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भारत-चीन की दोस्ती से होकर गुजरता है विश्व शांति का रास्ता--पीएम मोदी



शंघाई चीन ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन समिट (एससीओ) में हिस्सा लेने चीन के चिंगदाओ पहुंचे हैं. यहां उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बातचीत भी हुई. जिनपिंग से मिलने के बाद पीएम मोदी ने कहा, "भारत और चीन के बीच मजबूत और स्थिर संबंध से दुनिया को स्थिरता और शांति की प्रेरणा मिल सकती है."
मोदी ने वुहान में शी के साथ अनौपचारिक मुलाकात को भी याद किया.

पिछले दो महीनों में ये दोनों नेताओं की दूसरी मुलाकात है. मुलाकात के बाद मोदी-जिनपिंग ने डेलीगेशन लेवल की मीटिंग की. इस दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर दस्तखत हुए. मोदी ने जिनपिंग के अलावा उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शौकत मिर्जियोयेव से भी मुलाकात की.


चिंगदाओ में दो दिन तक चलने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में पहली बार भारत-पाक सदस्य के तौर पर शामिल हो रहे हैं. वहीं, भारत ने साफ किया है कि पाक के साथ कोई आधिकारिक मुलाकात नहीं होगी.

क्या है SCO?
शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना 2001 में हुई थी. इसके उद्देश्यों में सीमा विवादों का हल, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ाना और सेंट्रल एशिया में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को काउंटर करना शामिल है. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के पूर्ण सदस्यों में भारत, चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान शामिल हैं. अफगानिस्तान, ईरान, मंगोलिया और बेलारूस पर्यवेक्षक (ऑब्जर्वर) हैं.

भारत कब बना SCO का हिस्सा
भारत पिछले साल ही शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का पूर्ण सदस्य बना था. पिछले साल कजाकिस्तान में हुए अस्टाना सम्मेलन में भारत के साथ-साथ पाकिस्तान को पूर्ण सदस्य बनाया गया था. उसके बाद से यह पहला सम्मेलन है.

किन मुद्दों पर हो सकती है बात?
एससीओ शिखर सम्मेलन में क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा की जाएगी. सम्मेलन में मोदी पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को बढ़ावा देने का मुद्दा उठा सकते हैं.



सम्मेलन में कौन-कौन आया है?
पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन भी शिखर सम्मेलन में शिरकत कर रहे हैं. शिखर सम्मेलन की प्रमुख विशेषताओं में से एक ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी की मौजूदगी है. चीन ने उन्हें फोरम में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है. रूहानी की उपस्थिति का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि हाल ही में अमेरिका ने ईरान परमाणु समझौते से अपने हाथ वापस खींच लिए हैं. चीन ने इस परमाणु समझौते की रक्षा का संकल्प लिया हुआ है.