भारत के स्वतंत्रता के इतिहास मे स्वर्ण अक्षरों मे अंकित है बलिया बलिदान दिवस, जाने क्यों
मधुसूदन सिंह
बलिया।। 19 अगस्त 1942 बलिया जनपद के इतिहास को स्वर्ण अक्षरों मे अंकित कराने वाली तिथि साबित हुई। इस दिन बलिया उस अंग्रेजी साम्राज्य से आजाद होने का अजूबा काम किया, जिसके राज मे कहा जाता था कि सूर्यास्त नही होता है।
जिले के कई स्थानों पर कब्जा हो जाने से तथा बांसडीह तहसील से ब्रिटिश हुकुमत समाप्त हो जाने के कारण जनता का हौसला बुलन्द था । 19 तारीख को शहर पर कब्जा करने के लिए नेताओं ने जिले के कोने-कोने का दौरा किया था और लोगों को यह बतला दिया था कि 19 अगस्त को बलिया जिले से ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेकनें के लिए सभी लोग अपने-अपने हथियारों के साथ बलिया पहुँच जायें । 50 हजार की जनता सुबह से ही बलिया शहर में एकत्रित होने लगी इसमें मुसहरों की संख्या भी कम न थी जो साँप, बिच्छू, मेंटे में भर कर गुरिया-गुरदेल के साथ सत्ता के बन्दूकों का जवाब देने आये थे ।
इधर जिले के अधिकारी तहसील, थानों और सरकारी इमारतों पर कब्जा हो जाने के कारण पहले से ही परेशान थे। बलिया के कलक्टर श्री निगम ने बनारस से सशस्त्र सिपाहियों की मांग की थी किन्तु यातायात के साधनों के नष्ट हो जाने के कारण वहाँ से कोई फोर्स न आ सकी। शहर के अन्दर जो कर्मचारी थे, वे पुलिस लाइन में शरण लेने के लिए चले गए। जिले के अधिकारी जेल में बन्द नेताओं से आन्दोलन के सम्बन्ध में जानकारी लेने गए। जिनके साथ श्याम सुन्दर उपाध्याय और नजरुद्दीन खान बहादुर भी थे। इस पर नेताओं ने कहा कि हम पंचायती राज चाहते हैं इसे आप लोग भी मान जायँ नहीं तो यह आन्दोलन और उग्र रुप धारण करेगा और सारे हिन्दुस्तान पर पंचायती हुकूमत कायम हो जायेगी और जो कोई कर्मचारी हमारी हुकूमत नहीं मानेगा, उसे गिरफ्तार कर लिया जायेगा ।
जिलाधीश को जब खुपिया पुलिस की रिपोर्ट मिली कि नगर के विभिन्न सड़कों से जन-समूह उमड़ा हुआ चला आ रहा है और उनका पहला धावा अपने नेताओं को छुड़ाने के लिए जेल पर होने वाला है और उसके बाद खजाने और कचहरी पर भी हमला करने को योजना बनी है,तो जिलाधीश और पुलिस कप्तान घबरा उठे और उन्होंने तय किया कि सभी राजनैतिक बंदियों को जेल से छोड़ दिया जाय । उसी समय उसने बन्दियों को छोड़ने का आदेश दिया। पुलिस कप्तान ने पं० चित्तू पाण्डेय, श्री राधा मोहन सिंह और रामअनंत पांडे से जेल में कहा कि आप लोग इसलिए रिहा किये जा रहे हैं कि आए जन-समूह को समझा-बुझाकर लौट जाने के लिए कहें। नेताओं ने कहा कि हम ऐसा कोई वादा नहीं करते। इस पर जिला मजिस्ट्रेट ने कहा कि कम-से-कम आप जान-माल और खजाने की जिम्मेदारी तो ले सकते हैं। नेताओ ने कहा कि इस समय हम कुछ नहीं कह सकते, पता नहीं कांग्रेस का क्या आदेश है। इस पर जिला मजिस्ट्रेट ने कहा कि आप बाहर जाकर शान्ति स्थापित करें। हमसे कोई मतलब नहीं रहा।
श्री चित्तू पाण्डेय ने कहा कि हम शान्ति स्थापित कर लेंगे। आप इसके लिए निश्चिन्त रहिये। जेल का फाटक उसी समय खुला और सभी कांग्रेस बन्दी नारे लगाते हुए श्री चित्तू पांडे के साथ जेल से बाहर निकल कर हजारों की संख्या में जो लोग बाहर खड़े थे उनसे आ मिले। नेताओं के बाहर आ जाने से उल्लास की लहर छा गयी। ब्रिटिश शासन काल में यह पहला ही मौका था कि जन-समूह के सामने ब्रिटिश सत्ता झुक गयी और उसे न चाहते हुए भी जन-समूह के हमले के भय से जेल का फाटक खोलकर सभी नेताओं को आजाद करना पड़ा ।
खजाने की नोटें जलीं
जन-समूह को हिंसा पर उतारू देखते हुए जिलाधीश ने बलिया खजाना के लूटे जाने के भय से नोटों के नम्बरों को नोट करके आदेश दिया कि सभी नोट जला दिये जायें। नोटें जलने लगीं खजाना के कर्मचारी कुछ नोटों को छिपा लिए । जब जन समूह ने देखा कि नोट जला दिया गया तो खजाने पर हमला न करना ही उचित समझा ।
जन-समूह सरकारी बीज-गोदाम पर पहुंचा और हजारों बोरा गल्ला घण्टे भर के अन्दर बीज-गोदाम से निकाल लिया । देहात से आए हुए लोग गल्ले को उठा कर ले गए। जन-समूह बलिया स्टेशन को भी आग लगा कर फूंक दिया। श्री गंगा प्रसाद गुप्त ने तेल का प्रबन्ध किया था और आग लगाने वालों में ये भी थे।
एक सी० आई० डी०, महेन्द्र प्रसाद जुलूस के साथ ही कुछ नोट करते चला जा रहा था। लोगों के मना करने पर भी वह नहीं माना। इस पर श्री बच्चा लाल, भीरगू कुर्मी और नगीना चौबे ने यह कह कर कि यह खुफिया पुलिस का आदमी है,मारने लगे और मरा हुआ समझ कर छोड़ दिए। गाँव से आए हुए लोग बर्षा में भीगते हुए सारा कार्य करते रहे। जब रात हुई तो वरमाइन निवासी श्री राधा कृष्ण ने हलवाइयों से पूड़ी तैयार करवा कर लोगों को खिलाया। श्री अकलू राम की मिठाई की दुकान जो स्टेशन पर ही थी, उसे लोगों के लिए खुला छोड़ दिया गया और यह कह दिया गया कि लोग अपनी आवश्यकता भर ही मिठाई और पूड़ी उठाते जायें। लोगों ने बड़े ही शान्तिपूर्ण तरीके से अपनी प्रावश्यकता भर ही सामानों को लिया। कुछ लोग आस-पास के गाँवों से आए थे। वे अपने गांव चले गये।19 अगस्त को ही लगभग 500 ने बांसडीह रोड रेलवे स्टेशन पर आक्रमण करके मेज-कुर्सियों और सारे कागजातों को इकट्ठा करके आग लगा दिये। स्टेशन खपरैल का था वह जलने लगा ।
जिले के मुख्यालय पर पूर्ण रूप से कब्जा हो जाने के बाद जनता ने संतोष की सांस ली। जिले के लोग अपने को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र समझने लगे। जिले का कोना-कोना पहले ही स्वतन्त्र हो गया था तथा जिले के प्रशासन को स्थानीय नेताओं ने अपने हाथ में ले लिया था। आवागमन के साधन पहले से ही बन्द हो गए थे और जिले का सम्पर्क जिले के अधिकारियों से टूट गया था। जिले का प्रशासन का भार प० चित्तू पाण्डेय को जिले का कलक्टर घोषित करके यहां की जनता ने दे दिया। श्री चित्तू पाण्डेय ने सभी कांग्रेसी कार्यकर्ताओ को यह आदेश दिया कि प्रत्येक कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्रों में जा कर शान्ति व्यवस्था कायम करें। यदि किसी को कोई रिपोर्ट करनी हो तो वह सीधे मेरे पास करे। जिले के अधिकारी जिले के पुलिस लाइन तक ही अपने को सीमित रखते थे कोई भी सरकारी अहलकार जनता के बीच आने का साहस नही करता था। एक तरह से सभी पुलिस लाइन की सीमा मे नजरबंद थे। जिलाधीश श्री निगम बंगला छोड़कर अपने बाल बच्चों के साथ पुलिस लाइन मे शरण लिए हुए थे।
बलिया के कोतवाल की रिपोर्ट
18 अगस्त सन् 1942 को बांसडीह का थाना, तहसील व खजाना लूट जाने की खबर ने कांग्रेसी बागियों के मंसूबे में चार चाँद लगा दिये। उन्होंने मुन्तजिम होकर सदर के ऊपर हमला करने की पूरी तैयारी कर दी। 19 अगस्त सन् 1942 ई० को दोपहर से हुक्काम की खबर मिली कि सिकन्दरपुर रोड पर और बांसडीह रोट पर आदमियों का हमला हो रहा है और आज जेल कोतवाली और खजाना सदर पर हमला होगा । जुमला लीडरान कांग्रेसी याने चित्तू पाण्डेय, राधा मोहन सिंह, राधा गोविन्द सिंह, राम चन्दर मुख्तार, महानन्द मिश्र मय जुमला दीगर मुल्जिमान के जो इस तहरीक के सिलसिले में उस वक्त तक गिरफ्तार होकर जेल में थे रिहा कर दिये गये और यह सब वशकल जुलूस शहर चले गये। पुलिस को अफसरान वाला ने हिदायत दी कि ये मुल्जिमान बगैरह मुसालहत छोड़े गए हैं उनके मामलात और हरकत में दखल न दिया जावे। बाद में एक मजमा में अनकरी प तखमीनन २-२ ।। हजार आदमी लाठियाँ लिए थे। बाँसडीह सड़क की जानिब से कोतवाली की पूरब वाली सड़क पर आ गये। कोतवाली के पुष्ट पर चढ़ कर उस मजमा को आगे बढ़ने से रोक दिया और अफसरान वाला को जो लाइन में मौजूद थे खबर दी। मज़मा जोश पर था और बकायदा कन्धों पर लाठियाँ रखे ३-३ की कतार में था । 19 अगस्त सन् 1942 को जब कलक्टर साहब ने उसको (पं० चित्तू पान्डेय) सयासी लीडरान के साथ छोड़ा था तो साफ शब्दों में कहा था कि हम चाहते हैं कि हमारी मैगजीन मय खजाना महफूज रहे और इस पर कोई हमला न हो और तुम लोग जो चाहो, करो। इसके बावजूद भी मजहिर मजमें को लुट-मार करने से बराबर रोकता रहा, मगर मजमा उसके काबू का न था ।
जेल से निकलने के बाद नेताओं ने टाउन हाल में एक सभा की सभा के बाद पं० चित्तू पाण्डेय ने लोगों से विध्वंसकारी कार्यों को न करने के लिए कहा किन्तु लोगों ने उनकी बातें नहीं मानी। कुछ नेता बाबू शिव प्रसाद की कोठी में आपस में राय करने के लिए गये। उधर से कुछ नव-युवक आये और उन्होंने एकत्रित जनता के सामने कहा कि हम लोग नेताओं से परामर्श कर आए हैं, हम लोगों को जो करना है उसे करें। लोगों का इतना बड़ा जमाव बार-बार नहीं होगा । इस पर लोग उठ पड़े और जन समूह के रूप में होकर निकल पड़े।
महेन्द्र लाल कां० डी०आई०एस० ने 20 अक्टूबर को अपने बयान में कहा महानन्द मिश्र, प्रसिद्ध नरायन विश्वनाथ चौबे व रामनाथ बरई , मजमे को बराबर इश्तयाल देते और बरगलाते थे । यह तीनों नगीना चौबे, मंगल सिंह परशुराम सिंह मीटिंग से उठ कर शिव प्रसाद के घर लीडरान के मीटिंग में गए जवानी लीडरान से बात-चीत करके वापस टाउनहाल आये और मंजमा से कहे कि हम लोग लीडरान से तय करके आये हैं, आओ जो करना है किया जाय, इसी पर सबने उठ कर लूट-मार शुरू कर दिया ।
बलिया शहर में जो जनता पूर्व से श्री राम नाथ प्रसाद के नेतृत्व में आयी उसने सबसे पहले जापलिनगंज चौकी पर हमला करके एक बन्दूक ले ली। चौकी के सिपाही चौकी छोड़ कर पहले ही भाग चुके थे। कुछ भालों को श्री जगरनाथ राम जिनकी दुकान चौकी के सामने ही थी उठा कर जन-समूह के साथ आगे बढ़ा। जब जन-समूह डा० बब्बन प्रसाद के दवाखाने के सामने पहुंचा तो उनके दवाखाने में तोड़-फोड़ शुरू कर दी क्योंकि उनके सामने लखी नरायन के घर में छिपे हुए कुछ लड़कों को पुलिस में खबर देकर गिरफ्तार कराने का आरोप था। डा० बब्बन प्रसाद घर छोड़ कर दूसरे घर में भाग गए। इसके बाद यही जन समूह राय बहादुर पं० काशी नाथ मिश्र के मकान पर हमला करके घर के सामानों को लूट लिया और उनकी दो बन्दूकें ले ली। उन पर आक्रमण इसलिए हुआ कि उन्होंने श्री राम लखन सिंह तहसीलदार को बनारस जाकर पुलिस लाने के लिए तथा सूचना देने के लिए अपनी कार दी थी।
जन-समूह आगे चलकर टाउनहाल की सभा में जा मिला। वहां से जन-समूह चलकर डिप्टी कलक्टर मि० ओयस जो 12 अगस्त को रेलवे क्रासिंग पर छात्रों के जुलूस पर लाठी चार्ज कराए थे उनके मकान को लूट लिया और पकड़ कर उनकी रिवाल्वर श्री राम नाथ प्रसाद ने ले ली। वहीं पर एक मुन्सफ को भी लोगों ने लूट लिया यद्यपि वह बेगुनाह था। फिर वही जन-समूह डिप्टी कलक्टर श्री कक्कड़ साहब का बंगला भी लूटा और कुछ लोग उनकी कीमती सामानों को उठा लिए। कक्कड़ साहब बंगला छोड़कर भय से पहले ही भाग गए थे।
शहर के अन्दर जितनी भी गांजे-भांग की दुकानें थी वहाँ से गांजे-भांग निकाल कर लोगों ने जला दिया। शराब की दुकानों की बोतलों को चूर-चूर कर दिया और बन्द पीपों को तोड़ कर शराब को नालियों में बहा दिया। जन-समूह ओकडेनगंज पुलिस चौकी की तरफ बढ़ा तो जो सिपाही चौकी पर थे वे पुलिस लाइन की तरफ भाग गये। चौकी के कागजात तथा सामानों में पआग लगा दी गई। पुलिस की एक ट्रक वहां खड़ी थी जिसे फूंक दिया गया।
मैंने बिन्देश्वरी हलवाई साकिन ओकडेनजंज से जो बिलकुल चौकी के मावतसिल रहता है बात-चीत की। चौकी के लूटने का वाक्या बचश्म खुद देखा था। मना करने पर दो लाठी उसको भी लुटेरों ने मारा था। उसने बलवाइयों में बच्चा लाल, उमा सोनार, सूरज कायस्थ, विश्वनाथ वरई, हीरा लाल पंसारी, राम चन्द्र प्रसाद, सुदेश्वर सिंह, रामनाथ वरई, मंगला सिंह व हरिहर सिंह सा० दवनी को देखा था । (डायरी कोतवाली बलिया 20 अक्टूबर 1942 से )
बांसडीह के स्टेशन मास्टर अब्दुल हसन ने 4 फरवरी सन् 1944 को निम्न लिखित बयान दिया
19-20 अगस्त की रात में पांच सौ आदमियों का मजमा बांसडीह रोड स्टेशन पर आया। आकर शोर किया तो मैं स्टेशन पर अपने क्वार्टर से आया । मगर अन्दर स्टेशन जाने से मजमा ने रोक दिया। मजमा ने स्टेशन को फूंक दिया। मुल्जिमान हाजिर अदालत को शरीक जुर्म देखा था और मैंने विश्वनाथ सिंह, राम ध्यान सिंह, सूरज पाठक, नगीना चौबे और गजाधर लोहार को नाम से पहचानता था। मैं उस वक्त वहां स्टेशन मास्टर था। 19 अगस्त की रात में ही लोगों ने गोविन्दपुर के पास रेलवे लाइन का पुल तोड़ा और रेलवे लाइन को उखाड़ दिया ।
बयान धर्मदेव चौकीदार थाना उभाँव 19 अगस्त 1942
आज ज्यों रात हुई करीब 8 बजे रात के 4-5 सौ आदमी कांग्रेसी लोग मोहना, बिगाही, चरौवा , सरयाँ, गोविन्दपुर, विलवी गाँव के रेल के लाइन की पटरी कुदारी हथौड़े से तोड़त रहले। हमके ठाँय ठाय के बोली सुनाईल । हम जाय के देखली तो लोग लाइन के पटरी उखाड़ उखाड़ के फेंक दिहलें । हम उन लोग में से समरबहादुर सिंह सरयाँ, सीऊ अहीर, रजकू अहीर , देव अहीर , सती सिंह, वासुदेव सिंह के पहचान कराइन । यह लोग खम्भा, पटरी उखारत रहलें और खंभा का तार तोड़ के खंबा आधा-आधा तोड़ के गिरा दिहलें। जब ऊपर पानी पड़े लागल तब तोड़-ताड़ के चल गइले । गोविन्दपुर गाँव से इतला करे धइली । हम ई वयान कहली जीन लिखले ।