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वाह रे ,स्वास्थ्य विभाग की ट्रांसफर पालिसी :बदहाल बलिया को कर दिया और बदहाल,रेडियोलॉजिस्ट का भी पड़ा है अकाल



मधुसूदन सिंह

बलिया ।। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के आलाधिकारी छोटे जनपदों के लोगो के स्वास्थ्य के प्रति कितने सचेष्ट रहते है,इसका उदाहरण बागी बलिया की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से लिया जा सकता है । यह सही है कि पूरे प्रदेश में चिकित्सकों की कमी है,पर क्या यह जरूरी है कि छोटे जनपदों को और चिकित्सक विहीन कर दिया जाय ? क्या केवल महानगरों में ही इंसान रहते है जो बीमार पड़ते है,जिनको इलाज की आवश्यकता होती है ? छोटे शहरों व जनपदों में निवास करने वाले इंसान नही है,इनको इलाज की जरूरत नही है ? पिछले दिनों हुए स्थानांतरण में बलिया में चिकित्सकों की कमी को दूर करने की बजाय और बढ़ा दी गयी है ।स्वास्थ्य विभाग के उच्च पदस्थ अधिकारियों और मंत्री गणों को यह सोचना पड़ेगा ।






बलिया जनपद में कुल 380 चिकित्सकों का पद स्वीकृत है । जिसमे मात्र 146 ही कार्यरत है, यानी 134 चिकित्सकों की कमी है । अब खुद ही सोचिये जिस जनपद में 50 प्रतिशत चिकित्सकों की कमी हो, वहां स्वास्थ्य सुविधाएं ग्रामीण अंचलों में तो राम भरोसे ही चल रही होगी । कहने को यह बागी बलिया है, देश 1947 मे आजाद हुआ लेकिन बलिया 1942 में ही 19 दिनों तक आजाद रहा,देश को प्रधानमंत्री देने वाला जनपद है,तानाशाही हुकूमत के खिलाफ 1977 में बिगुल फूंकने वाला जनपद है,फिर भी न तो किसी सरकार ने, न ही राजनेताओं ने यहां की जनता को वह मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं को दिलाने का प्रयास किया, जिसका बलिया हकदार है ।

ग्रामीण अंचलों के अस्पतालों के लिये 221 चिकित्सको के पद स्वीकृत है लेकिन कार्यरत मात्र 118 है यानी 103 रिक्त ,जिला चिकित्सालय में 30 पद स्वीकृत है जिसमे 24 कार्यरत है और 6 पद रिक्त है । जिला महिला चिकित्सालय में तो सबसे भयावह स्थिति है ,यहां 29 चिकित्सकों के स्वीकृत पद होते हुए मात्र 4 ही कार्यरत है,25 पद खाली पड़े है ।

बदहाल जिला महिला अस्पताल

सबसे खराब हालत जिला महिला अस्पताल की है । इस अस्पताल में 1 सीएमएस और 28 चिकित्सक की जगह 1 सीएमएस और 3 चिकित्सक ही कार्यरत है । इसी 3 चिकित्सकों में से 1 ईएमओ भी है । उपरोक्त 3 चिकित्सक ही स्त्रीरोग विशेषज्ञ है । इसके अलावा 4 संविदा के चिकित्सक कार्यरत है । यहां सिस्टर के 5 पद स्वीकृत है लेकिन कार्यरत 3 ही है । यहां संविदा के 27 पद स्वीकृत है लेकिन 17 ही कार्यरत है ।

बिना ईएमओ सीजर होता है बाधित

सीएमएस डॉ सुमिता सिन्हा ने बताया कि चिकित्सको की कमी के बावजूद हमारी कोशिश रहती है कि मरीजों को कोई परेशानी न रहे । लेकिन ईएमओ के पद रिक्त होने से ऑपरेशन के बाद चिकित्सकों को काफी परेशानी हो रही है । कहा कि ऑपरेशन के बाद मरीज का पोस्ट ऑपरेशन केयर करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है । जो चिकित्सक ऑपरेशन करता है, उसी को मरीज का पोस्ट ऑपरेशन केयर भी करना पड़ता है, साथ ही अगले दिन ओपीडी भी करनी पड़ती है । कहा कि अगर महिला चिकित्सालय को 3 ईएमओ चिकित्सक मिल जाती , चाहे स्थायी रूप से या सीएमओ के यहां सम्बद्ध होकर ही, तो हमारे यहां ऑपरेशनों की संख्या बढ़ जाती । कहा कि चिकित्सको की कमी के बावजूद हम लोगों ने पिछले माह 47 ऑपरेशन किये है ।

रेडियोलॉजिस्ट की कमी से अल्ट्रासाउंड होना बंद,सिटी स्कैन की मशीन खराब

महिला अस्पताल हो या जिला अस्पताल, रेडियोलॉजिस्ट न होने के कारण अल्ट्रासाउंड नही हो पा रहा है । यही नही मेडिको लीगल के लिये आजमगढ़ मरीजों को भेजा जा रहा है । यही नही सिटी स्कैन की मशीन कई दिनों से खराब पड़ी है और अगले 1 माह में शुरू होने का अंदाजा बताया जा रहा है ।

लगभग एक दर्जन से अधिक चिकित्सक रहते है गायब

एक तो चिकित्सकों की कमी से जनपद जूझ रहा है,उसी में एक दर्जन से अधिक पुरुष व महिला चिकित्सक है जो नाम के सरकारी चिकित्सक है ,और गैर हाजिर रहते हुए सरकारी वेतन तो लेते है लेकिन मरीज अपने घर पर देखते है ।

प्राइवेट अल्ट्रासाउंड केंद्रों से कांटेक्ट आधार पर हो अल्ट्रासाउंड

जिला अस्पताल व महिला अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट न होने से अल्ट्रासाउंड नही हो रहा है । इससे गरीब मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है । सरकार द्वारा ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिये जिला स्वास्थ्य समिति को पहले से ही यह अधिकार दिया गया है कि मरीजों के हितों में प्राइवेट अल्ट्रासाउंड केंद्रों से कांटेक्ट करके मरीजों का अल्ट्रासाउंड मुफ्त में कराया जाय । इसके लिये प्राइवेट अल्ट्रासाउंड केंद्र को प्रति अल्ट्रासाउंड रुपये 255 देय होगा । नियम होने के बाद भी अबतक यह प्रक्रिया क्यों नही शुरू हो रही है,यह जिले के आलाधिकारी ही बता सकते है ।