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फाइलेरिया की दवा का लाभ पाकर संगीता एवं मनसी देवी के जीवन में छायी खुशी

 



 - संगीता बनी बह्मबाबा पेशेंट सपोर्ट ग्रुप की अध्यक्ष और पेश की मिशाल 

 बलिया ।। बांसडीह ब्लाक के राजपुर गांव की संगीता देवी पिछले पांच वर्ष से फाइलेरिया ग्रस्त हैं। इलाज के नाम पर निजी अस्पतालों में 50 हजार रुपये से अधिक खर्च करने के बाद भी आराम नहीं मिला। संगीता ने बताया कि दिसम्बर 2021 में मुझे गांव में चल रहे फाइलेरिया के काशी बाबा पेशेंट सपोर्ट ग्रुप के सदस्यों के जरिए फाइलेरिया के बारे में जानकारी मिली। तभी से मैंने अपने गांव के अन्य फाइलेरिया मरीजों के साथ होने वाली बैठकों और कार्यक्रमों में शामिल होने लगी। यह तो सिर्फ एक उदाहरण है। ऐसे कई लोग पेशेंट सपोर्ट ग्रुप से लाभान्वित हो रहे हैं।    

संगीता ने बताया कि बैठक में आने वाले सभी मरीजों की सहमति से ब्रह्मबाबा पेशंट सपोर्ट ग्रुप का गठन हुआ। सभी सदस्यों की सहमति से मुझे समूह का अध्यक्ष चुना गया। समूह की बैठक और अन्य कार्यक्रमों में भाग लेने के दौरान सीफार के जिला समन्वयक, जिला मलेरिया अधिकारी और आशा आदि के जरिए बताये जाने वाले फाइलेरिया से बचाव के उपायों का नियमित रूप से पालन करती हूं। प्रशिक्षण लेने के बाद मैंने अपने पैरों की नियमित सफाई और देखभाल करती हूं। आशा से या सरकारी अस्पताल पर मिलने वाली फाइलेरिया की दवा का सेवन करती हूं। इससे मेरे पैर की सूजन कम हो गयी है। दर्द और बुखार से भी पहले से बहुत राहत है। हम समूह के सभी सदस्य एक दूसरे की देखभाल में सहायता करते हैं। पहले फाइलेरिया से होने वाली परेशानी को लेकर मेरे परिवार का कोई सदस्य कुछ भी नहीं पूछता था। समूह की हर बैठक में अब मझे अपने परिवार के साथ होने वाली बैठक लगती है। इसमें मैं अपने दर्द को बांट सकती हूं। समूह में जुड़ने के बाद फाइलेरिया की दवा के नाम पर मेरा एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ है।




 ग्राम राजपुर, ब्लाक बांसडीह निवासी 57  वर्षीय मनती देवी ने बताया कि मैं आठ, नौ वर्ष पहले खेत में धान की रोपाई कर रही थी, तभी अचानक मेरे पैरो में तेज दर्द होने  लगा। मेरे घर के लोग तुरंत गाँव के बगल में डाक्टर के यहाँ लेकर गये तो वहाँ से दवा शुरू हुई।  डाक्टर ने बताया की पथरी की वजह से दर्द हो रहा है। कुछ समय बाद पैर में सूजन होने लगी तो गाँव के एक व्यक्ति ने बताया की यह फाइलेरिया है। उसी के कहने पर बिहार से दवा मंगाकर खाई लेकिन आराम नहीं हुआ। पिछले दो वर्ष  से मैं सिर्फ घर पर रहती थी और जानवरों को चारा डाल देती थी, बाकी कोई काम नहीं कर पा रही थी।

  6 माह पहले गाँव में फाइलेरिया के मरीज शिवशंकर( काशी बाबा सपोर्ट ग्रुप के अध्यक्ष) ने बताया तो मैं भी मरीजों की बैठक में जाने लगी। वहाँ से जो जानकारी और ट्रेनिंग मिलती थी उसी के हिसाब से मैं अपने पैरों की सफाई और व्यायाम करने लगी।  सरकारी अस्पताल में जाकर डाक्टर से फाइलेरिया की दवा भी ली थी।  मुझे दवा खाने से बहुत आराम मिला है।  अब घर से बाहर निकलकर फाइलेरिया समूह की हर बैठक में और जो भी कार्यक्रम चाहे गाँव में हो या ब्लाक पर हर जगह जाती हूँ। फाइलेरिया समूह में जुड़ने से मेरी दवा का खर्च बंद हो गया, घर का काम और कुछ खेती का काम भी कर लेती हूँ।  पहले से मैं काफी ठीक हूँ, अपने जैसे और फाइलेरिया मरीजों  से बात करके अच्छा लगता है।  गाँव के और भी जो मरीज हैं  उन्हें भी समझाने की कोशिश करती हूँ की वो भी हमसे जुडें। मैं चाहती हूँ कि मेरे गाँव से यह रोग भाग जाये।   

जिला मलेरिया अधिकारी सुनील कुमार यादव ने बताया कि जनपद में लिम्फोडिमा (हाथी पांव) के 1273 मरीज हैं एवं हाइड्रोसील के 225 मरीज हैं। तथा जनपद में कुल 900 एमएमडीपी किट  बाँटी गयी है।

क्या है फाइलेरिया

फाइलेरिया वेक्टरजनित रोग है। यह मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने होता है। इसे लिम्फोडिमा (हाथी पांव) भी कहा जाता है। यह न सिर्फ व्यक्ति को दिव्यांग बना देती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।  शुरूआती दिनों में डाक्टर की सलाह पर दवा का सेवन किया जाए तो इसका परजीवी नष्ट हो जाता है। प्रदेश सरकार के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा एमडीए अभियान चलाया जाता है। इसमें स्वास्थ्य विभाग की टीमें घर-घर जाकर फाइलेरिया की दवा खिलाती  हैं।  इसके साथ ही घर के आस-पास व अंदर साफ-सफाई रखने, पानी जमा न होने दें और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव करने के प्रति भी जागरूक किया जाता है।