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ये चीजे है महंगाई बढ़ने का मुख्य कारण - उदयराज शिक्षक





कहाँ तक जायेगी महंगाई की डाइन

डॉ सुनील कुमार ओझा

बलिया।। प्रख्यात संत मलूक दास ने कहा है कि-

"अजगर करे न चाकरी, पक्षी करे न काम।

 दास मलूका कहि गये, सबके दाता राम।।"

    अर्थात ईश्वर अभी प्राणियों का पोषक होता है और बिना कर्म किये हुए भी सबको ईश्वरीय विधान से प्राप्तियां होती हैं।कदाचित आज सियासत की ओट में मुफ्तखोरी की राजनीति भी कमोवेश इसी की प्रतिपुष्टि करती है।वस्तुतःकिसी भी वस्तु या पदार्थ का उसकी गुणवत्ता के आधार पर अधिक धन चुकाने पर कम मात्रा मिलना या पूर्व की तुलना में अपेक्षाकृत समान मात्रा की वस्तुओं को क्रय करने पर अधिक मूल्य चुकाना ही महंगाई है।कदाचित महंगाई रूपी यह डायन अबतो सुरसा के मुंह जैसी नित्यप्रति बढ़ती ही जा रही है।

मुफ्तखोरी की नीति घातक 

 इससे बचाव और इसपर प्रभावी नियंत्रण हेतु सरकारी उपायों के साथ-साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रयास अपेक्षित हैं,अन्यथा इससे निजात पाना किसी ख्याली पुलाव से अधिक नहीं होगा। लिहाजा यह कहना ग़ैरमुनासिब नहीं होगा कि यदि समय रहते मुफ्तखोरी की सियासत और करवंचको पर होने वाले रहमोकरम पर प्रभावी नियंत्रण नहीं किया गया तो महंगाई की डाइन श्रीलंका से चीन,पाकिस्तान होते हुए न जाने कब और किसदिन हिंदुस्तान को अपनी लपेट में ले ले।






निजी वाहनों के प्रयोग का बढ़ता चलन 

   वस्तुतः महंगाई को महज सरकारी प्रावधानों और तरीकों से नियंत्रित किया जाना भी महज कवायद मात्र ही है।लोगों की दिनोंदिन बढ़ती जरूरतें,बढ़ता उपभोगवाद और सार्वजनिक यातायात एवम आवागमन के साधनों का सीमित प्रयोग भी मूल्यवृद्धि के लिए जिम्मेदार कारक है।उदाहरण के तौरपर जहाँ रोडवेज की एक सामान्य बस में 60 से 65 यात्री तक कम किराए में सफर करते हैं,वहीं नव धनाढ्य लोगों में लक्सरी कारों और महंगी दुपहिया मोटरसाइकिलों के प्रति बढ़ता प्रेम अब उन्हें सार्वजनिक वाहनों में सफर करने की बात को हीनता का प्रदर्शन लगता है।जिससे एक बस में सफर करने वाले यात्रियों की तुलना में अब चालीस से पचास अलग अलग वाहन सड़कों पर फर्राटे भरते हैं।जिससे पेट्रोलियम पदार्थों का अनावश्यक उपभोग बढ़ता है और आयातित तेल की सीमित मात्रा की मांग बढ़ने पर उसके मूल्यों में भारी उछाल होता है।कदाचित बढ़ती महंगाई का एक मुख्य कारण सार्वजनिक साधनों की बजाय निजी वाहनों का अधिकाधिक प्रयोग होना भी है।

   महंगाई और पेट्रोलियम पदार्थों में भी चोली दामन का साथ है।जब जब पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्यवृद्धि होती है तबतब माल ढुलाई भाड़ा बढ़ने से वस्तुओं में दामों में उछाल देखा जाता है।इसप्रकार पेट्रोलियम पदार्थों का सीमित उपभोग महंगाई नियंत्रण में कारगर भूमिका निभा सकता है।

 भारतीय परिप्रेक्ष्य में मौसम और महंगाई भी एक दूसरे पर अन्योन्याश्रित औरकि विपरीतार्थक हैं।हालिया दिनों में रह रह कर हुई व्यापक वृष्टि से फलों और सब्जियों के उत्पादक तबाह हो गए हैं।जिससे आवक कम और मांग ज्यादा तथा त्यौहारी सीजन,इस सबके कारण भी बाजारों में खाद्य पदार्थों में मूल्यवृद्धि देखी जा सकती है जो सर्दियों में एकबार फिर सामान्य स्तर पर लौटेगी किन्तु तबतक अपनी जरूरतों पर नियंत्रण औरकि अत्यावश्यक उपभोग ही इस समस्या से निजात दिला सकता है।

महंगाई रोकने के प्रति संजीदा नही रहती है सरकारें 

  महंगाई के बाबत जहाँ तक सरकारी उपायों की बात है तो सरकारें कभी भी इस विषय पर संजीदा नहीं रहीं हैं।जनकल्याण के नामपर मुफ्त खोरी को बढ़ावा देने वाली वोट बैंक की राजनीति जीवनोपयोगी वस्तुओं पर अनावश्यक कर थोपने को विवश करती है।सरकारी कर्मचारियों से आयकर के रूप में प्राप्त विशाल धनराशि को सब्सिडी,मुफ्त मोबाइल, लैपटॉप,राशन इत्यादि में खैरात के रूप में बांटने से जहाँ विकासात्मक गतिविधियों को विराम लगता है वहीं बहुत से अवांछनीय लोग भी इन योजनाओं की आड़ में बंदरबांट करते हैं।






इसीतरह व्यापारियों से प्राप्त बिक्रीकर,उत्पाद शुल्क,स्टाम्प और पंजीयन शुल्क आदि की रकम भी यदि वास्तविक रूप से सही सही खर्च की जाए तो भी महंगाई को नियंत्रण में रखा जा सकता है।किंतु सरकारी अधिकारियों, मंत्रियों,दलालों के साथ साथ मुफ्त में सबकुछ प्राप्त करने की इच्छुक जनता भी इसमें बड़ी बाधक है।जिससे सरकारें वोटबैंक को खुश रखने के लिए भी चाहकर भी पेट्रोलियम पदार्थों को करमुक्त औरकि सस्ता नहीं करतीं।इसप्रकार एकतरफ मुफ्तखोरी को संतुष्ट करती हुई सरकारें आयेदिन और भी मुफ्त योजनाओं का लॉलीपॉप देती रहती हैं वहीं पेट्रोलियम पदार्थों को सुलगने से रोकती भी नहीं,क्योंकि उन्हें इसके लिए आवश्यक धन का जुगाड़ भी करना जो होता है।

सरकारी मुफ्तखोरी भी महंगाई के लिये जिम्मेदार 

मुफ्तखोरी बढ़ती महंगाई के लिए आग में घी जैसा कार्य करती है।चुनावी नारों में राजनैतिक दलों द्वारा अपने निहित स्वार्थों की प्रतिपूर्ति हेतु फ्री बिजली,फ्री पानी,फ्री आवास और शौचालय तथा किसान क्रेडिट कार्डों के ऋण माफ करने के वायदे और बाद में उनका क्रियान्वयन हालांकि चंद मुफ्तखोरों के किये फायदे का सौदा होता है किंतु राष्ट्रीय स्तर पर मुल्क के लिए किसी आत्मघात से कम नहीं होता है।

  अतः आम जनमानस को चाहिए कि अपनी अत्यावश्यक आवश्यकताओं को ही पूर्ण करते हुए सार्वजनिक साधनों तथा वाहनों का प्रयोग करे।जिससे डीजल और पेट्रोल की अनावश्यक खपत न हो इसप्रकार  उपभोग कम करके जहाँ हम अपनी बचत कर सकते हैं वहीं तेल कंपनियों को आइना भी दिखा सकते हैं।खाद्यपदार्थों का दुरुपयोग रोककर जहां बाजार पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है वहीं निगरानी तंत्र को भी जागृत करने से अवैध भंडारण बन्द हो सकता है।कदाचित यदि आमजनमानस जागृत नहीं हुआ तो महंगाई यूपी सुरसा से निजात आसन्न चुनावों में भले ही कुछ दिनों के लिए मिल जाये किन्तु स्थायी समाधान असम्भव ही होगा।

विचारक (अध्यक्ष,अयोध्यामण्डल राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ,उत्तर प्रदेश,माध्यमिक संवर्ग)