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योगी सरकार के शासनादेश को धत्ता बताते हुए पूर्वांचल विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालय में किया गया स्ववित्तपोषित शिक्षक का अवैधानिक निष्कासन

 



महंथ रामाश्रय दास पीजी कॉलेज भुड़कुड़ा गाजीपुर के प्राचार्य प्रबन्धक की कथित कहानी

वेतन व ईपीएफ की मांग पर स्ववित्तपोषित शिक्षक डॉ धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव को 15 वर्ष बाद किया गया निष्कासित

डॉ सुनील कुमार ओझा की रिपोर्ट

गाजीपुर ।। मामला पूर्वांचल विश्वविद्यालय से सम्बद्ध जनपद गाजीपुर के एडेड डिग्री कालेज महन्थ रामाश्रय दास पीजी कॉलेज भुड़कुड़ा से जुड़ा हुआ है। सूत्रों के अनुसार इस विद्यालय के प्रबन्धक पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर यूपी सिंह के पुत्र डॉ बी के सिंह है।यही कारण है कि इन्होने अपने ऊँचे रसूख के चलते न सिर्फ योगी सरकार द्वारा पूर्व मे जारी शासनादेश को धत्ता बताते हुए शिक्षक को निष्कासित किया बल्कि अपने पिता के रसूख का प्रयोग करते हुए पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति से भी अनुमोदन प्राप्त कर लिया।

15 साल की सेवा एक झटके मे समाप्त 

बता दे कि महाविद्यालय के राजनीति विज्ञान विषय में दिनांक 07.01.2006 को गठित विषय विशेषज्ञ समिति के द्वारा दिनांक 07.02.2007 को डॉ धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव का 05 वर्ष की संविदा के आधार पर अनुमोदन प्रदान किया जाता है। जिसे क्रमश: 02.03.2012, 02.03.2017 एवं 02.03.2022 तक विस्तारित किया जाता है।  

शासनादेश का उल्लंघन 

हास्यास्पद तथ्य यह है कि जब वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रथम कार्यकाल में उच्च शिक्षा मंत्री डॉ दिनेश शर्मा की अध्यक्षता में स्ववित्तपोषित योजना के निमित्त पूर्व के निर्गत समस्त शासनादेशो को समाहित करते हैं शासनादेश दिनांक 13.03.2020 निर्गत किया गया है जिसमें स्पष्ट उल्लिखित है कि स्ववित्तपोषित शिक्षक की सेवा पाठ्यक्रम/विषय के संचालन तक व अधिवर्षता आयु पूर्ण होने तक निरन्तर जारी रहेगी,तो फिर पूर्वांचल विश्वविद्यालय द्वारा गठित कार्य परिषद के द्वारा कार्य परिषद के निर्णय क्रमांक 3.घ के अन्तर्गत किस आधार पर प्रावधानित किया गया है कि पूर्व की संविदा समाप्ति के बाद नवीन संविदा विस्तारण प्रदान किया जायेगा ?








कुलपति के अनुमोदन पर भी उठे सवाल, आख्या पर ही सवाल 

दूसरी तरफ कुलपति द्वारा शिक्षक डॉ धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव के विरूद्ध स्वीकार की गयी प्रबन्धक की आख्या में स्पष्ट उल्लेख है कि राजनीति विज्ञान विषय की छात्र संख्या विगत तीन शैक्षणिक सत्र से निरन्तर घट रही है और शिक्षक डॉ धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव की उपस्थिति महाविद्यालय में उपस्थित 50% भी नहीं रहती है। अब तो सवाल तो यही है कि छात्र संख्या निरन्तर घट रही है, शून्य नहीं हुई, निष्कासन के पूर्व व पश्चात में विषय संचालित है, और शासनादेश के अनुसार डॉ धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव की अधिवर्षता आयु पूर्ण नहीं हुई है, और यदि विगत तीन शैक्षणिक सत्र से डॉ धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव की  महाविद्यालय में उपस्थित 50% ही है तो फिर प्राचार्य प्रबन्धक द्वारा विगत तीन वर्षों में डॉ धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव को 540(50% के सापेक्ष कुल 1095 दिवसों में से 547 दिन का कौन सा अवकाश किस आधार पर और क्यों दिया जाता रहा है ? दूसरी तरफ विश्वविद्यालय कार्य परिषद व कुलपति द्वारा डॉ धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव की 50% उपस्थित के सापेक्ष महाविद्यालय उपस्थित पंजिका अवलोकन हेतु मांगी गयी थी किन्तु निष्कासन आख्या 17.12.2022 में इस बात का कहीं उल्लेख तक नहीं है कि महाविद्यालय प्रबंधन ने उपस्थित पंजिका उपलब्ध किया या नहीं, फिर भी निर्णय पारित कर दिया गया।







वेतन वृद्धि की मांग ने करायी सेवा समाप्ति 

वास्तविकता तो यह है डॉ धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव द्वारा बढ़ती हुई मंहगाई व विपन्न जीवनचर्या के गुजारें के लिए महाविद्यालय प्रबन्धक व प्राचार्य से वेतन वृद्धि की मांग करना ही निष्कासन करने की सम्पूर्ण पटकथा के मूल में है। सम्बंधित पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि महन्थ रामाश्रय दास पीजी कॉलेज भुड़कुड़ा गाजीपुर के प्रबन्धक के सत्तासीन रसूख के आगे नतमस्तक होकर कुलपति पूर्वांचल विश्वविद्यालय व कार्यपरिषद के सदस्यों ने नियम संविधान व शासनादेश की धज्जियां उड़ाते हुए महाविद्यालय प्रबन्धन की चरणबन्दना में स्ववित्तपोषित शिक्षक डॉ धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव के निष्कासन पर अपनी अवैधानिक मुहर लगा कर विगत 15 वर्षों से कार्यरत स्ववित्तपोषित शिक्षक को बेघर कर दिया गया।