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पटना में बोले वुद्धिजीवी - बड़े शर्म की बात : 21वीं सदी में भी देह से परे नहीं हो पाया स्त्रियों का अस्तित्व



    पटना 31 जुलाई 2018 ।।
    मुज्जफरपुर बालिका गृह में घटित वीभत्स घटना को लेकर उद्देलित पटना का बौद्धिक समाज सोमवार को बारिश और जाम के बीच बीआईए हॉल में जुटा. बिहार डायलॉग के इस आयोजन में लोगों के सवाल खत्म होने का नाम नहीं ले रहे थे. चिंताएं जो मन में दबी थीं, वो फूट निकली. पहले महिलाओं ने अपने मन के भावों को व्यक्त किया. बाद में विशेषज्ञों ने बिहार के बाल गृहों की स्थिति का अवलोकन प्रस्तुत किया. चार घंटे चले इस आयोजन में वक्ता और श्रोता का भेद मिट गया और एक सुर में कहा गया कि यह घटना सभ्य समाज के माथे पर कलंक है. अब समाज और सरकार दोनों को मिलकर तत्काल इसका समाधान तलाशना होगा ।
    पहला सत्र महिलाओं का था, जिसमें सोलह वर्ष की प्रियस्वरा से लेकर हिंदी और मैथिली की बुजुर्ग कथाकार उषा किरण खान तक मंच पर उपस्थित थीं । पद्मश्री उषा किरण खान ने कहा कि यह बहुत ही दुखदायी है कि अब रक्षक ही भक्षक बन बैठे हैं. अब समाज को ही आगे आकर प्रतिकार करना होगा. 30 साल पहले मैंने पटना के एक बालिका गृह में देखा था, वहां की संचालिका तो सजधज कर बैठी हैं, लेकिन अंदर 8-10 किशोरियां एक साड़ी में ही लिपटी पड़ी हैं. आज भी हालात बहुत नहीं बदले. यह तभी बदलेंगे जब स्त्रियां खुद अपना अधिकार मांगेंगी ।
    बहस में हस्तक्षेप करते हुए जानी-मानी क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ बिंदा सिंह ने कहा कि मुज्जफरपुर में हुई घटना बाद क्या किसी मनोवैज्ञानिक ने उन लड़कियों से मुलाकात की? खबरों से पता चलता है कि वहां 15 लड़कियों ने अपने हाथ तक काट लिए हैं, वे कितनी मानसिक दबाव में होंगी, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता ।

    11वीं की छात्रा प्रियस्वरा भारती ने कहा कि मिनिस्ट्री ऑफ वीमेन एंड चाइल्ड डिपार्टमेंट ने बिहार को महिलाओं के लिए असुरक्षित राज्य माना है. हर घंटे बिहार के किसी न किसी कोने में कोई लड़की छेड़खानी का शिकार होती है. वैसी घटनाओं का क्या, जिनकी चीख हमतक नहीं पहुंच पाती, जिसकी संख्या दर्ज आंकड़ों से कहीं ज्यादा है. मैं सोचती हूं कि अगर उस जगह पर मैं होती तो क्या करती या आपलोगों में से कोई होता तो क्या करते?
    ऐपवा की अध्यक्ष मीना तिवारी ने सवाल उठाया कि सरकार आज भी टिस की रिपोर्ट को सार्वजनिक क्यों नहीं कर रही है. ऐसा लगता है कि इस मामले को सीमित करने का प्रयास किया जा रहा है. सीबीआई जांच एक छलावा है, यह रूपम पाठक के केस में हमलोगों ने देखा है. इस सत्र का संचालन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता शाहीना परवीन ने अपने विचार से पूरी बहस को एक सार्थक हस्तक्षेप में बदल दिया ।

    दूसरे सत्र में बिहार में बाल गृह संचालन की परेशानियों पर बातचीत हुई. इस सत्र को अधिवक्ता केडी मिश्र, सेंटर डायरेक्ट के महासचिव प्रमोद कुमार शर्मा और ह्यूमन लिबर्टी नेटवर्क के सचिन कुमार ने संबोधित किया ।प्रमोद कुमार शर्मा ने कहा कि बाल गृहों में काम करने वाले अक्सर अप्रशिक्षित होते हैं, उन्हें प्रशिक्षित किये जाने की जरूरत है. इसके साथ ही संस्‍थाओं को ठेकदार के तरह देखा जाता है जो गलत है ।
    सचिन कुमार ने हाल ही में पारित ह्यूमन ट्रैफिकिंग बिल की तारीफ की और कहा कि इससे ट्रैकिंग और पुनर्वास का काम ज्यादा सुचारू हो सकेगा. उन्होंने उन मसलों पर बात की जिससे स्थितियां सुधर सकती हैं । मुजफ्फरपुर मामले के उजागर होने पर जनहित याचिका दायर करने वाले वकील केडी मिश्रा ने कहा कि इस पूरे मामले में पॉस्को एक्ट का उल्लंघन हुआ है. टिस की जिस रिपोर्ट से यह सब उजागर हुआ उसे अब तक क्यों छिपाकर रखा गया है. सत्र का संचालन बाल श्रम के मुद्दे पर लंबे समय से काम करने वाले सुरेश कुमार ने किया और उन्होंने कई मसलों पर सार्थक हस्तक्षेप किया. बैठक का समापन सत्यम कुमार ने आमंत्रित वक्ताओं और अतिथियों को धन्यवाद देने के साथ किया ।