधान में आबादी के अनुरूप अनुसूचित जाति के लिए 15 फीसदी और अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 फीसदी आरक्षण का अधिकार 1952 में ही दे दिया गया था, जब संविधान को देश में लागू किया गया. यह आरक्षण सरकारी सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए दिया गया.
फिर वीपी सिंह सरकार ने क्या किया
1979 में कालेकर आयोग की रिपोर्ट के बाद मंडल आयोग ने दिसंबर 1980 में अपनी रिपोर्ट पेश की. उसने सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़े वर्ग को (सोशली एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लासेज यानि एसईबीसी) के आरक्षण बढाने की संस्तुति की. वीपी सिंह की सरकार ने 13 अगस्त 1990 को ऑफिस मेमोरेंडम जारी करके ऐसे वर्ग, जिन्हें अब ओबीसी यानि अन्य पिछड़ा वर्ग कहा जाता है, को 27 फीसदी आरक्षण देने की अधिसूचना जारी की, ये नौकरियों से लेकर शिक्षा तक था. इसका बहुत विरोध हुआ. अदालत में याचिकाएं दायर कीं लेकिन अदालत ने वीपी सरकार के फैसले को बहाल रखा. हालांकि तब कोर्ट ने ये व्यवस्था भी दी कि भारतीय संविधान के मद्देनजर आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं रखी जाए.
'गरीबों को आरक्षण' पर हो सकता है सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज !
Reviewed by बलिया एक्सप्रेस
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January 10, 2019
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