जब राखी बंधवाने से पहले भाई ने बहन से मांगे दो रूपये :डा० भगवान प्रसाद उपाध्याय
प्रयागराज।। अशोक नगर मोहल्ले में रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह एक रिक्शा छायावाद की विख्यात कवित्री श्रीमती महादेवी वर्मा जी के दरवाजे पर रुका और उसमें से उतरते ही बड़ी जोर से आवाज लगाकर बहन को पुकारते हुए भाई ने दो रूपये की मांग की । बहन ने पूछा, दो रूपये क्यों ? रिक्शे का किराया तो एक ही रुपया होता है?भाई ने कहा - अभी जब तुम मुझे राखी बांधोगी तो तुम्हें भी तो एक रुपए देना है। इस मधुर संवाद पर दोनों भाई बहन ठहाका लगाकर हंस पड़े।
रिक्शावाला किंकर्तव्यविमूढ़ होकर यह सब देख और सुन रहा था ! उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था , क्योंकि उसके साथ आने वाले विख्यात कवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' थे जो प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन के दिन श्रीमती महादेवी वर्मा जी के यहां राखी बंधवाने आते थे। उस दिन सुबह सुबह का यह संवाद सुनकर रिक्शावाला बहुत देर तक सोचता रहा फिर उसे एक रुपए मिल जाने पर वहां से चल पड़ा ।
अंदर जाकर निराला जी ने महादेवी जी से कहा - " बहुत तेज भूख लगी है पहले राखी बांधो और कुछ खिलाओ तब मैं बैठूंगा " महादेव जी ने कहा - धैर्य रखो, पहले तुम्हें चंदन टीका करवाना पड़ेगा आरती करवानी पड़ेगी तब मैं राखी बांधूंगी ।
बेचारे निराला जी मन मसोस कर बैठ गए। सामने सरस्वती की साक्षात प्रतिमूर्ति महादेवी जी ने थाल में सजा कर रखी हुई राखी , हल्दी चंदन पुष्प और मिठाई का डिब्बा लेकर सामने बैठ गईं।
निराला जी ने हाथ बढ़ाया तो महादेवी जी ने टोंक दिया - " पहले सिर तो ढको " निराला जी मुंह लटका लिए। तत्काल महादेवी जी उठीं और जाकर एक नई शाल लाकर निराला जी के सिर पर रख दिया , वह शाल उन्हें एक दिन पहले ही एक कवि सम्मेलन में सम्मान स्वरूप मिली हुई थी । फिर दोनों भाई बहन हंस पड़े।
राखी बांधने की रस्म पूरी हुई और निराला जी ने महादेवी जी के हाथ से मिठाई भी खाई।फिर भी बोल पड़े -- इतने से पेट नहीं भरेगा , चलो कुछ बनाओ मैंने कहा था ना कि भूख लगी है अब मैं बिना भोजन किए नहीं जाऊंगा । महादेवी जी ने ठिठोली की " कई दिन के भूखे लगते हो " और वे तत्काल रसोई घर की ओर चली गईं निराला जी बैठे सोच रहे थे ऐसी बहन संसार में सभी भाइयों को मिले।
कुछ पत्रिकाओं और पुस्तकों के पन्ने पलटते रहे फिर कुछ देर बाद महादेवी जी ने पुकारा - चलो हाथ मुंह धो कर आ जाओ भोजन तैयार है , पंडित के लड़के हो शिषटाचार से रहा करो । निराला जी आज्ञाकारी बालक की तरह आंगन में गए हाथ मुंह धोया और फिर आकर पालथी मारकर रसोई में बैठ गए। सामने सुस्वाद भोजन की थाल आ गई और उन्होंने आनंद पूर्वक भोजन ग्रहण किया फिर पेट पर हाथ फेरते हुए बोले बहन अब मैं नहीं जाऊंगा कहीं,अब मैं आज दिन भर यही सोऊंगा।महादेवी जी ने कहां ठीक है अतिथि कक्ष में जाओ बिस्तर लगा है आराम से सो जाओ , तब तक मैं कुछ और काम कर लेती हूँ।
यह भाई बहन का आत्मीय प्रेम था ।पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी प्रतिवर्ष अपनी बहन श्रीमती महादेवी वर्मा के यहां राखी बंधवाने जब भी आते तो कुछ न कुछ नया संस्मरण जरूर तैयार हो जाता ।शाम को जब वे वहां से चलने लगे तो सिर पर रखी गई शाल को उन्होंने कंधे पर बड़े शान से रखा और बहन से अनुमति लेकर चल पड़े।
सामने एक रिक्शे वाला मिला उससे उन्होंने पूछा - दारागंज चलोगे ? उसने कहा - चलूंगा बाबूजी लेकिन दो रूपये लूंगा आज सुबह से बोहनी नहीं हुई है।निराला जी ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया और कहा पहले वहां पहुंचा देते तो रुपए की मांग करते , अब मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा ।
रिक्शा वाले ने पैर पकड़ लिया और बलपूर्वक निराला जी को रिक्शे पर बैठाकर अनुनय विनय करने लगा - बाबूजी आप आज पहली सवारी हो , सौभाग्य से मिले हो मैं आपको जरूर पहंचाऊंगा । अड्डे से कितनी दूर चलना पड़ेगा?निराला जी ने कहा - निराला का घर देखा है तुमने? रिक्शेवाले ने कहा - हां बाबू जी उन्हें कौन नहीं जानता इस शहर में ! किंतु मेरा दुर्भाग्य है कि मैंने उन्हें कभी देखा नहीं है । निराला जी ने कहा - चलो वहां देख लेना और वे उसके साथ चल पड़े ।
जब निराला जी अपने घर के सामने उतरे तो उन्होंने वह शाल रिक्शेवाले को दे दी और कहा - रुको , किराया लेकर आता हूं।फिर अंदर से दस रूपये लेकर निकले और उसे देने लगे तो उसने कहा बाबूजी दो रूपये होता है, मैं खुले पैसे कहां से लाऊं ? इतना सुनते ही उसे फिर एक झापड़ पीठ पर जमाते हुए कड़कती हुई आवाज में निराला जी ने कहा - जो मिल गया उसे रख लो और जाओ।
रिक्शावाला पैसे लेकर चुपचाप वहां से चल पड़ा और अड्डे पर आकर उसने अन्य रिक्शे वालों से कहा आज बड़ी अच्छी सवारी मिल गई थी दो रूपये की जगह दस रूपये मिल गए। वह बहुत खुश हो रहा था,वहाँ खड़े रिक्शे वालों ने कहा " अरे वह निराला जी रहे होंगे, तुम्हारे ऊपर मार भी पड़ी होगी " हम लोग तो धन्य हो जाते हैं अगर उन्हें बैठाने का अवसर मिल जाता है तो ! वह रिक्शावाला अभिभूत होकर रोने लगा और कहा मेरा दुर्भाग्य है देवता को मैं अशोकनगर से यहां तक ले आया और उन्हें पहचान न सका।
यह संस्मरण मुझे मेरे हिन्दी के अध्यापक पंडित राम धीरज मिश्र ने कक्षा दस में हिंदी पढ़ाते समय बताया था । उन्होंने कहा कि मैं निराला जी के बगल वाले मकान में किराए पर रहता था और प्रायः उनके दर्शन का सौभाग्य मिल जाता था,ऐसे थे निराला जी।
राखी बंधवाने का उनका अनोखा अंदाज बाद में साहित्यकारों के बीच बहुत चर्चा का विषय बना फिर तो कई बार महीयसी महादेवी वर्मा जी के घर जाने पर साहित्यकार यह प्रसंग जरूर सुनते थे और महादेवी जी उसे बहुत ही स्नेह पूर्वक बताती थीं।
डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय
निवास
गंधियांव करछना प्रयागराज
पिन कोड - 212301
मो० - 8299280381