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अंततः दो महिलाओ ने सबरीमाला मंदिर में प्रवेश कर किया भगवान के दर्शन , क्या आप जानते है पीरियड नही कुछ और कारण है महिलाओ पर प्रतिबंध के ?





2 जनवरी 2019 ।।

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद पहली बार दो महिलाएं केरल के सबरीमाला मंदिर के गर्भगृह तक पहुंच गईं. उन्होंने वहां पूजा अर्चना की. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केरल के बहुचर्चित सबरीमालाआ मंदिर के द्वार सभी उम्र की महिलाओं के लिए खोल दिए गए हैं लेकिन इसका लगातार विरोध जारी है और मंदिर में महिलाओं को प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है.



सबरीमाला के मंदिर को जाने वाला रास्ता

वैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले 10 से 50 साल तक की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक थी. परंपरा अनुसार लोग इसका कारण महिलाओं के पीरियड्स यानि मासिक धर्म को बताते हैं, क्योंकि मंदिर में प्रवेश से 40 दिन पहले हर व्यक्ति को तमाम तरह से खुद को पवित्र रखना होता है और मंदिर बोर्ड के अनुसार पीरियड्स महिलाओं को अपवित्र कर देते हैं. ऐसे में लगातार 40 दिन खुद को पवित्र रखना संभव नहीं है. लेकिन महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर रोक की शुरुआत जब हुई तो उसका कारण यह नहीं था.






पीरियड्स से नहीं है संबंध
वेबसाइट 'फर्स्टपोस्ट' के लिए लिखे एक लेख में एमए देवैया इस आख्यान के बारे में बताते हैं. वे लिखते हैं कि मैं पिछले 25 सालों से सबरीमाला मंदिर जा रहा हूं. और लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध किसने लगाया है. मैं छोटा सा जवाब देता हूं, "खुद अयप्पा (मंदिर में स्थापित देवता) ने.

आख्यानों (पुरानी कथाओं) के अनुसार, अयप्पा अविवाहित हैं. और वे अपने भक्तों की प्रार्थनाओं पर पूरा ध्यान देना चाहते हैं. साथ ही उन्होंने तब तक अविवाहित रहने का फैसला किया है जब तक उनके पास कन्नी स्वामी (यानी वे भक्त जो पहली बार सबरीमाला आते हैं) आना बंद नहीं कर देते." और महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक की बात का पीरियड्स से कुछ भी लेना-देना नहीं है.



विष्णु और शिव के संगम से हुआ है अयप्पा का जन्म
देवैया लिखते हैं कि पुराणों के अनुसार अयप्पा विष्णु और शिव के पुत्र हैं. यह किस्सा उनके अंदर की शक्तियों के मिलन को दिखाता है न कि दोनों के शारीरिक मिलन को. इसके अनुसार देवता अयप्पा में दोनों ही देवताओं का अंश है. जिसकी वजह से भक्तों के बीच उनका महत्व और बढ़ जाता है.

परंपरावादी कहते हैं कि अगर इस पूर्व कहानी पर लोगों का विश्वास नहीं, तो फिर मंदिर में श्रृद्धा के साथ दर्शन कर क्या फायदा होगा? इसीलिए वे कह रहे हैं कि जज के फैसले से इसपर क्या फर्क पड़ेगा क्योंकि पूर्व कहानी में श्रृद्धा के बिना उन्हें दर्शन से पुण्य नहीं मिलेगा.