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प्रशिक्षणाधीन एएनएम ने सेवा के प्रति ली शपथ, सीडीओ ने दिलायी शपथ



मधुसूदन सिंह

बलिया।। फ्लोरेंस नाइटिंगेल का उदाहरण देकर एएनएम ट्रेनिंग सेंटर मे ट्रेनिंग ले रही सभी 48 प्रशिक्षणार्थी एएनएम को नर्सिंग मे सेवा को दया के भाव के साथ करने की शपथ दिलायी गयी।एबता दे कि एनएम ट्रेनिंग सेंटर बलिया में एएनएम का प्रशिक्षण चल रहा है। एएनएम प्रशिक्षण प्राप्त कर रही सभी छात्राओं के लिये शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन शनिवार को किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रवीण वर्मा मुख्य विकास अधिकारी ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ करने के साथ ही फ्लोरेंस नाइटिंगेल के चित्र पर माल्यार्पण किया गया।आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत टि्वटर इंचार्ज मंजू सिंह ने बुके प्रदान कर किया।

कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए डॉ अभिषेक मिश्रा ने बताया कि एएनएम प्रशिक्षण के दौरान आप सभी प्रैक्टिस के लिए जिला महिला चिकित्सालय व सीएचसी पर जाएंगी। वहाँ जाने से पूर्व  सेवा कार्य के लिए शपथ ग्रहण समारोह आयोजित है।

 मुख्य अतिथि प्रवीण वर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि एएनएम गर्भवती महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य एवं टीकाकरण हेतु महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। जिनके प्रयासों से प्रसव पूर्व जांच सेवाएं महिलाओं को प्राप्त होती है। इससे मातृ मृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दर में निरंतर कमी आ रही है। सभी प्रशिक्षण रत एएनएम को शुभकामनाएं देते हुए उन्हें सेवा भाव से महिलाओं एवं बच्चों के देखभाल हेतु प्रेरित किया।

 मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ सुमिता सिन्हा ने कहा कि एएनएम के कार्य एवं उत्तरदायित्व के निर्वहन हेतु सभी के मन में दया का भाव होना चाहिए।मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ दिवाकर सिंह प्रभारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आनंद कुमार,डॉक्टर आरबी यादव ने भी अपने अपने विचार व्यक्त करते हुए सभी एएनएम के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त किया।

 कार्यक्रम में प्रशिक्षण लेने वाली एएनएम ने कैंडल जलाकर शपथ ग्रहण किया। कार्यक्रम का संचालन सुश्री रूचि मौर्य और ज्योति सिंह ट्विटर द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने मे पीएचएन ट्यूटर रजनी सिंह रविंद्र सिंह जितेंद्र कुमार तथा महिमा चौहान ने अपना योगदान दिया।

 इस अवसर पर जिला मलेरिया अधिकारी सुनील कुमार यादव द्वारा संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम तथा मोहम्मद आजम साइकाइट्रिक सोशल वर्कर ने मानसिक स्वास्थ्य के बारे मे जानकारी दी। अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन डॉ अभिषेक मिश्रा ने किया ।



नर्सो को क्यों दिलाई जाती है फ्लोरेंस नाइटिंगेल के नाम पर शपथ, कौन थी फ्लोरेंस नाइटिंगेल?

फ्लोरेंस नाइटिंगेल (Florence Nightingale) का जन्म 12 मई सन् 1820 को हुआ था। फ्लोरेंस की याद में उनके जन्मदिन पर हर साल 12 मई को वर्ल्ड नर्सिंग डे के रूप में मनाया जाता है। जिंदगीभर बीमार और रोगियों की सेवा करने वाली फ्लोरेंस का अपना बचपन बीमारी और शारीरीक कमजोरी की चपेट में रहा। फ्लोरेंस के हाथ बहुत कमजोर थे। इसलिए वह ग्यारह साल की उम्र तक लिखना ही नहीं सीख सकी। बाद में फ्लोरेंस ने लैटिन, ग्रीक, गणित की औपचारिक शिक्षा ली। गणित फ्लोरेंस का प्रिय विषय हुआ करता था।


17 साल की उम्र में जब फ्लोरेंस ने अपनी मां से कहा कि वो आगे गणित पढ़ना चाहती है तब उनकी मां ने यह कहकर उनका विरोध किया कि गणित औरतों के पढ़ने का विषय नहीं होता है। बहुत दिनों तक परिवारजनों को मनाने के बाद आखिरकार फ्लोरेंस को गणित पढ़ने की इजाजत मिल ही गई। 22 साल की उम्र में फ्लोरेंस ने नर्सिंग को अपना करियर बनाने का फैसला किया। उन दिनों अच्छे घर की लड़कियां नर्स बनने के बारे में सोचती भी नहीं थी । उस पर से फ्लोरेंस एक संपन्न परिवार की लड़की थी। उनका यह फैसला उनके परिवारवालों को पसंद नहीं आया।








सन् 1854 में ब्रिटेन, फ्रांस और तुर्की ने रूस के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। युद्ध में घायलों के उपचार के लिए कोई सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी। वहां के अस्पतालों में गंदगी पसरी हुई थी। वहां की स्थिति इतनी विकट थी कि घाव पर बांधने के लिए पट्टीयां भी उपलब्ध नहीं हो पा रही थी। देश की रक्षा के खातिर सीमा पर लड़ रहे सैनिकों की इतनी दयनीय दशा होने के बावजूद वहां की सेना महिलाओं को बतौर नर्स नियुक्त करने के पक्ष में नहीं थी।

 आखिरकार फ्लोरेंस अपनी महिला नर्सों के समूह के साथ अधिकारिक रूप से युद्धस्थल पर पहुंची। वहां पर भी उन सभी को केवल इसलिए उपेक्षा का सामना करना पड़ा क्योकि वे महिलाएं थी। इस बीच रूस ने जवाबी हमला कर दिया। रूस के सैनिकों की संख्या 50,000 थी, जिनका सामना केवल 8000 ब्रिटीश सैनिकों ने किया।नतीजतन छह घंटों में 2500 ब्रिटीश सैनिक घायल हो गए। अस्पतालों की दशा पहले से ज्यादा दयनीय हो गई।


ऐसे समय में फ्लोरेंस नाइटेंगल के मार्गदर्शन में सभी नर्से जख्मी सैनिकों की सेवा में जुट गई। वे दिन-रात एक कर सैनिकों का उपचार करने में मदद करती रही । अस्पताल की साफ सफाई से लेकर मरहम-पट्टी तक का काम उन्होंने किया। वे मरीजों के लिए खाना भी खुद बनाती थी। उनके सोने के लिए एक कमरा तक नहीं था ।

 इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी वे घायलों की सेवा में जुटी रही। इसी दौरान फ्लोरेंस ने आंकडे व्यवस्थित ढंग से एकत्रित करने की व्यवस्था बनाई। अपने गणित के ज्ञान का प्रयोग करते हुए फ्लोरेंस ने जब मृत्युदर की गणना की तो पता चला कि साफ-सफाई पर ध्यान देने से मृत्युदर साठ प्रतिशत कम हो गई है। नाइटेंगल की सेवा को देखकर सैन्य अधिकारियों का रवैया भी बदल गया। इस मेहनत और समर्पण के लिए फ्लोरेंस का सार्वजनिक रूप से सम्मान किया गया और जनता ने धन एकत्रित करके फ्लोरेंस को पहुंचाया ताकि वह अपना काम निरंतर कर सके।

युद्ध के खात्मे के बाद भी चलता रहा सेवा कार्य 

 युद्ध खत्म होने के बाद भी वे गंभीर रूप से घायल सैनिकों की सेवा और सेना के अस्पतालों की दशा सुधारने के अपने काम में लगी रही। सन 1858 में उनकी काम की सराहना रानी विक्टोरिया और प्रिंस अल्बर्ट ने भी की। सन् 1860 में फ्लोरेंस के अथक प्रयासों का सुखद परिणाम आर्मी मेडिकल स्कूल की स्थापना के रूप में मिला। इसी वर्ष में फ्लोरेंस ने नाइटेंगल ट्रेनिंग स्कूल की स्थापना की। इसी साल फ्लोरेंस ने नोट्स ऑन नर्सिंग नाम की पुस्तक का प्रकाशन किया। यह नर्सिंग पाठ्यक्रम के लिए लिखी गई विश्व की पहली पुस्तक है।

रोग से ग्रसित होकर बेड पर होने के बाद भी किया अभूतपूर्व कार्य 

रोगियों और दुखियों की सेवा करने वाली फ्लोरेंस खुद भी 1861 में किसी रोग का शिकार हो गई। इसकी वजह से वे छह सालों तक चल नहीं सकी। इस दौरान भी उनकी सक्रियता बनी रही। वे अस्पतालों के डिजाइन और चिकित्सा उपकरणों को विकसित करने की दिशा में काम करती रही। साथ में उनका लेखन कार्य भी जारी रहा।

 उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, बीमारों और दुखियों की सेवा में समर्पित किया। इसके साथ ही उन्होंने नर्सिंग के काम को समाज मे 'सम्मानजनक स्थान दिलवाया। इससे पूर्व नर्सिंग के काम को हिकारत की नजरों से देखा जाता था। फ्लोरेंस के इस योगदान के लिए सन 1907 में किंग एडवर्ड ने उन्हें आर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया। आर्डर ऑफ मेरिट पाने वाली पहली महिला फ्लोरेंस नाइटेंगल ही है।

लालटेन लेकर रातों मे करती थी मरीजों की सेवा 

फ्लोरेंस नाइटेंगल के बारे में कहा जाता हैं, कि वह रात के समय अपने हाथों में लालटेन लेकर अस्पताल का चक्कर लगाया करती थी। उन दिनों बिजली के उपकरण नहीं थे, फ्लोरेंस को अपने मरीजों की इतनी फिक्र हुआ करती थी कि दिनभर उनकी देखभाल करने के बावजूद रात को भी वह अस्पताल में घूमकर यह देखती थी कि कहीं किसी को उनकी जरूरत तो नहीं है।


फ्लोरेंस की इस पहल से विश्वभर के कई रोगियों को अपनी परेशानियों से निजात मिली और आज अस्पत में नर्सों को सम्मानित दर्जा देने के साथ-साथ इस बात पर विश्वास किया जाता है कि रोगी केवल दवाओं से ठीक नहीं होता, उसके स्वस्थ होने में देखभाल का योगदान प्रमुख है।

फ्लोरेंस की इस पहल से विश्वभर के कई रोगियों को अपनी परेशानियों से निजात मिली और आज अस्पतालों में नर्सों को सम्मानित दर्जा देने के साथ-साथ इस बात पर विश्वास किया जाता है कि रोगी केवल दवाओं से ठीक नहीं होता, उसके स्वस्थ होने में देखभाल का योगदान, दवाओं से अधिक होता है। घायलों की सेवा करने वाली फ्लोरेंस को 'लेडी विथ दि लैंप' का नाम मिला था और उन्हीं की प्रेरणा से महिलाओं को नर्सिंग क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली थी। फ्लोरेंस नाइटेंगल का 90 वर्ष की उम्र में 13 अगस्त, 1910 को निधन हो गया।