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जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया : एक समीक्षात्मक दृष्टि, 8 वर्ष बाद कहां खड़ा है विश्वविद्यालय

 





डॉ. सुनील कुमार ओझा

(असिस्टेंट प्रोफेसर, भूगोल विभाग, अमर नाथ मिश्र पी.जी. कॉलेज दुबेछपरा, बलिया (उ.प्र.),राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ भारत)

प्रस्तावना

बलिया की धरती स्वतंत्रता संग्राम, किसान आंदोलनों और सामाजिक चेतना की उर्वर भूमि रही है। 1942 के आंदोलन में बलिया ने आज़ादी का बिगुल फूँककर पूरे देश को प्रेरित किया था। यही नहीं, बलिया के जननायक चन्द्रशेखर जी ने न केवल देश की राजनीति को लोकतांत्रिक दृष्टिकोण दिया, बल्कि संघर्षशील जीवन और वैचारिक प्रतिबद्धता का आदर्श भी प्रस्तुत किया।


इसी बलिदानी और ऐतिहासिक धरती पर जब जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय (JNCU) की स्थापना 2016 में हुई, तो इसे पूर्वांचल की शिक्षा-जगत में एक नए अध्याय की तरह देखा गया। अपेक्षा की गई कि यह विश्वविद्यालय शिक्षा और शोध की धारा में नई ऊर्जा का संचार करेगा, स्थानीय युवाओं को अवसर प्रदान करेगा और बलिया की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाएगा। किंतु किसी भी संस्थान की पहचान केवल नाम से नहीं होती, बल्कि उसके कार्य, नीतियाँ, उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ ही उसकी वास्तविक स्थिति स्पष्ट करती हैं।


                स्थापना और उद्देश्य


जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय की स्थापना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2016 में की गई। इस विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य था—

1. पूर्वांचल के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर अवसर उपलब्ध कराना।

2. बलिया की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक धरोहर से प्रेरणा लेकर शिक्षा का नया वातावरण बनाना।

3. शोध एवं नवाचार के माध्यम से स्थानीय समस्याओं का समाधान खोजना।

4. क्षेत्रीय असमानताओं को कम कर युवाओं को उच्च शिक्षा, रोजगार और शोध के अवसर प्रदान करना।


विश्वविद्यालय का नाम बलिया के लाल, पूर्व प्रधानमंत्री स्व चन्द्रशेखर जी के नाम पर रखा जाना, स्वयं में लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और संघर्षशीलता का प्रतीक है। इससे छात्रों को यह संदेश मिलता है कि शिक्षा केवल नौकरी पाने का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी और रचनात्मकता का पथ भी है।






          उपलब्धियाँ और सकारात्मक पक्ष


1. स्थानीय छात्रों को सुविधा

बलिया जैसे सीमावर्ती जिले के छात्र पहले उच्च शिक्षा हेतु बनारस, गोरखपुर या लखनऊ जैसे बड़े शहरों पर निर्भर रहते थे। अब उन्हें अपने ही जिले में विश्वविद्यालय की सुविधा उपलब्ध है। इससे शिक्षा की पहुँच बढ़ी और गरीब व ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा अपेक्षाकृत आसान हुई।


2. संकाय और विभागों की स्थापना

विश्वविद्यालय में कला, विज्ञान, वाणिज्य, प्रबंधन, विधि, शिक्षा, कृषि और व्यावसायिक संकायों का गठन हुआ। साथ ही कई नये पाठ्यक्रम और व्यावसायिक कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जिससे विद्यार्थियों को विविध विकल्प मिलते हैं।


3. जननायक के विचारों का प्रसार

विश्वविद्यालय का नाम ही छात्रों को जननायक चन्द्रशेखर जी के व्यक्तित्व, स्वाधीनता संग्राम और लोकतांत्रिक मूल्यों से जोड़ता है। यहाँ आयोजित होने वाले सेमिनार, व्याख्यान और संगोष्ठियाँ उनके विचारों को युवाओं तक पहुँचाने का कार्य कर रही हैं।


4. रोजगारोन्मुखी कार्यक्रम

कौशल विकास, करियर काउंसलिंग, व्यावसायिक प्रशिक्षण और नई शिक्षण पद्धतियों की शुरुआत ने विद्यार्थियों में रोजगार के नए अवसर खोले हैं।


5. शोध की संभावनाएँ

बलिया का सामाजिक-आर्थिक जीवन, भोजपुरी साहित्य, गंगा-घाघरा क्षेत्र का भूगोल और प्रवासी श्रमिकों की समस्याएँ ऐसे विषय हैं जिन पर शोध की असीम संभावनाएँ हैं। विश्वविद्यालय ने इन विषयों पर शोध के नए द्वार खोले हैं।


चुनौतियाँ और सीमाएँ

1. आधारभूत ढाँचा


विश्वविद्यालय अभी भी स्थायी भवन, आधुनिक प्रयोगशालाओं, सुसज्जित पुस्तकालय और छात्रावास जैसी सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है।


2. शिक्षक और शोध संसाधन


स्थायी अध्यापकों की संख्या सीमित है। कई विभाग गेस्ट फैकल्टी पर निर्भर हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता और शोध कार्य प्रभावित होता है।


3. प्रशासनिक पारदर्शिता


नये संस्थान होने के कारण प्रशासनिक स्तर पर कई बार पारदर्शिता और त्वरित कार्यवाही का अभाव दिखता है। छात्र हितों से जुड़े मुद्दों का समाधान समय पर नहीं हो पाता।


4. राष्ट्रीय स्तर की पहचान


अब तक विश्वविद्यालय राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग, प्रतिष्ठित शोध जर्नल और प्रतियोगी परीक्षाओं में विशेष पहचान नहीं बना पाया है।


5. स्थानीय जुड़ाव की कमी


बलिया की कृषि, लघु उद्योग और सांस्कृतिक धरोहर से विश्वविद्यालय का जुड़ाव और गहरा होना चाहिए। यदि स्थानीय आवश्यकताओं से सीधा संबंध बनेगा तो विश्वविद्यालय की प्रासंगिकता बढ़ेगी।


*भविष्य की संभावनाएँ*


1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुरूप विश्वविद्यालय नए पाठ्यक्रम, बहुविषयक अध्ययन और तकनीकी उन्नयन के माध्यम से अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।

2. यदि शोध को बलिया की वास्तविक समस्याओं से जोड़ा जाए—जैसे कृषि सुधार, प्रवासी मजदूरों की स्थिति, गंगा-घाघरा नदी तंत्र—तो यह विश्वविद्यालय राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना सकता है।

3. डिजिटल लाइब्रेरी, ई-लर्निंग और ऑनलाइन शोध मंच तैयार कर छात्रों को वैश्विक शिक्षा से जोड़ा जा सकता है।

4. उद्योगों, कृषि संस्थानों और मीडिया से साझेदारी कर रोजगारोन्मुख शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।

5. आने वाले वर्षों में यदि विश्वविद्यालय स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति और आधारभूत ढाँचे को सुदृढ़ करता है, तो यह पूरे पूर्वांचल का शिक्षा केंद्र बन सकता है।


                   तुलनात्मक दृष्टि

यदि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) या महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जैसे संस्थानों से तुलना करें तो JNCU अभी प्रारम्भिक अवस्था में है। वहाँ का ढाँचा, शोध परंपरा और राष्ट्रीय पहचान कहीं अधिक मजबूत है। लेकिन यह भी सच है कि हर बड़ा विश्वविद्यालय कभी न कभी छोटे स्तर से ही शुरू हुआ था। JNCU के पास भी वैसा ही अवसर है कि वह अपनी राह बनाए।

    समाज और विश्वविद्यालय का संबंध

बलिया का समाज संघर्षशील और जागरूक रहा है। यदि विश्वविद्यालय इस समाज से गहरा जुड़ाव बनाता है तो शिक्षा का लाभ सीधे जनता तक पहुँचेगा। ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा, महिला शिक्षा, स्थानीय पत्रकारिता और सांस्कृतिक आयोजनों में भागीदारी विश्वविद्यालय को समाज के करीब लाएगी।

                प्रासंगिक उद्धरण


1. जननायक चन्द्रशेखर जी ने कहा था

“सत्ता का अर्थ केवल शासन करना नहीं है, बल्कि जनता की आकांक्षाओं को पूरा करना है।”

2. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शब्द—

“शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी भरना नहीं, बल्कि मानव को संपूर्ण बनाना है।”

3. महात्मा गांधी का कथन

“शिक्षा का कार्य व्यक्ति और समाज, दोनों की सेवा करना है।”


                     समीक्षात्मक निष्कर्ष

जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया अभी अपने आरंभिक चरण में है। यह पूर्वांचल के युवाओं के लिए आशा की किरण है। किंतु इसे अपनी शैक्षणिक गुणवत्ता, शोध कार्यों की गहराई, और आधारभूत सुविधाओं को मजबूत करने की आवश्यकता है।


यदि यह विश्वविद्यालय जननायक चन्द्रशेखर जी के नाम के अनुरूप लोकतांत्रिक मूल्यों, समाज सेवा और शिक्षा की रोशनी को आगे बढ़ाता है, तो न केवल बलिया बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश और भारत के लिए यह गौरव का केंद्र बन सकता है।


संदर्भ सूची* (References)


1. उत्तर प्रदेश शासन, उच्च शिक्षा विभाग, जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016, लखनऊ।

2. जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया – आधिकारिक वेबसाइट (www.jncu.ac.in), 2025।

3. सिंह, अजय कुमार (2020), पूर्वांचल में उच्च शिक्षा की चुनौतियाँ, वाराणसी: राजेश पब्लिकेशन।

4. मिश्रा, रामबचन (2019), बलिया का शैक्षणिक परिदृश्य और संभावनाएँ, गोरखपुर: गंगापुस्तकालय।

5. राधाकृष्णन, सर्वपल्ली (1962), भारतीय संस्कृति और शिक्षा, नई दिल्ली: ओक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस।

6. गांधी, मोहनदास करमचंद (1938), हिंद स्वराज, अहमदाबाद: नवजीवन प्रकाशन।

7. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), वार्षिक प्रतिवेदन 2023-24, नई दिल्ली।

8. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020), भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय।