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वन विभाग की टीम की जड़ी बूटी बेचने वालों की दुकानों पर छापेमारी, उठ रहे है कार्यवाही पर सवाल



मधुसूदन सिंह

बलिया।। वन विभाग की टीम द्वारा वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत पूजा सामग्री और जड़ी बूटी बेचने वाले चौक के दो दुकानदारों पर जिस तरह से छापेमारी की गयी और क्षेत्र को पुलिस की छावनी मे तब्दील किया गया, वह काफ़ी चौकाने वाला दृश्य रहा। छापेमारी करने वाली टीम ने इन दुकानदारों की दुकानों से कुछ सामान झोले मे भर कर और तीन दुकानदारों को अपनी हिरासत मे रातभर वन विभाग के ऑफिस मे रख कर पूंछताछ करती रही। मीडिया के द्वारा सवाल करने पर वन विभाग की टीम द्वारा बताया गया कि इन लोगों के पास से बाघ की खाल, दाँत, शंख आदि बरामद किया गया है। इनके ऊपर जिस तरह से छापेमारी की गयी उससे लग रहा था कि देश के सबसे खूंखार आतंकियों को पकड़ने के लिए रेड डाली गयी है।



बता दे कि शहीद चौक के पूरब छोटी छोटी दुकानों मे ये दोनों दुकानदार पूजा सामग्री और इसमें प्रयोग होने वाली जड़ी बुटियों को भी बेचते है। दुकानदारों का कहना है कि इसके साथ ही हम लोग फाइवर से निर्मित पेंडेंट जिसकी आकृति बाघ के दाँत या नाख़ून जैसे होती है, उसको भी बेचते है। वन विभाग की टीम वाले इसी को पकड़े है और इसको बाघ के शरीर का अवशेष कह रहे है जबकि यह फाइवर का है। दूसरे दुकानदार का कहना है कि हमारे यहां से पुराने शंख को इन लोगों द्वारा प्रतिबंधित कह कर पकड़ा गया है। अब सवाल यह उठ रहा है कि दुकानदारों का कहना सही है कि वन विभाग की टीम का, इसका फैसला तो लैब मे जांच के बाद ही पता चल पायेगा। अगर दुकानदारों की बात सत्य हुई तो वन विभाग के द्वारा की गयी छापेमारी से जो इन छोटे दुकानदारों की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है, उसकी भरपायी कैसे होगी।







क्यों लग रहे है आरोप

बलिया जैसे छोटे शहर और छोटी छोटी दुकानों मे वन्य जीव संरक्षण अधिनियम से संरक्षित जीवों के अवशेष बिकते है, तस्करी होती है, यह सुनने मे भी अटपटा लग रहा है। साथ ही तस्करी करने वाले की माली हालत खस्ताहाल हो, तब तो और भी अटपटा लगता है। इन गिरफ्तार दोनों दुकानदारों की इतनी हैसियत नही है कि ये एक बार मे नगद 50 हजार का सामान खरीद सके, फिर बाघ की खाल हो, दाँत हो, नाख़ून हो, को खरीदना तो दूर की बात है। इन छोटे दुकानदारों पर कार्यवाही पर सवाल उठने का दूसरा कारण भी है। अभी जितने भी ऑनलाइन खरीददारी के प्लेटफॉर्म है, सब पर बाघ के दाँत चाहिये, नाख़ून चाहिये, खाल चाहिये, सब उपलब्ध है, इन पर छापेमारी क्यों नही होती है? इनके व्यापार कैसे चल रहे है?

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बता दे  कि

भारत सरकार ने लुप्त हो रहे वन्य जीव जंतुओ और वनस्पतियों को संरक्षण के लिए वन्य जीव और वनस्पति संरक्षण अधिनियम 1972 बनाया है। जिसकी अनुसूची 1,2,3 मे वर्णित जीवों के शिकार, इनके अवशेष अंगों के व्यापार आदि पर प्रतिबंध लगा रखा है। पहली बार उपरोक्त अपराध मे पकड़े जाने पर कम से कम 3 साल और अधिकतम 7 साल की करावास की कैद और 10 हजार रूपये जुर्माने का प्राविधान किया गया है। दूसरी बार पकड़े जाने पर 3 साल से 7 साल तक का कारावास और जुर्माने की रकम 25 हजार रखी गयी है।

कौन जीव जंतु पौधा किस अनुसूची मे है नीचे देखिये ----






यह भी सूच्य हो कि यूपी हो या देश का कोई भी जिला मुख्यालय या लगने वाले मेले हो, प्रसिद्ध देवालय हो, प्रसिद्ध मज़ारे हो, हर जगह फुटपाथ पर बैठ कर बेचते हुए दुकानदार मिल जायेंगे। और तो और सांडा नामक जंगली जीव को सार्वजनिक रूप से जिन्दा उबालकर तेल बनाते और बेचते हुए बंजारे मिल जायेंगे, इनके खिलाफ कार्यवाही क्यों नही होती है? महानगरो मे यह व्यापार बड़े स्तर पर फल फूल रहा है, वहां तो कोई कार्यवाही दिखती नही है।

मेरा ऐसी कार्यवाहियो को रुकवाने का कोई मकसद भी नही है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कार्यवाही जरूर हो, लेकिन तब जब जांच मे साबित हो जाए कि ये प्रतिबंधित वस्तुओ के बिक्रेता है। ये लोग तो कोई भी जाता है उसको सामान बेचते है, प्रशासन के लोग भी चुपके से खरीदते और लैब मे जांच कराकर सही पाये जाने पर गिरफ्तारी करते तो कोई प्रश्नचिन्ह नही खड़ा होता।

क्या कह रहा है गिरफ्तार व्यापारी का पुत्र --


क्या कह रहे है वन विभाग के निरीक्षक ---