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बड़ा सवाल : पीएम मोदी की सुरक्षा में सेंध पर बवाल ,कैसी होती है पीएम की सुरक्षा




हाल के दशकों में कैसे मज़बूत होती गई प्रधानमंत्री की सुरक्षा?

नईदिल्ली ।। प्रधानमंत्री मंत्री की सुरक्षा की आवश्यकता कब महसूस की गई,इसकी पृष्ठभूमि में जाना बहुत जरूरी है । ये कहानी 1967 से शुरू हई । उस वक्त कांग्रेस ने ओडिशा में अपना चुनाव अभियान शुरू किया था. एक चुनावी रैली में भीड़ ने अचानक मंच की तरफ़ पत्थर फेंकने शुरू कर दिए ।

मंच पर भाषण दे रही महिला को एक पत्थर लगा. उनकी नाक से ख़ून बहने लगा. उन्होंने ख़ून पोंछा और अपना भाषण जारी रखा ।ये महिला कोई और नहीं भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं । साल 1984 में इंदिरा गांधी की के अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी थी ।


देश में प्रधानमंत्री की सुरक्षा हमेशा से ही एक गंभीर मुद्दा रही है । बदलते वक़्त के साथ प्रधानमंत्री पद की सुरक्षा ज़रूरतों में भी बदलाव हुए हैं । हाल ही में पंजाब दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफ़िले के भीड़ में फंसने के बाद एक बार फिर से प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर चर्चा शुरू हो रही है. लोग जानना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए कौन ज़िम्मेदार होता है और इसके लिए किस तरह की तैयारियां की जाती हैं । बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश में कई रैलियां कर चुके हैं. 05 जनवरी को उन्हें पंजाब में भी रैली में शामिल होना था ।

 

फिरोज़पुर में हो रही इस रैली के लिए प्रधानमंत्री को हेलीकॉप्टर से पहुंचना था लेकिन ख़राब मौसम की वजह से उन्होंने सड़क मार्ग से जाने का निर्णय लिया । भारत के गृह मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि पंजाब के पुलिस महानिदेशक की तरफ़ से सुरक्षा का भरोसा मिलने के बाद ही प्रधानमंत्री का काफ़िला सड़क मार्ग से निकला था. डीजीपी ने भरोसा दिया था कि सुरक्षा के सभी इंतज़ाम किए गए हैं ।लेकिन रास्ते में किसानों ने प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया और उनके काफ़िले को एक ब्रिज पर रोकना पड़ा । पुलिसकर्मियों ने सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को ट्रकों में भरकर वहां से हटाया भी ।









प्रधानमंत्री जहां रुके थे वो जगह पाकिस्तान सीमा से क़रीब तीस किलोमीटर दूर है । रिपोर्टों के मुताबिक़ उनकी कार ब्रिज पर 15-20 मिनट तक फंसी रही थी । इसे प्रधानमंत्री की सुरक्षा में बड़ी चूक माना जा रहा है । बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे पर सवाल उठा रहे हैं. बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने एक बयान में कहा कि 'कांग्रेस के खूनी इरादे नाकाम रहे' । स्मृति ईरानी ने यहां तक कहा कि कांग्रेस में कुछ लोग हैं जो मोदी से नफ़रत करते हैं और वो प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे थे ।


वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने स्मृति ईरानी के इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री की रैली में उम्मीद के मुताबिक़ लोग नहीं जुट पाए थे और शर्मनाक परिस्थिति से बचने के लिए प्रधानमंत्री ने अपनी रैली रद्द की ।लेकिन प्रधानमंत्री की सुरक्षा किसकी ज़िम्मेदारी होती है, ये समझने के लिए हमें इस विषय के इतिहास में जाना होगा.



                      प्रधानमंत्री और सुरक्षा

जब पंडित जवाहर लाल नेहरू साल 1947 मे आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने तब वो खुली कार में यात्रा करते थे ।नेहरू लोकप्रिय नेता ज़रूर थे, लेकिन उन्हें भी विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ता था ।1967 में जब इंदिरा गांधी पर पत्थर फेंके गए तो प्रधानमंत्री की सुरक्षा बढ़ा दी गई. लेकिन प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर निर्णायक मोड़ 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आया ।


दरअसल इंदिरा सरकार ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से अलगाववादियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य अभियान ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया था । 30 अक्तूबर 1984 को दिए एक भाषण में इंदिरा गांधी ने कहा था, "मैं आज हूं, कल नहीं रहूंगी. लेकिन मैं जब तक ज़िंदा हूं मैं अपने रक्त की हर बूंद अपने राष्ट्र को मज़बूत करने में ख़र्च करूंगी."अगले ही दिन 31 अक्तूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उनके अपने सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी ।


इस घटना के बाद राजधानी दिल्ली में सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे । उस वक्त देशभर में इसकी गंभीर प्रतिक्रिया हुई थी ।क़ानून व्यवस्था चरमरा गई थी ।अगले ही साल 1985 में प्रधानमंत्री की सुरक्षा करने के लिए स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) की स्थापना कर दी गई थी । साल 1988 में संसद में एसपीजी एक्ट पारित किया गया था ।


प्रधानमंत्री जब चलते हैं तो आपने उनके अगल-बगल काला सफारी सूट, काले चश्मे और हाथ में हथियार लिए लोगों को चलते देखा होगा. इनके पास वॉकी-टॉकी होते हैं और कान में इयरपीस लगा होता है. ये एसपीजी अधिकारी होते हैं । एसपीजी के ये जवान कई तरह के विशेष प्रशिक्षण से हो कर गुज़रते हैं. उन्हें ख़ास तौर पर इस काम के लिए तैयार किया जाता है. उनकी ज़िम्मेदारी देश के प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिजनों को सुरक्षा देना है. एसपीजी के जवान साये की तरह प्रधानमंत्री के साथ रहते हैं. प्रधानमंत्री जहां भी जाते हैं, एसपीजी स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर उन्हें वहां सुरक्षा देती है ।


हाल के महीनों तक कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को भी एसपीजी सुरक्षा मिलती थी लेकिन मोदी सरकार ने अब इसे वापस ले लिया है । कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने बदले की भावना से ऐसा किया है ।राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की एसपीजी सुरक्षा वापस लेने के बाद उन्हें ज़ेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा दी गई है ।

    पीएम के दौरे पर क्या होती है राज्य सरकार की भूमिका?

हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी के काफ़िले के लिए 12 करोड़ रुपए की एक कार ख़रीदी गई है. इसे लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आईं लेकिन सरकार का कहना था कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए इसे ख़रीदना ज़रूरी था ।एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले सुरक्षा के किस तरह के इंतज़ाम किए जाते हैं ।


प्रधानमंत्री का सुरक्षा घेरा बनाए रखना एसपीजी की ज़िम्मेदारी होती है. इसके अलावा सभी इंतज़ाम राज्य की पुलिस को करने होते हैं ।प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले ही एसपीजी की टीम राज्य में पहुंच जाती है । इसके अलावा सिक्यूरिटी ब्यूरो राज्य पुलिस और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से सुरक्षा मुहैया कराता है ।

  राज्य पुलिस की क्या ज़िम्मेदारी होती है?


1- प्रधानमंत्री की यात्रा के लिए रास्ता साफ़ कराना


2- घटनास्थल पर सुरक्षा मुहैया कराना


3- प्रधानमंत्री की यात्रा की निगरानी करना, किसी भी बाधा को तुरंत हटाना


प्रधानमंत्री की यात्रा के लिए ये कार्य योजना सिर्फ़ क़ाग़ज़ पर ही नहीं होती बल्कि यात्रा से पहले इसकी मॉक ड्रिल भी की जाती है ।प्रधानमंत्री की यात्रा के लिए वैकल्पिक रास्ते भी तैयार रखे जाते हैं और उनके ठहरने की भी वैकल्पिक व्यवस्था की जाती है. यदि प्रधानमंत्री हेलीकॉप्टर से यात्रा करते हैं तो समय-समय पर मौसम का अनुमान लगाया जाता है. ये सभी नियम एसपीजी की ब्लूबुक में निर्धारित किए गए हैं ।


एसपीजी देश की शीर्ष सुरक्षा एजेंसियों में शामिल है और प्रधानमंत्री को सुरक्षित रखने के लिए एसपीजी के पास 400 करोड़ रुपये से अधिक का सालाना बजट होता है. बीते साल पेश किए बजट में एसपीजी का सालाना बजट 429.05 करोड़ रुपये का था ।


                 मोदी की सुरक्षा पर विवाद


पंजाब में प्रदर्शनकारियों के सड़क जाम करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी का काफ़िला हुसैनीवाला में राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाने से पहले ही लौट आया था. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भठिंडा एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद मोदी ने स्थानीय पुलिस के अधिकारियों से कहा था, "अपने मुख्यमंत्री को शुक्रिया कहना, मैं ज़िंदा लौट आया."


गृहमंत्रालय ने इस घटना पर पंजाब सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. पंजाब सरकार ने भी घटनाक्रम की जांच की घोषणा कर दी है. पंजाब सरकार ने ये भी कहा है कि उसकी व्यवस्था में कुछ भी ग़लत नहीं हुआ है ।उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह मानते हैं कि पंजाब पुलिस ने इस मामले में घोर लापरवाही की है ।विक्रम सिंह कहते हैं, "लोग तर्क दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री ने अचानक अपना रूट बदला था. रूट अचानक ही बदला जाता है. लेकिन प्रदर्शनकारी अचानक इकट्ठा नहीं होते. वो पहले से तैयारी कर रहे होंगे. उन्हें रोका जा सकता था लेकिन रोका नहीं गया."


       गृह मंत्रालय ने क्या जानकारी दी


पीआईबी ने पूरे मामले पर गृह मंत्रालय का बयान जारी किया है ।इसके मुताबिक, ''आज सुबह प्रधानमंत्री मोदी बठिंडा में उतरे और यहां से वो हेलिकॉप्टर से हुसैनीवाला में राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाने वाले थे. बारिश और कम दृश्यता के कारण प्रधानमंत्री मोदी ने 20 मिनट तक मौसम साफ़ होने का इंतज़ार किया. जब मौसम साफ़ नहीं हुआ तो फ़ैसला किया गया कि वो सड़क मार्ग से ही शहीद स्मारक पहुँचेंगे. पंजाब पुलिस के डीजीपी की ओर से सुरक्षा प्रबंध की पुष्टि होने पर पीएम मोदी का काफ़िला रवाना हुआ.''

गृह मंत्रालय ने बताया, ''हुसैनीवाला से 30 किलोमीटर पहले पीएम का काफ़िला एक फ़्लाईओवर पर पहुँचा तो पाया गया कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने सड़क जाम कर रखी है. प्रधानमंत्री फ्लाईओवर पर 15 से 20 मिनट तक फँसे रहे. यह प्रधानमंत्री की सुरक्षा में बड़ी चूक थी.'' गृह मंत्रालय ने कहा है कि इस मामले को गंभीरता से लिए गया है और पंजाब सरकार से रिपोर्ट मांगी गई है ।



 पंजाब के सीएम बोले-मेरी ग़लती नहीं


पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने इस मामले को लेकर बुधवार शाम छह बजे के करीब प्रेस कॉन्फ्रेंस की ।चन्नी ने कहा कि ये सुरक्षा की चूक का मामला नहीं है. लेकिन प्रधानमंत्री के वापस जाने का उन्हें खेद है ।

चन्नी ने कहा, " गृह मंत्री का फ़ोन आया था. उन्होंने कहा कि वहां कुछ ग़लत हो गया और प्रधानमंत्री वापस आ रहे हैं. मैंने कहा था कि मेरी तरफ़ से कोई ग़लती नहीं हुई है.''चन्नी ने कहा कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा का पूरा इंतज़ाम था

उन्होंने कहा, "इसमें कोई सुरक्षा का मामला नहीं है. उनको आंदोलनकारियों ने रोका और वे चले गए. मैं अब यही कहूंगा कि आगे से अच्छे से इंतज़ाम करूंगा." चन्नी ने बताया कि कोरोना संक्रमितों के संपर्क में आने की वजह से वो प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए नहीं जा सके.



                    स्मृति इरानी के आरोप


केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता स्मृति इरानी ने भी इस मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस की । स्मृति इरानी ने कई सवाल उठाए. उन्होंने आरोप लगाया, 'प्रधानमंत्री की जान को जोखिम में डाला गया और पंजाब पुलिस मूकदर्शक बनी रही.' । स्मृति इरानी ने आरोप लगाया, " कांग्रेस के ख़ूनी इरादे नाकाम रहे. हमने कई बार कहा है कि कांग्रेस को नफ़रत मोदी से है लेकिन हिसाब हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री से न कीजिए. कांग्रेस को आज जवाब देना होगा."

केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने आगे कहा, " क्या जानबूझकर पीएम के सुरक्षा दस्ते को झूठ बोला गया? पीएम के पूरे काफिले को रोकने का प्रयास हुआ 20 मिनट तक पीएम की सुरक्षा भंग की गई, उन लोगों को वहां तक किसने पहुंचाया. "


स्मृति इरानी ने कांग्रेस के कुछ नेताओं की ओर से किए गए ट्वीट को लेकर सवाल उठाए. उन्होंने पूछा, "कांग्रेस ने जोश और उत्सव का इज़हार क्यों किया, किस बात का उत्सव है कि क्या इस बात का कि वो प्रधानमंत्री को मौत की कग़ार पर ले गए?"

युवक कांग्रेस के प्रमुख श्रीनिवास बीवी ने ट्वीट किया था, "मोदी जी हाउ इज द जोश?"स्मृति इरानी ने इसे लेकर ही सवाल उठाया.

 


                       नड्डा का दावा


उधर, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पूरे मामले को चुनाव से जोड़ दिया ।जेपी नड्डा ने पंजाब कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया कि वो चुनाव में 'हार के डर से पीएम मोदी के कार्यक्रमों में रोड़ा डालने की कोशिश कर रही है.'


नड्डा ने कहा, "पंजाब के मुख्य सचिव और डीजीपी ने एसपीजी को आश्वस्त किया था कि प्रधानमंत्री के काफिले के रास्ते में कोई दिक्क़त नहीं होगी. लेकिन प्रदर्शनकारियों को पीएम मोदी के काफिले के रास्ते में आने दिया गया. यह बड़ी सुरक्षा चूक है."

जेपी नड्डा ने कहा कि पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने इस मामले को लेकर फ़ोन पर बात तक नहीं की. नड्डा ने आरोप लगाया कि पंजाब पुलिस को निर्देश था कि वह लोगों को पीएम मोदी की रैली में जाने से रोके ।


                 माफी मांगे कांग्रेस'

बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी इस मामले को लेकर पंजाब सरकार और कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला किया । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कांग्रेस को इस मामले में देश माफी मांगनी चाहिए ।

योगी आदित्यनाथ ने कहा, "देश के प्रधानमंत्री जी की सुरक्षा के साथ किए गए खिलवाड़ के लिए कांग्रेस को देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए. देश कभी भी कांग्रेस की साजिशों को सफल नहीं होने देगा."



                       कांग्रेस ने क्या कहा


प्रधानमंत्री के दौरे में सुरक्षा चूक को लेकर लगे आरोपों का जवाब कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने दिया है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री सबके हैं और इस मामले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.


सुरजेवाला ने जेपी नड्डा के आरोपों पर भी जवाब दिया और लिखा, ''डियर नड्डा जी, आपा ना खोएं. इसमें कई और चीज़ें भी हैं. कृपया उनका भी ध्यान रखें-


1) प्रधानमंत्री की रैली की सुरक्षा में 10 हज़ार सुरक्षाकर्मियों की तैनाती थी.

2) एसपीजी और अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर सभी सुरक्षा इंतज़ाम किए गए थे.

3) यहां तक कि हरियाणा-राजस्थान के बीजेपी कार्यकर्ताओं की सभी बसों के लिए भी रूट बनाया गया.

4) प्रधानमंत्री ने सड़क मार्ग से हुसैनीवाला जाने का फ़ैसला किया. यह पीएम के काफ़िले का पूर्वनिर्धारित रूट नहीं था.

5)किसान मज़दूर संघर्ष कमिटी प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री के दौरे के ख़िलाफ़ लगातार प्रदर्शन कर रही है. KMSC से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत दो दौर की वार्ता कर चुके हैं ।


सुरजेवाला ने कहा, ''प्रिय नड्डा जी, रैली रद्द होने का कारण ख़ाली कुर्सियाँ रहीं. यक़ीन न हो तो, देख लीजिए. और हाँ, बेतुकी बयानबाज़ी नहीं, किसान विरोधी मानसिकता का सच स्वीकार कीजिए और आत्ममंथन कीजिए. पंजाब के लोगों ने रैली से दूरी बनाकर अहंकारी सत्ता को आईना दिखा दिया है.''


लेकिन, पंजाब में कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार होने वाले सुनील जाखड़ ने दूसरे नेताओं से अलग लाइन ली. उन्होंने बुधवार की घटना को 'पंजाबियत के ख़िलाफ़' बताया.



सुनील जाखड़ ने कहा, ''आज जो कुछ भी हुआ, वो स्वीकार्य नहीं है. यह पंजाबियत के ख़िलाफ़ है. फ़िरोज़पुर में भारत के प्रधानमंत्री एक राजनीतिक रैली को संबोधित करने वाले थे और इसके लिए सुरक्षित रास्ता सुनिश्चित होना चाहिए था. लोकतंत्र इसी तरह से काम करता है."।

(साभार सिद्धनाथ गानु संवाददाता ,बीबीसी हिंदी)