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बघऊंच बलिया का गो आश्रय स्थल बंद करने का आदेश, सरकारी 50 लाख के बर्बाद होने के लिये जिम्मेदार कौन



मधुसूदन सिंह 

हल्दी,बलिया। कार्यालय मुख्य विकास अधिकारी बलिया की ओर से पत्रांक संख्या 498 के माध्यम से 29 जुलाई 2022 को खंड विकास अधिकारी बेलहरी,चिलकहर, मनियर व संबन्धित पंचायत सचिवों को पत्र लिखकर एक टीम बनाने का निर्देश दिया गया है । जिसमें उन्होंने 10 सफाई कर्मी व एक वाहन की व्यवस्था कर 300 पशुओं को वहा से  हटाया जा सके। जिसकी प्रतिलिपि सूचनार्थ मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, जिलाधिकारी,आयुक्त आजमगढ़ मंडल आजमगढ़ आदि को लिखा। लेकिन हटाने कारण नहीं बताया है।उससे भी बड़ी बात यह है कि 300 पशुओं को हटाने के लिए एक वाहन लिखने का उद्देश्य क्या है? इससे अधिकारियों की मंशा में खोट प्रदर्शित हो रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि 29 जुलाई के पत्र पर कार्यवाही 1 नवंबर को शुरू हुई।



खास बात यह है कि ग्राम प्रधान ने 29 जुलाई को पत्र लिखा तो चार माह तक पत्र को किसने दबा कर रखा और क्यों रखा, इसके पीछे विभागीय अधिकारियों की मंशा क्या थी ?यह समझ से परे है।

बताते चले कि विभागीय अधिकारियों के अनुमोदन के बाद वर्ष 2019-20 मे बेलहरी ब्लाक का एकलौता गोआश्रय स्थल बघौच मे बनाया गया ।फरवरी 21 मे तत्कालीन जिलाधिकारी बलिया श्रीहरि प्रताप शाही ने औचक निरीक्षण किया। जिसमे गायो की संख्या व उनके रख रखाव से प्रभावित होकर जिलाधिकारी कोष से 25 लाख रुपये विभाग को दिया जिससे लम्बा सेड बनाया जा सके क्योकि उस समय  पशुओ की  संख्या 5 सौ के आस पास थी।






जब सरकार का इस गो आश्रय स्थल के निर्माण मे लगभग 50 लाख रूपये खर्च हुए तीन साल भी नही हुए और इसको बंद करने का आनन फानन मे आदेश अधिकारियों की मंशा पर सवाल खड़ा कर रहा है। कागज पर एक हस्ताक्षर से इसको बंद करने का फरमान तो जारी हो गया लेकिन बंद करने का कारण क्या है, किसी को नही बताया गया है। अब सवाल यह उठ रहा है कि 5 माह के चारे का पैसा जिस जिला प्रशासन ने देना नही जरुरी समझा, वह जिला प्रशासन इन पशुओ के अन्यत्र स्थानांतरण पर किस मद से पैसा खर्च कर रहा है? यही नही इस गो आश्रय स्थल को बनाने मे जो 50 लाख रूपये सरकार के खर्च हुए है, उसकी बर्बादी के लिये कौन जिम्मेदार होगा? इसका फैसला कौन करेगा?

बिना मेडिकल परीक्षण के पशुओ का स्थानांतरण, दो मरे, जिम्मेदार कौन 

 हल्दी बलिया।। मंगलवार के दिन से पशुओं को अन्यत्र हटाये जाने के दौरान गुरुवार को दो पशु मर गए। दोनों मवेशी भूख से मरे है या संक्रमण से  इसका जानकारी तो पोस्टमॉर्टम के बाद ही पता चल सकेगा। शुक्रवार की शाम तक दोनों मवेशियों का पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ। लेकिन विभागीय अधिकारियों ने पांच माह के चारा का पैसा नहीं दिया है, इससे जोड़कर लोग देख रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जब पूरे देश मे पशुओ को लम्पी रोग से बचाने के लिये समूह मे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने पर रोक लगायी गयी है, फिर बिना मेडिकल परीक्षण के (पशुओ मे लम्पी रोग है या नही ) और जहां भेजा जा रहा है वहां के पशुओ का मेडिकल परीक्षण हुए, उनके बाड़े मे रखना क्या खतरनाक नही है?

पशु क्रूरता अधिनियम की उड़ रही है धज्जियां

जो प्रशासन आम लोगों के द्वारा एक पिकअप मे एक से ज्यादे पशुओ को ले जाने पर संबंधित वाहन का चालान पशु क्रूरता अधिनियम के तहत करने मे देर नही करता है, आज प्रशासन के लोग खुद छोटी गाड़ियों मे चार से छह जानवर लाद कर ले जा रहे है, अब इनको पशु क्रूरता अधिनियम नही दिख रहा है। शुक्रवार को पिकअप से कूद कर एक बछड़ा मरणासन्न स्थिति मे पहुंच गया। दो गायों को मरने के बाद यूं ही छोड़ दिया गया है। रात मे कुत्ते आदि इन मृत जानवरो को खा कर सफाई कर देंगे।

मुख्यमंत्री जी लखनऊ के अधिकारियों से कराइये जांच 

 मुख्यमंत्री जी के ड्रीम प्रोजेक्ट की इतनी दुर्गति शायद ही कही देखने को मिले। सैकड़ो जानवर पांच माह से ढंग से खा भी नही पाये लेकिन बलिया के जिला प्रशासन को कोई फर्क पड़ा ही नही। लेकिन अगर किसी ने इनके खाने के लिये पैसे क्या मांग लिये साहबो ने इस केंद्र को ही बंद करने का फरमान जारी कर दिया। जबकि बाहर के जो भी अधिकारी गो आश्रय स्थल देखने आते थे, इसी को दिखाया जाता था। फिर आखिर क्या हो गया कि यह केंद्र एकाएक अधिकारियों की आँखों मे अस्थायी के नाम पर किरकिरी की तरह चुभने लगा जबकि अभी दो दर्जन और अस्थायी गो आश्रय स्थल चल रहे है। मुख्यमंत्री जी को इस गो आश्रय स्थल प्रकरण की लखनऊ के अधिकारियों से जांच करानी चाहिये, जिससे हकीकत सामने आ सके।