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लो भाई! खेल के नाम पर डीआईओएस बलिया के खाते मे आ गया रूपये 4.47 लाख, प्रदेश मे चल रहा है खेल के नाम पर बड़ा खेल



मधुसूदन सिंह 

बलिया।। उत्तरप्रदेश शासन ने बलिया मे जिला स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता को सुचारु रूप से संचालित करने के लिये 1 लाख रूपये सीधे डीआईओएस बलिया के खाते मे भेज दिया है। यह वो धनराशि है जो प्रत्येक वर्ष शासन से डीआईओएस के खाते मे आती है। बलिया एक्सप्रेस का दावा है कि खेल से जुड़े या जनपद के 10 प्रतिशत भी प्रिंसिपल अध्यापक इसके बारे नहीं जानते है। चुंकि यह धनराशि जिला क्रीड़ा समिति के खाते की बजाय सीधे डीआईओएस के खाते मे आती है। बलिया मे अबतक 5 प्रतियोगितायें कागजों पर ही सही हो चुकी है, जिनके आयोजन पर न के बराबर खर्च हुआ है। इसके साथ ही शासन ने जनपद से बाहर खेलने जाने वाले खिलाड़ियों के लिये अलग से 3,47,000रूपये भेजे है। यह भी सूच्य हो कि जहां जिस जनपद मे जितनी प्रतियोगिता होंगी, उसी हिसाब से बजट दिया गया है।

यह घोटाला सिर्फ एक बलिया जनपद मे ही नहीं हो रहा है बल्कि प्रदेश के सभी जनपदों मे यही हाल है। सबसे बुरा हाल तो पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का है। वाराणसी मंडल होने के कारण यहां जनपदीय प्रतियोगिता के साथ मण्डलीय प्रतियोगिता होनी ही है और यहां स्टेट व नेशनल प्रतियोगिता भी होती ही है। ऐसे मे यहां कम से कम 15 लाख रूपये प्रत्येक वर्ष आना ही आना है। लेकिन जो विद्यालय इन प्रतियोगिताओं को कराते है, उनको डीआईओएस बजट देते ही नहीं है। ये लोग खुद के बजट से प्रतियोगिताओं को कराते है।



सूच्य हो कि वाराणसी मे विकास इंटर कॉलेज नामक एक वित्त विहीन विद्यालय है। जहां 13 हजार बच्चे पढ़ते है। यूपी से नेशनल खेलने वाले 10 प्रतिशत खिलाड़ी इसी विद्यालय के होते है। यह एक वित्त विहीन विद्यालय है। जनपदीय आधी प्रतियोगितायें और मण्डलीय /स्टेट प्रतियोगिताये यही आयोजित होती है लेकिन इनको एक रुपया नहीं मिलता है। 53 खिलाड़ी इसी विद्यालय के पिछले सत्र मे नेशनल खेले है जिसमे से 18 को मेडल मिला है। पूरे प्रदेश मे एक वर्ष मे इतना नेशनल मेडल देने वाला यह इकलौता विद्यालय है। सूच्य हो कि मण्डलीय प्रतियोगिता कराने के लिये शासन से डेढ़ लाख रूपये, स्टेट कराने के लिये 3 लाख (पिछले साल 1.20 लाख था )मिला है। इस बार वाराणसी को साढ़े सत्तरह लाख रूपये मिले है ( 3 लाख की दर से 5 स्टेट कराने के लिये 15 लाख , डेढ़ लाख मण्डलीय कराने के लिये और 1 लाख जनपदीय प्रतियोगिता कराने के लिये )।यह भी सूच्य हो कि पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र मे पिछले साल अंडर 14 बालक / बालिका बॉलीबाल की नेशनल प्रतियोगिता हुई थी जिसपर पौने दो करोड़ से अधिक रूपये खर्च हुआ था।

यह तो उदाहरण है, अगर प्रदेश के किसी भी जनपद पर निगाह डाली जाय, तो यही स्थिति सामने आती है। अब सवाल उठता है कि आखिर इस घोटाले के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठती है। कारण स्पष्ट है कि जो विद्यालय आवाज उठाएगा, उसको डीआईओएस द्वारा प्रताड़ित करने का अंदेशा होता है।

यह देखिये किस जनपद मे शासन ने भेजी है कितनी धनराशि --















अब धनराशि नहीं होने का रोना नहीं रों पाएंगे जिला क्रीड़ा समिति के अध्यक्ष व सचिव 

जनपद से बाहर खेलने जाने वाले खिलाड़ियों को आने जाने, रहने, खाने पीने का भत्ता यह कह कर नहीं दिया जाता था कि अभी खाते मे बजट नहीं आया है, आप लोग खर्च कर लो, बजट आने पर दिया जायेगा और वो खिलाड़ियों को मिलता ही नहीं था। लेकिन प्रदेश की योगी जी की सरकार ने इस बहानेबाजी को भी खत्म करने के लिये पहले ही बजट आवंटित ही नहीं किया है बल्कि सीधे खाते मे भेज भी दिया है।

जीआईसी, जीजीआईसी को मिलते है प्रतिवर्ष  कम से कम 50 हजार , क्या ख़रीदे गये है खेल उपकरण 

विद्यालयों मे छात्र छात्राओं को बेहतर खेल सुविधाएं मिले इसके लिये प्रदेश सरकार प्रयत्नशील है। यही कारण है सरकार प्रत्येक राजकीय इंटर कॉलेज और राजकीय बालिका इंटर कॉलेजों को कम से कम 50 हजार रूपये  खेल उपकरणों को खरीदने के लिये देती है। यही नहीं राजकीय हाई स्कूलों को कम से कम 25 हजार रूपये दिये जाते है। उपरोक्त दोनों वर्गों मे यह धनराशि शून्य से 500 तक छात्र संख्या पर मिलती है। इससे अधिक संख्या होने पर यह धनराशि बढ़ जाती है।अब यह अलग बात है कि ये लोग वास्तव मे सामान खरीदते है या कागजों मे। लेकिन इतना तो तय है कि अगर ये लोग खेल उपकरण हर साल खरीदते तो आधी से अधिक प्रतियोगितायें ये आसानी के साथ करा लेते।