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साहब आखिर हम से खफ़ा क्यो है ?



मधुसूदन सिंह

बलिया ।। साहब, आखिर हम से खफ़ा क्यो है ? साहब ,आप ही ने तो भरी बैठक में कहा था कि अगर किसी सेंटर पर नकल होती पायी गयी तो सम्बंधित प्रबंधक,प्रधानाचार्य के घरों पर बुलडोजर चलवा दूंगा । अगर आपका तंत्र आपको जानकारी देने में फेल हुआ और हम ने आपको जानकारी दे दी,तो इतने नाराज क्यो है ? क्या हम लोगो ने आपका कोई खेल बिगाड़ दिया या नुकसान कर दिया है  ? 

कानून का राज हो, अपराधियो को कारावास हो,यह तो हमने खूब सुना था लेकिन आपकी कमियों को उजागर करने वाले पत्रकारों को ही कारावास हो,यह नारा तो आपने दिया ही नही  था । कह दिये होते कि हमारी कमियों की तरफ नजर उठाया तो होगी जेल,हमारी क्या औकात थी हम लोग अपनी कलम आपके आवास पर प्रतिबंधित प्लास्टिक की थैलियों में जो आपके लाख प्रयास के बाद भी धड़ल्ले से बिक रही है,में रख कर आपको सौप देते,आपको इतना नाराज होने का मौका ही नही देते ?




आपकी पहली मीटिंग में कर्मचारियों को दिया गया वो सारगर्भित संबोधन जिसमे आपने आचार संहिता लगने के बाद कहा था कि 3 महीने के लिये मैं यहां का किंग हूं । आपके उक्त उद्बोधन की सारगर्भिता अब पता चली कि आप लोकतंत्र में भी प्रजातंत्र के ध्वज वाहक है । आपकी नाराजगी सम्बंधित का सर्वनाश कर देती है । शाहजहांपुर की उस गर्भवती महिला का प्रकरण जिसमे अपने उसको चौथा बच्चा पैदा करने के लिये सार्वजनिक रूप से उसका इतना मानमर्दन किये कि वो अगले दिन लोक लज्जा के डर से बच्चे को पैदा करके स्वर्ग सिधार गयी । शाहजहांपुर वाले आंदोलन करते रहे गये लेकिन आपकी पहुंच इतनी ऊपर तक है कि कोई आपका बालबांका भी नही कर सका,आप किंग जो ठहरे ।

बलिया के पत्रकारों को उसी दिन आपकी दासता स्वीकार कर लेनी चाहिये थी जिस दिन आपने 14 कर्मचारियों के आवासों के आवंटन को रद्द करते हुए अगले ही दिन अपने सिपहसालार नगर मजिस्ट्रेट को भेजकर कर्मचारियों के आवासों से सामानों को जबरिया नगर पालिका के डकैतों जैसी फौज से बाहर फिकवा देते है,एक दिन की मोहल्लत भी नही देते है,4 आवासों के आवंटी तो ड्यूटी करने ताला बंद करके गये थे,उनके भी सामान फिकवा दिये गये ,आवंटियों को अवैध कब्जाधारी बता दिया और बिना अर्हता रखने वालों को आवास आवंटित कराने वाले नजारत बाबू को अभयदान दे दिया, तभी समझ लेना चाहिये था कि आप लोकतंत्र के डीएम नही प्रजातंत्र के किंग है। यह बलिया के पत्रकारों के जेहन में घुसा ही नही, जिसका नतीजा तीन लोगों को जेल की हवा खानी पड़ रही है ।

विधानसभा चुनाव में अगर सत्ताधारी दल की सीटें कम होती है तो सम्बंधित जिलाधिकारी हो या पुलिस अधीक्षक हो, सरकार द्वारा स्थानांतरित करने की एक प्रचलित परिपाटी सी है । बलिया में आपके राज में भाजपा की सीट आधी हो गयी फिर भी आप कुर्सी पर बने हुए है तो यह स्थानीय पत्रकारों को समझ लेनी चाहिये थी कि आप डीएम के रूप में बलिया में किंग है । इतने नासमझ यहां के पत्रकार निकलेंगे,यह आप भी नही सोचे होंगे ।

आपके व्यवहार वाली आपकी कीर्ति पताका आपके आगमन से पहले ही आ जाती है । आप जब अपने मातहतों को गैंडा सुअर हाथी गधा आदि सुसंस्कारिक नामों से संबोधन करते है तो आपके दरबारी कितने प्रसन्न होते है,यह पत्रकारों को महसूस करना चाहिये था,जो नही किये । अब इसकी सजा जेल जाकर भुगत रहे है । जल में रहकर मगरमच्छ से दुश्मनी की कहावत इन लोगो ने शायद पढ़ी ही नही थी । यह तो कटु सत्य है कि किसी की भी कमाई के स्रोत में टांग अड़ाने की सजा तो मिलती ही है । अब कोई वित्त विहीन विद्यालय इतनी माथापच्ची वाला काम परिक्षाकेन्द्र बनने की जिम्मेदारी क्यो लेगा ? साहब लोग भी जांच में यूं ही थोड़े मानक से समझौता करके सेंटर बनाने की संस्तुति देंगे ? 

अब इन तीन नासमझ पत्रकारों को कौन समझाये कि किंग के खिलाफ आवाज उठाना देशद्रोह होता है,उसके फायदे के स्रोत पर उंगली नही उठायी जा सकती है । ऐसा करना दंडनीय अपराध होता है । किंग भगवान का दूत होता है । जैसे भगवान से कोई गलती नही होती है,वैसे ही भगवान के दूत से भी कुछ भी गलत नही होती है,यह पत्रकारों को भी गांठ बांध लेनी चाहिये थी और बलिया के किंग डीएम साहब की खुशी के लिये चारण भांट बनना चाहिये था,जब शासन सत्ता के लोग डीएम के खिलाफ नही बोल रहे है तो केवल कहलाने के लिये  लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को किंग के खिलाफ आवाज उठाने से पहले हजार बार सोचना चाहिये था,बग़ीपन के चक्कर मे फंस गये ।

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