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बलिया : प्रेम भूषण जी के द्वारा गाये भजन "आई बहार हंसते हंसते ,आया सांवला सरकार हंसते हंसते ..." में झूमे श्रीराम कथा के स्रोता

आई बहार हंसते हंसते ,आया सांवला सरकार हंसते हंसते ....
श्रीराम कथा के चौथे दिन श्रीराम जन्मोत्सव के रस में डूबे स्रोता




मधुसूदन सिंह की रिपोर्ट 
बलिया 15 दिसम्बर 2018 ।।

 श्रीराम कथा यज्ञ के चौथे दिन कथावाचक परम् पूज्य स्वामी प्रेम भूषण जी महाराज ने भगवान राम और भरत लखन शत्रुघ्न चारो भाइयो के जन्मोत्सव  का सुंदर वर्णन किया । कथा प्रारम्भ होने से पूर्व स्वामी प्रेम भूषण जी महाराज के आसन पर पहुंचने के बाद इस आयोजन के यजमान विंध्यांचल सिंह एवं श्रीमती तेतरी सिंह (माता पिता श्री दयाशंकर सिंह ), दयाशंकर सिंह  , विशेष यजमान रविन्द्र कुशवाहा सांसद सलेमपुर,साकेत सिंह सोनू , पीएन सिंह पूर्व प्रधानाचार्य , ईश्वर दयाल मिश्र प्रधान मानस परिवार बलिया, गुड्डू राय प्रमुख दुबहड़ , कनक पांडेय अध्यक्ष प्रतिनिधि नगर पंचायत रेवती , नकुल चौबे ,राजा राम सिंह , धर्मेंद्र सिंह, गिरिजेश दत्त शुक्ल प्रधानाचार्य ,गिरीश नारायण चतुर्वेदी ,ईश्वरन श्री सीए ने भगवान भोलेनाथ , भगवान श्रीराम को सपरिवार पूजन अर्चन किया ।

तीसरे दिन श्रीराम कथा में परम पूज्य प्रेम भूषण जी महाराज ने भगवान श्रीराम के जन्म की कथा को सुनाकर सभी श्रोताओं को भाव विह्वल किया था । भगवान श्रीराम को पालने में झूला झुलाया था । आज की कथा में भरत जी , लक्ष्मण जी और शत्रुघ्न जी के जन्म की कथा सुनाई । चार चार राजकुमारों के जन्म लेने से अयोध्या उत्सव की नगरी बन गयी । भगवान राम का जन्म नवमी तिथि दिन मंगलवार को दिन में बारह बजे हुआ था । भगवान के जन्म लेने से अयोध्या में इतनी खुशी हुई कि लोग देवताओं का आभार व्यक्त करने के लिये घर घर हवन करने लगे । हवन कुंडों के धुंआ से पूरा अयोध्या का आकाश मंडल बदल सदृश होकर अयोध्या को ढक दिया । राजा दशरथ के कुल देवता भगवान दिनकर अपने कुल में जन्मे परम् पिता परमेश्वर के दर्शन करना चाह रहे थे लेकिन धुंध के कारण कर नही पा रहे थे । दर्शन की लालसा में दिनकर भगवान चलना भूलकर रुक गये । जब धुंध हटी तो भगवान के मनमोहक रूप को देखकर अपनी सुधि बुद्धि खोकर एकटक भगवान राम को ही देखते रहे ।
कौतुक देखि पतंग भुलाना , एक मास तेहि जात न जाना
जब भगवान सूर्य को भान हुआ तो भगवान का जप करते हुए अपनी राह निकल पड़े --
हम तो हमारी मस्ती में झूमते चले है ,
सियाराम कह दिया है , जो राह में मिले है,
हो चाहे जैसा मौका ,खाएंगे नही धोखा
पाया है ज्ञान अब हमने ,गुरुदेव से अनोखा
जो डूबते है डूबे , हम तैरते चले है .....
पूरा अयोध्या जश्न में डूबा हुआ है । राजा दशरथ के आंगन में बधाई गाने वालो का तांता लगा हुआ है ।
बधाइयां बाजे आंगन में ,...
प्रेम भरे ब्रह्म नागर नाचे ,नूपुर बांध पायने में ...
नेवछावरि श्रीराम लला की , नेवछावरि श्री भरत लला की,
नेवछावरि श्री लखन लला की , नेवछावरि श्री शत्रुघ्न लला की ,
नहि कोई संकुचति मांगने में ...

तो कोई गा रहा है --
आई बहार हंसते हंसते ,आया सांवला सरकार हंसते हंसते ....
परम् अनूप आया , त्रिभुवन का भूप आया
नाथों का नाथ आया , करने सनाथ आया
सृष्टि सुधार हंसते हंसते ...

भगवान शिव माता पार्वती को अयोध्या के उत्सव को भावविह्वल होकर सुना रहे है ।
भगवान शिव कह रहे है देखो भवानी जो भगवान पूरे ब्रह्मांड को खेलाते है , वे अपनी मां कौशल्या की गोद मे कैसे खेल रहे है । अपने लला को खेलाते हुए माता कौशल्या कितनी मुदित हो रही है इसकी कल्पना की जा सकती है अभिव्यक्ति कठिन है । माता पार्वती ने भोले नाथ से प्रश्न किया -- क्या पूरी अयोध्या भगवान राम के जन्म से प्रसन्न है ? भोलेनाथ बोले एक को छोड़कर सभी , क्योकि मंथरा नाम की केकई की दासी खुश नही है क्योंकि केकई पुत्र भरत जी भगवान राम से छोटे है ।
इसके बाद तरह तरह की भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए श्री प्रेम भूषण जी महाराज ने दूसरी बार माता कौशल्या को भगवान के विराट रूप के दर्शन की बात बतायी । भगवान खेलते हुए कुछ बड़े होते है तो महाराज दशरथ जी नामकरण के लिये गुरु वशिष्ठ के पास बुलाया भेजते है ।

राजा दशरथ के पुत्रों का नामकरण करते ऋषि वशिष्ठ

- कुछ समय बीतने पर राजा दशरथ ने राजकुमारों का नामकरण संस्कार करने के लिए ऋषि वशिष्ठ को बुलाया। ऋषि वशिष्ठ ने कौशल्या के पुत्र का नाम राम रखा-

जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी।।
सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोकदायक बिश्रामा।।

अर्थात- ये जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिसके एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उनका नाम राम है, जो सुख का भवन और संपूर्ण लोकों को शांति देने वाले हैं।

इसके बाद ऋषि वशिष्ठ ने कैकयी के पुत्र का नाम भरत तथा सुमित्रा के पुत्रों के नाम लक्ष्मण व शत्रुघ्न रखे। बचपन से ही श्रीराम को अपना स्वामी मानकर लक्ष्मण उनकी सेवा करने लगे। समय आने पर चारों राजकुमारों का यज्ञोपवित संस्कार किया गया। श्रीराम अपने भाइयों सहित गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने गए।

शीघ्र ही चारों राजकुमार हर विद्या में निपुण हो गए और अपने महल लौट आए। श्रीराम अपने माता-पिता और गुरु की सेवा करते और नगरवासियों की सुविधा का भी ध्यान रखते। इस प्रकार नगरवासी श्रीराम के प्रति अटूट श्रद्धा रखते थे। श्रीराम के इन गुणों को देखकर राजा दशरथ बहुत प्रसन्न होते। इसी बीच महर्षि विश्वामित्र जी ने जब जाना कि पर ब्रह्म परमात्मा मनुष्य रूप में अवतरित होकर धरती पर आ गये है और अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम के रूप रह रहे है । अयोध्या पहुंचकर राजा दशरथ से राम लक्षमण को अपने साथ भेजने की बात कही । भगवान राम से अति प्रीति के चलते राजा दशरथ ने महर्षि को राम को साथ भेजने से इनकार कर दिया । फिर कुलगुरु वशिष्ठ जी के बहुबिधि समझाने पर भेजते है । विश्वामित्र जी के साथ दोनो भाई राम लखन बक्सर जाकर एक ही बाण से पहले तड़का का बध करते है और अन्य रक्षकों को भी मारकर विश्वामित्र जी के यज्ञ को पूर्ण कराते है ।

 वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर किया कटाक्ष
कहा - पिटाई का इतिहास पढ़ाती है हमारी शिक्षा प्रणाली
बलिया : स्थानीय टीडी कालेज के मैदान में श्रीराम कथा यज्ञ के चौथे दिन कथावाचक स्वामी प्रेमभूषण जी महाराज ने अपने प्रवचन के दौरान वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करते हुए उधार की व्यवस्था कही । कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में हमारे समाज , हमारे पुरखो   का अपमान है । बड़े दुर्भाग्य की बात है कि दुनिया मे भारत एक मात्र देश है जिसकी शिक्षा व्यवस्था उधार की भाषा अंग्रेजी में है । एनसीआरटी के मूर्खो ने देश भक्त भगत सिंह को आतंकवादी लिख दिया । अंग्रेजी में एक भी भारतीय विद्वान का चेप्टर नही है , सामाजिक विज्ञान में विदेशी दार्शनिकों के अध्याय है । क्या हमारे यहां दार्शनिक नही हुए । यह शिक्षा व्यवस्था भारतीय तत्व दर्शन को बर्बाद कर रही है । भारत का एक युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द जी अमेरिका जाकर वैदिक साहित्य के बल पर जीत कर आते है और कहते है कि मैं उस सनातन धर्म के अनुवाई है जिसमे सारे धर्मो को अपने मे समाहित कर ले । हमारा पड़ोसी चीन ने अपनी राष्ट्र भक्ति में अंग्रेजो के बनाये सारे नियम बदल डाले है । वहां गाड़ी चालक की सीट दाहिने होती है , स्विच उल्टा बन्द होता है , पढ़ाई चीनी भाषा मे होती है । जबकि हम आज भी अंग्रेजी दासता में जकड़े हुए है । हमारी किताबो में यह पढ़ाया जाता है कि कब कब हमारी पिटाई हुई , कब कब आततायियों ने हमको बेइज्जत किया । कहा कि यह कारण उधार के शासकों के कारण है । बच्चो में राष्ट्रीय अस्मिता की भावना पैदा कीजिये । लेकिन पिछले दौर में हम कितनी मार खाये उसको पढ़ा पढ़ाकर मानसिक उत्पीड़न करना बंद करो । हमारे यहां दार्शनिकों की कमी है क्या ? हमारा एक दार्शनिक रजनीश ने अमेरिका में इतनी ख्याति प्राप्त कर ली कि वहां की सरकार डोल गयी । जब अमेरिकी सरकार को लगा कि रजनीश कहि अमेरिका का राष्ट्रपति न बन जाये , जबरदस्ती भारत भेजने पर मजबूर हो गयी । यह है हमारे दार्शनिकों की शक्ति । वही लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि पर उनको मंच से भाव भीनी श्रद्धांजलि अर्पित करके उनके राष्ट्रप्रेम को सादर नमन वंदन किया । नेताओ पर कटाक्ष करते हुए कहा कि व्यक्तिगत आवेश में राष्ट्रहित को नुकसान न पहुंचाये , नही तो न जाने कितने जयचंद अंदर आ जाएंगे और पृथ्वीचंद मजबूरन बाहर चले जायेंगे ।