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क्रांतिकारियों मे जोश भरने और ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती देने के लिए फिरोज गांधी पहुंचे बलिया




मधुसूदन सिंह

बलिया पर दुबारा कब्जा करने के बाद जब अंग्रेजों का दमन चक्र क्रूरता की सारी हदे पार कर चुका था, क्रांतिकारियों के साथ न सिर्फ पाशविक अत्याचार हो रहा था, गांधी टोपी पहनने वालों को न सिर्फ घोर यातनाओ का सामना करना पड़ रहा था,बल्कि आम लोगो के सभी मौलिक अधिकारों को बुटों के नीचे कुचला जा रहा था,ऐसे ही आतंक पूर्ण वातावरण में श्री फिरोज गांधी, गांधी टोपी पहने हुए बलिया के रणांगन में पदार्पण कर जून 1944 में अपने असीम साहस एवं राष्ट्र-भक्ति का परिचय न केवल बलिया जनपद को ही दिया अपितु ब्रिटिश सम्राज्य को चुनौती देने के साथ समग्र देश वासियों को भी दिया। पीड़ित सेनानियों को कारागार से मुक्त कराने एवं उनके तबाह परिवारों को तत्काल आर्थिक सहायता देने के लिए उनका कदम स्वतः आगे बढ़ा । सेनानियों को मुक्त कराने के लिए जब यहाँ के दो वकीलों को सजा हो गयी थी तो सेनानियों की पैरवी करने का अन्य किसी वकील को साहस नहीं हुआ। ऐसी परिस्थितियों में श्री फिरोज गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से तत्काल ही तीन वकीलों को, जिसमें पं० शिवचरण लाल, श्री गोपाल मेहरोत्रा, श्री सतीश चन्द्र खरे थे, बलिया में बुलाया । इन वकीलों के अथक प्रयास से अनेकानेक सेनानी जेल से बाहर आकर पुनः अपने कार्य के लिए स्वतंत्र हो गये। इतना ही नहीं, जिन सेनानियों की सजा यहाँ से हो गयी थी उनको मुक्त कराने के लिए उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी पैरवी किया । उन दिनों श्री फिरोज गांधी की दिनचर्यां आर्थिक सहायता पहुंचाना था ।


इस संदर्भ में दो घटनाएँ विशेष उल्लेखनीय हैं। प्रथम यह कि जब श्री फिरोज गांधी बलिया कचहरी में पैरवी के लिए खड़े थे तो उनके हाथ का झोला पुलिस वालों ने छीन लिया किन्तु पुलिस की इस हरकत से वे जरा भी विचलित नहीं हुए और मदद में पूरी शक्ति से जुट गये। दूसरी यह कि बैरिया थाने का थानेदार सवारियों को तांगे पर सवार होकर गुजरने नहीं देता था। इस तानाशाही को समाप्त करने हेतु स्वयं श्री फिरोज गांधी ने उस समय ताँगे से यात्रा कर थानेदार का मनोबल नीचा करके जनता को भय मुक्त किया ।


ऐसे दुर्दिन में श्री फिरोज गांधी बलिया की जनता में एक मसीहा की तरह आये और बलिया वासियो के मनोबल को ऊँचा किए। बलिया के स्वातन्त्र्य संग्राम में श्री गांधी का योगदान अमिट है जिसे भुलाया नहीं जा सकता ।




देश स्वतंत्र हुआ 


सन् '42 की जन-क्रान्ति इस जिले में पूर्ण रूप से अहिंसात्मक रही। लूट-फूँक की घटनाओं के अलावा कोई भी सरकारी कर्मचारी नहीं मारा गया जबकि नौकर शाही ने सेनानियों को कई स्थानों पर गोलियों से भूनकर अपनी वफादारी का परिचय ब्रिटिश हुकूमत को दिया ।

सन् 1944 के अन्त तक अधिकांश क्रान्तिकारी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिये गये, जो बचे थे वे गांधीजी के आवाहन पर न्यायालयों में आकर आत्म-समर्पण कर दिये । कुछ लोग अन्त तक फरार रहे और जब उन लोगों पर से वारन्ट हटा लिये गये तब वे बलिया आये। कुछ फरार लोगों का पता ही नहीं चला कि वे फरारी के दौरान किन परिस्थितियों में और कहाँ मरे ।


उस समय देश में ऐसा वातावरण तैयार हो गया था कि अंग्रेज इसे छोड़ कर जाने के लिए तैयारी करने लगे । वे समझ गये थे कि भारत को अब अधिक दिनों तक गुलाम बना कर नहीं रखा जा सकता क्योंकि भारतीय सेना भी उनके काबू से बाहर हो रही थी। 


सन् 1946 तक देश के सभी राजनैतिक बन्दियों को जेलों से छोड़ दिया गया और विधान सभाओं के नये चुनाव की घोषणा की गयी । केन्द्र में भी कांग्रेस ने ही अंतरिम सरकार बनाई । 14/15 अगस्त, 1947 को ठीक 12 बजे रात में स्वतन्त्रता की घोषणा के साथ भारत माँ का बंधन कटा और देश स्वतंत्र हुआ । आजादी का जश्न पूरे देश के साथ बलिया मे भी मनाया गया।

जय हिन्द