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चिंतन को बनाएं शुभ एवं निर्मल– युगप्रधान आचार्य महाश्रमण



शांतिदूत के पदार्पण से बड़ौदा में छाई धर्म बयार

आचार्यप्रवर ने किया ध्यान पद्धति को व्याख्यायित

 वडोदरा/बड़ौदा (गुजरात)।।अणुव्रत के संदेशों से जन–जन को प्रमाणिकता, अहिंसा, सद्भाव के प्रति प्रेरित करते हुए मानवता के मसीहा शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का अपनी अणुव्रत यात्रा के साथ आज गुजरात के प्रमुख शहर वडोदरा में पावन पदार्पण हुआ। वडोदरा जिसे बड़ौदा के रूप में भी जाना जाता है। आज यहां आचार्य श्री के पदार्पण से जैन एवं जैनेतर समाज में भी विशेष उल्लास का माहोल दृष्टिगोचर हो रहा था। इससे पूर्व सन् 2002 में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का वडोदरा में पदार्पण हुआ था। उस समय आचार्य श्री महाश्रमण युवाचार्य अवस्था में थे। आज युगप्रधान आचार्य के रूप में प्रथम बार आपके वडोदरा आगमन से मानों श्रावक समाज का उत्साह, उमंग हर्ष हिलोरे ले रहा था। प्रातः आचार्यश्री अंकुर विद्यालय, दशरथ से प्रस्थित हुए। विहार के प्रारंभ से ही वडोदरा वासी आपने आराध्य की आगवानी में यात्रा में सम्मिलित थे। स्थान–स्थान पर जन समूह शांतिदूत का अभिनंदन कर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वडोदरा अध्यात्म की बयार से खिल उठा है। विशाल जुलूस के रूप में श्रद्धालु जन जयघोषों से अपने गुरु की अभिवंदना कर रहे थे। लगभग 11 किलोमीटर विहार कर पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण नक्षत्र बैंक्वेट हॉल में प्रवास हेतु पधारे।



मंगल प्रवचन में प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा– ध्यान की साधना आध्यात्म जगत की एक अच्छी पद्धति है। विभिन्न प्रकार की ध्यान पद्धतियाँ उपयोग में आती है। उनमें एक है प्रेक्षाध्यान की पद्धति। प्रेक्षाध्यान आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का अवदान है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने अनेक ध्यान शिविरों का संचालन किया, वे ध्यान पर प्रायः प्रवचन भी करते व गुरुदेव तुलसी भी समय–समय ध्यान के बारे में फरमाते। ध्यान के चार प्रकारों का आगम शास्त्रों में उल्लेख मिलता है – आर्त ध्यान, रोद्र ध्यान, धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान। इनमें पहले दो ध्यान अशुभ व दूसरे दो ध्यान शुभ होते है। ध्यान शब्द मानसिक चिंतन से अनुभूत हुआ शब्द है। ध्यान में मन, वचन और काया की शुद्धि करना व इनकी चंचलता को नियंत्रित करना शामिल होता है। 








आचार्य श्री ने आगे कहा कि हमारा मन इतना चंचल है कि उसमें निरंतर विचारों का प्रवाह चलता रहता है। मन की चंचलता का निग्रह करके उसे नियंत्रित करना बड़ा दुष्कर कार्य है, पर दुष्कर होते हुए भी उसे अभ्यास व वैराग्य द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। हम अपने चिंतन को शुभ व निर्मल धारा की ओर प्रवाहित करते रहें। सामायिक में शरीर, वाणी व मन को धार्मिक बिन्दुओं पर एकाग्र करने का प्रयास किया जाता है। फिर भी एक बार में सफलता न मिले तो लगातार प्रयास करते रहना चाहिए। हमारा चिंतन निर्मल एवं विधायक रहे।

वडोदरा पदार्पण के संदर्भ में गुरुदेव ने कहा – लगभग 20 वर्षों के अंतराल से वडोदरा में आना हुआ है। यहां की जनता में खूब अच्छी धार्मिक जागरणा रहे। सद्भावना, नैतिकता , नशामुक्ति के संस्कार पुष्ट होते रहे। 


इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने सारगर्भित उद्बोधन प्रदान किया। स्वागत के क्रम में स्थानीय भाजपा अध्यक्ष श्री विजयभाई शाह, तेरापंथ सभा अध्यक्ष श्री हस्तीमल मेहता, अणुव्रत समिति अध्यक्ष श्री संतोष सिंघी, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम अध्यक्ष श्री अजय सुराणा, युवक परिषद अध्यक्ष श्री पंकज बोल्या, महिला मंडल अध्यक्षा श्रीमती गीता श्रीमाल, श्री दीपक श्रीमाल आदि ने अपने विचारों की प्रस्तुति दी। वडोदरा श्रावक समाज, युवक परिषद, महिला मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने पृथक–पृथक सामुहिक गीतों का संगान किया। ज्ञानार्थियों ने नाटिका की भी प्रस्तुति दी।


   स्वागत

जरा , तू जरा

धीमे - धीमे आ

गर चलना है साथ क्षितिज तक

तो शांत - शांत आ

आ तू चाल में आ

तू ढ़ाल में आ

तू चेहरे पे आ

तू तन पर आ

पर मन को ना छूना

मेरे विचारों को ना छूना

जब रहना है संग - संग

तो क्या गिला क्या शिकवा

तू आ भले ही आ

पर जवानी की तरह आना

उसने भी साथ निभाया

तुम भी निभा जाना

स्वागत है तुम्हारा

आना

मगर धीमे - धीमे आना।



      चंदा मुणोत , कोलकाता