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मारीशस साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर के पूर्वजों का गांव है बलिया का "गंगौली"


 



आलेख : राजेश कुमार सिंह श्रेयस 

बलिया।।जनसंख्या और अन्य सांस्कृतिक,भौगोलिक एवं राजनैतिक  दृष्टिकोण से भारत गणराज्य के सबसे बड़े  एवं महत्त्वपूर्ण राज्य उत्तरप्रदेश के पूर्वी छोर पर स्थित जनपद बलिया गंगा, घाघरा एवं तमसा जैसी नदियों के मध्य बसा है। इसकी सीमा बिहार राज्य के जनपद, आरा, बक्सर, भोजपुर छपरा (सारण ) एवं सिवान जनपद से एवं उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद गाजीपुर, देवरिया एवं मऊ से लगती हैं। पूर्ववर्ती जनपद बलिया कभी जनपद गाजीपुर का एक हिस्सा हुआ करता था, जो 1 नवम्बर सन  1879 में पृथक जनपद बन गया।

सांस्कृतिक एवं पौराणिक मान्यता के अनुसार यह भाग असुर राज दानवीर राजा बलि की राजधानी हुआ करता था। कई मान्यता के अनुसार बलिया स्थिति बलिश्वर ( बालेश्वर ) महादेव मंदिर की स्थापना राजा बलि ने ही किया था। बलिया महर्षि भृगु की तपोभूमि के रूप में भी विख्यात रहा है। इसे लिये इस भूभाग /क्षेत्र को भृगुक्षेत्र भी कहा जाता है। अंग्रेजी शासन काल के विरुद्ध वर्ष 1857 में होने वाले प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में बलिया के सपूत पंडित मंगल पाण्डेय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, जिन्होंने अंग्रेजी सेना में रहते हुए, बगावत कर दी और अपने अंग्रेज ऑफिसर को गोली मार दी। जिसके बाद उन्हें भी फांसी की सजा सुनाई गयी। तब से बलिया को बागी बलिया के रूप में जाना जाने लगा। वर्ष 1942 में बलिया क्रन्तिकारी वीर श्री चित्तू पाण्डेय जी के नेतृत्व में तेरह दिनों के लिये आजाद हो गया।

भारत की राजनीति में अपनी अलग छवि रखने वाले भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्व चंद्रशेखर जनपद बलिया से ही आते हैं। पूर्ववर्ती जनपद बलिया में कुल तीन तहसीले हुआ करती थी, जो क्रमशः बलिया, बॉसडीह, रसड़ा के नाम से जानी जाती थीं। कालान्तर में इन तहसीलो की संख्या बढ़ कर पांच हो गयी।

मारीशस में जन्मे हिंदी गद्य साहित्य के मुर्धन्य ,उपान्यासकार,कथाकार एवं नाट्यकार श्री रामदेव धुरंधर जिनके पूर्वज अठारहवी सदी में गिरमिटिया मजदूर के रूप में भारत से मारीशस चले गये, जहाँ उन्होंने जीवन के अनेक संघर्ष को झेलते हुए  ना सिर्फ अपने पसीने के दम पर गन्ने के खेतों में जम कर काम किया बल्कि कठिन यातानाएं, झेलते हुए, स्वयं को शिक्षा, कला, साहित्य,राजनीति,के क्षेत्र में पुनरस्थापित किया। आज इन भारतीय पूर्वज के वंशज मारीशस देश के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य भी कर रहे है।आदरणीय धुरंधर जी, जब अपने पूर्वजों के द्वारा प्राप्त सम्बंधित दस्तावेजों को खघालते हुए फोन पर बताते है, कि "राजेश जो कागज़ मेरे हाथ में है, उसपर मेरे दादा जी का भारतीय परिचय कुछ ऐसे लिखा है...

जिला गाजीपुर . परगना बलिया,  का गांव गंगौली है। इसे सुनकर मेरा मन अत्यंत प्रसन्न हो जाता है, क्योंकि मुझे ज्ञात ही है कि जनपद बलिया 1879 से पूर्व जनपद गाजीपुर का ही हिस्सा था, जो यह दस्तावेज भी कहता है।

अब मुझे पूरा विश्वास हो जाता है कि हिंदी गद्य साहित्य के इस पुरोधा के पूर्वजों का मूल गांव कहीं न कहीं मेरे गृह जनपद बलिया से है। उस बलिया में है,जो महान साहित्यकार डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी,आचार्य परशुराम चतुर्वेदी एवं आधुनिक हिंदी साहित्यकार डा. केदारनाथ सिंह जी की जन्मस्थली रही है।यह बलिया के साहित्य जगत का सौभाग्य हुआ।



अब मेरा मिशन अपने जनपद बलिया में गंगौली  को ढूढना और इस विषय में और अधिक जानकारी जुटाना था। मैंने दूरभाष के माध्यम से अपने मित्रों से सहयोग लेना शुरू किया। मै अपने मित्र एवं प्रखर विचारक श्री विपिन बिहारी सिंह जी (बकवा ) से संपर्क किया जिनसे कुछ एक जानकारिया मिली। इसमे सबसे ख़ास बात यह समझ में आयी कि यह स्थान (गंगौली) बॉसडीह तहसील का उपगांव गंगौली तो नही है, बल्कि यह वह प्राचीनतम गांव गंगौली है, जो रामगढ़ बंधे के बगल में  गंगा के किनारे बसा गांव गंगौली है, जो अब अस्तित्व में नही है और गंगा में विलीन हो गया है। मुझे मेरे मित्र और जनपद बलिया के प्रतिष्ठित विद्यालय सनबीम स्कूल के डायरेक्टर डॉ अरुण कुमार सिंह गामा जी ने बताया कि सरकारी दास्तावेजो में आज भी गंगौली के रूप में दर्ज यह गांव आज से करीब चार पांच साल पूर्व गंगा कटान में गंगा में समा गया। यहाँ के लोग बंधे के निकट नये टोले केहरपुर या सुघर छपरा में आकर बस गए। बड़ी खूबसूरत बात यह है कि ये लोग अब भी अपने नये पते को गंगौली सुघर छपरा के रूप में बोलते हैं। यानि उनका गंगौली आज भी उनके साथ जुड़ा है।इस विषय में मैंने और भी जानकारी जुटाई। जिसके क्रम में मैं अपने आध्यात्मिक गुरूजी श्री दिवाकर तिवारी जी "श्रीनगर" नजदीक दलछपरा से बात की एवं चितरंजन राय,  बिहार से बात की। मुझे सभी लोगों के एक जैसे ही बयान लगे। मेरी उत्सुकता अब आगे कों बढ़ रही थी, क्योंकि मुझे आदरणीय रामदेव धुरंधर जी के परदादा स्व. श्री धुरंधर जी के जन्मस्थान की पूरी खोज और पड़ताल करनी थी। उनके इस गांव की खोज का मतलब मेरा एक अलग साहित्यिक प्रयोग भी था कि कैसे एक नवोदित साहित्यकार अपनी लगन और निष्ठा के दम के दम पर एक ऐसे साहित्यकार के गांव को ढूढ़ निकालने का अथक प्रयास करता है जिसके पूर्वज आज से दो सौ वर्ष पूर्व अपनी जन्मभूमि भारत से गिरमिटिया मजदूरों के रूप में देश से हजारों मिल दूर समुद्री टापूओ के देश में गए थे।










आज जब मैं एक पारिवारिक कार्यक्रम के सिलसिले में बलिया आ गया था। यह कार्यक्रम मेरे लिये दारूणिक था, क्योंकि मेरे अग्रज अब नही रहे लेकिन यह भी सत्य है कि विधि के विधान को कोई टाल भी तो नही सकता है,फिर भी इस पीड़ा के मध्य मैंने अपने इस मिशन पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया। आज मैंने सुबह सुबह रामदेव जी से बात भी की और उनसे कुछ फोटो ग्राफ एवं उन पुराने सरकारी दास्तावेजों मांगे, जो उनके दादा जी के मारीशस जाने के वक्त के थे। धुरंधर जी के मन में भी उत्सुकता थी। किसे उत्सुकता नही होती है, अपनी मातृभूमि के विषय में जानने और देखने की। यह तो उनके पूर्वजों की उस मिट्टी की खोज की बात थी जिन्हें उनके दादा ने दो सौ वर्ष पूर्व छोड़ा था। जिस दस्तावेज की फोटो धुरंधर जी ने मुझे भेजा, वह दस्तावेज महात्मा गांधी इंस्टिट्यूट मोका मारीशस की लाइब्रेरी से जारी ऑफिसियल डाक्योंमेंट था। जिसमे धुरंधर जी के दादा जी श्री धुरंधर का डिटेल था। श्री रामदेव धुरंधर के परदादा धुरंधर जी जब  पहली बार मारीशस पहुचे थे तो वह तिथि थी 02-02-1858, मैं इस डाक्योंमेंट की एक एक पंक्तियाँ बड़े ही ध्यान से पढ रहा था। मेरी उत्सुकता एड्रेस को लेकर ज्यादा ही थी। इस डाक्योंमेंट में जो अड्रेस दर्ज था, वह कुछ इस प्रकार था..

Zillah - Gauzeepor

Pargunah - Baleea

Village - Gungouly

( बताते चले कि बलिया  1979 से पूर्व जनपद गाजीपुर का ही भाग था )डाक्योंमेंट के अंग्रेजी शब्द मारीशस के अंग्रेजी शब्द एवं उच्चारण जैसे ही थे।

हम श्री रामदेव धुरंधर कों  अंग्रेजी में Ramdeo Dhurandhar लिखेंगे, जबकि मारीशस की इंग्लिश स्पेलिंग होगी Ramdeo Dhoorundhur. भारत में श्री वीरसेन जगा सिंह को Veersen Jaga Singh लिखेंगे.. मारीशस में इसी नाम को Beersen Jugasing लिखते हैं।

खैर इस बर्तनी से मुझे ज्यादा मतलब नही रखना। अब मुझे श्री रामदेव धुरंधर जी के परदादा जी के मूल गांव का पूरा पता मिल गया था। मैंने फिर अपने मित्र डॉ अरुण कुमार सिंह "गामा सिंह " से संपर्क किया। मुझे गंगोली के प्रधान जी के पुत्र सोनू सिंह का फोन नंबर मिल गया था। मैंने सारी बातें सोनू सिंह को भी बता दी। गंगोली जाने और वहां के प्रधान जी (श्री विजेंद्र सिंह ) से मिलने का पूरा कार्यक्रम तैयार हो चुका था। मुझे अब नींद नही आ रही थी। बस कल सुबह मेरे मन में गंगोली पहुंचने की उत्सुकता उछाल मार रही थी। वैसे तो मैं अनेकों बार इस रूट से बैरिया, सोनवर्षा एवं मुरली छपरा आदि स्थानों पर गया हूँ, लेकिन इस उद्देश्य से मेरी यह  प्रथम एवं ख़ास यात्रा होने वाली थी।

आज सुबह सुबह (03-10-2022 ) मैं और मेरे समीपवर्ती गांव गोपालपुर के रहने वाले ब्राह्मण युवक श्री अनुराग चतुर्वेदी जी अपनी इस अनोखी एवं उत्सुकता भरी यात्रा पर निकल चुके थे।बहुत कुछ चर्चा के बाद हम दोनों दलपत पुर, दया छपरा होते हुए गंगौली की ऒर चल दिए। रामगढ़ बंधे पर पहुंचते ही हमने बंधे से उस स्थान का विशेष जायजा लिया, जिसके तीर पर गंगौली अवस्थित है। हमारी नजरों के सामने गंगा का विशाल पाट था। बंधे के पास बाढ़ की कटान को रोकने के लिये बड़े बड़े पत्थरों से बोल्डर के साथ ठोंकर बनाए गए थे। गंगा के रौद्र रूप का यहाँ आपको दर्शन इस लिये होगा कि इस इलाके में गंगा ने शुरू से ही भारी कटान करती रही हैं। जनपद बलिया का यह भूभाग जिसे द्वाबा (गंगा ऒर घाघरा के मध्य का भाग ) कहते हैं,  पूर्व से ही यह क्षेत्र बाढ़ से ग्रसित क्षेत्र रहा है, जिसके कारण इनके गावों का अस्तित्व को समाप्त होता रहा है, लेकिन यहाँ के लोग इस तबाही से कभी हार नही माने और बाढ़ के जाने के बाद ये पुनः छप्पर डाल कर नये सिरे से एक गांव की बस्ती बसा लेते थे। इसी कारण इन गावों नामकरण दूबे छपरा, दल छपरा, गोंहिया छपरा , दया छपरा आदि छपरा नामों से होता रहा है। कुछ गांव गंगा के बीच बड़े ऊँचाई पर बसे थे, जिसमे कालान्तर में लोगो ने अपने आलीशान एवं पक्के मकान भी बनाकर रहने लगे।

लेकिन तब भी द्वाबा के कुछ गांव जो बंधे के उस पार बड़ी ऊँचाई पर बसे थे, वे अपने अस्तित्व के साथ खड़े थे। उन गावों में ही रामदेव धुरंधर जी का गाँव गंगौली, केहरपुर, श्रीनगर, सुघर छपरा आदि रहे। लेकिन गंगा के इस कटान ने अंततोगात्वा इन गावों को  भी नही छोड़ा। जैसा कि हमें बताया गया कि शायद वर्ष 2011 की रौद्र बाढ़ में गंगौली और 2013 में केहरपुर ये दोनों गांव बाढ़ की कटान में  गंगा में समा गए, लेकिन इस माटी के लोगों ने न ही गंगा से नाता छोड़ा न ही अपना गांव छोड़ा। कहते हैं कि गंगा काटते आयी, और गांव बसता रहा। कई बार गंगौली भी बसा, लेकिन यहाँ के वासिंदे अपने इसी गांव के नाम के अस्तित्व साथ एक जुट बने रहे।आज भी इसी नाम से यह ग्राम पंचायत राजस्व अभिलेख और ग्राम सभा के रूप में मौजूद है, जो बंधे के दूसरी तरफ बसा हुआ है। इस बंधे के ऊपर ही बलिया -बैरिया राजमार्ग बना हुआ है। इस गांव के प्रधान श्री बिजेंद्र सिंह जी से हमें मिलना था लेकिन उनसे मुलाक़ात नही हुई। इसी गांव सभा के एक युवक की गंगा में डूबने से मौत हो गयी थी। जिसके पोस्टमार्टम आदि के सिलसिले में उन्हें जिला मुख्यालय बलिया जाना पड़ गया था।

  खैर हमारी लम्बी बात गंगौली ग्राम सभा के सुरेंद्र सिंह जी से और केहर पुर के श्री अवधेश कुमार ओझा जी से हुई। जब इन लोगों को इस बात की जानकारी हुई कि प्राख्यात साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का भी गांव गंगौली है तो वे ख़ुशी से गदगद हो उठे। जब साहित्य की बात चली तो डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जिक्र आया। श्री ओझा जी बताते हैं कि उन्होंने द्विवेदी जी की चार किताबें पढ़ी हैं। उनके पास ये पुस्तकें थीं लेकिन यह बताते बताते काफी दुःखी हो गए कि ये सारी पुस्तकें भी कटान के दौरान गंगा जी में समा गयी। जब मैं अपने मोबाइल फोन से श्री रामदेव धुरंधर जी का एक इंटरव्यू जो अभी अभी उनके मारीशस स्थित घर में हुआ था उसे अपने मोबाइल में दिखा रहा था तो ये सभी बड़ी उत्सुकता से इस पूरे इंटरव्यू के एपिसोड को देख रहे थे।

इसी गांव के एक और नागरिक एवं इलाके के प्रतिष्ठित पत्रकार श्री अनिल कुमार सिंह से इस विषय पर लम्बी बात हुई। उन्होंने ढेर सारी जानकारियों से हमें अवगत कराया।इसके अलावा जो सबसे बड़ी बात निकल कर आयी वह यह रही कि बलिया में जन्मे हिंदी साहित्य के अधिकांश मूर्धन्य हस्तियों  का गांव गंगा के किनारे  ही रहा है। जैसे आचार्य डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का गांव ओझवालिया, डा. केदार नाथ सिंह जी का गांव चकिया, गंगा के किनारे बसा है तो वहीं हिंदी साहित्य के दूसरे विद्वान् एवं महान साहित्यकार आचार्य परशुराम चतुर्वेदी का गंगा पार जवही दियर है। वही मारीशस में जन्मे हिंदी के विद्वान् एवं साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर के पूर्वजों का गाँव   गंगौली भी गंगा के तीर पर ही बसा है, यह भी एक सुखद संयोग ही है।

ये सारे तथ्य इस बात की पुष्टि करने के लिये काफी हैं कि पतित पावनी गंगा ना सिर्फ अपनी औषधीय गुण एवं मृदा उर्वरा के लिये जानी जाती हैं बल्कि इनकी पावन धारा से साहित्य गंगा की भी धार भी निकली हैं, जिन्होंने अनेकों साहित्य पुत्रों को जन्म दिया है l


राजेश कुमार सिंह "श्रेयस"

लखनऊ /बलिया