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द्वाबा के मालवीय पं0 अमर नाथ मिश्र जी की मनी 95 वी जयंती,16 वी पुण्यतिथि

 










डॉ सुनील कुमार ओझा 

दुबेछपरा बलिया ।। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दुबेछपरा, बलिया में महाविद्यालय के संस्थापक तथा द्वाबा के मालवीय कहे जाने वाले पंडित अमरनाथ मिश्र की 95 वीं जयंती और 16 वी पुण्यतिथि दोनों एक साथ  मनाई गई। बता दे कि स्व मिश्र का जन्म व देहावसान दोनों गुरु पूर्णिमा के ही दिन हुआ था ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बैरिया के  विधायक सुरेन्द्र नाथ सिंह थे।कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार डॉ जनार्दन रॉय  ने किया।कार्यक्रम का प्रारम्भ पंडित अमरनाथ मिश्र के प्रतिमा पर माल्यार्पण  और दीप प्रज्वलन से शुरू हुआ। मुख्य अतिथि विधायक बैरिया,श्री सुरेन्द्र नाथ सिंह ने पंडित अमरनाथ मिश्र के अनेक प्रेरक संस्मरणों को सुनाते हुए उनके महान योगदान पर प्रकाश डाला।

सभाध्यक्ष साहित्यकार डॉ जनार्दन रॉय ने पंडित जी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर सारगर्भित  प्रकाश डाला।इस अवसर पर संस्थापक जी की पुत्री श्रीमती विमला मिश्रा और पूर्व प्रबंधक इंजीनियर सुरेंद्र कुमार मिश्र भी उपस्थित थे। पूर्णानंद इंटर कॉलेज दुबेछपरा के प्रधानाचार्य  गिरिजेश दत्त शुक्ला ने अपने व्याख्यान मे पंडित जी के बताए हुए मार्ग पर चलने की अपील की।

अंत मे महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ गौरीशंकर द्विवेदी ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।कार्यक्रम का संचालन डॉ शिवेश राय ने किया। इस मौके पर संस्थापक जी की बड़ी नतिनी विभा तिवारी , धूपा रामप्यारी जूनियर हाईस्कूल की प्रधानाचार्या  शोभा मिश्रा एवं सुनन्दा शुक्ला  ,डॉ संजय मिश्र, डॉ ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह,डॉ विवेक मिश्र,डॉअजित यादव,डॉ गोपाल पांडेय ,डॉ सिद्धार्थ कुमार,संतोष मिश्रा,ओमप्रकाश सिंह,अक्षय ठाकुर,नागेंद्र तिवारी, परमानंद पांडेय सुभाष सिंह,रविंद्र ठाकुर ,योगेंद्र आदि और अनेक ग्रामवासी उपस्थित रहे।


विकास पुरुष पंडित अमर नाथ मिश्र पर एक नजर

        जैसाकि हम सब जानते हैं कि महापुरूषों का व्यक्तित्व प्रवाहित जल के समान होता है, उनमें किसी प्रकार का विकार नहीं होता और वे दीपक की लौ की तरह होते हैं जो अपने को जलाकर दूसरों को अर्थात् पूरे समाज को विकास की लौ दिखाकर प्रकाशित करते हैं। ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी एवं नित्य स्मरणीय मनीषियों में स्व० पं० अमरनाथ मिश्र का नाम अत्यन्त श्रद्धा से लिया जाता है।  उन्होंने एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देश भक्ति के मिशाल को कायम करते हुए पूरे समाज को आलोकित एवं विकसित करने का कार्य किया। इस प्रकार वे समाज के समग्र विकास के पोषक के रूपमें अपना सम्पूर्ण जीवन न्यौछावर कर दिया।

        ऐसे स्वनामधन्य पं० अमरनाथ मिश्र का जन्म गंगा एवं सरजू के पवित्र जल से अभिसिंचित  द्वाबा के बलिहार गाँव में सन् 1927 में 14 जुलाई को आषाढ़ मास की पूर्णिमा अर्थात गुरू पूर्णिमा  को पिता पं० जगदीश नारायण मिश्र के आँगन में सौभाग्यशाली जननी रामप्यारी की कोख से अच्छाईयों के कल्पवृक्ष एवं गुणों के रूप मे हुआ। महान मनीषियों की तरह ही पं०;अमरनाथ मिश्र की इहलीला भी गुरू पूर्णिमा के दिन ही 20 जुलाई, 2005 को समाप्त हुई। इस तरह इस महान मनीषी का आविर्भाव एवं तिरोभाव दोनों ही आषाण मास की पूर्णिमा  अर्थात गुरू पूर्णिमा को हुआ। गुरू पूर्णिमा के दिन जन्म एवं  मृत्यु दोनों का संयोग मात्र महान मनीषियों, संतों एवं महात्माओं को ही मिलता है।


पं० अमरनाथ मिश्र एक ऐसे सच्चे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में अपना विशेष योगदान करते हुए अपनी तरूणाई देश को स्वतंत्र करने में समर्पित कर दिया। स्वतंत्रता आन्दोलन में बैरिया थाने पर हुई घटना में मिश्र जी ने अपनी अहम् भूमिका निभाई और अपने क्रांतिवीर साथियों के साथ गाँव- गाँव भ्रमण कर क्रांति का अलख जगाया करते थे । अंततः जब देश स्वतंत्र हुआ तो समाज एवं देश को सँवारने हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा हेतु समर्पित कर दिया।

       पं० अमरनाथ मिश्र की प्रारंभिक शिक्षा प्रथमिक विद्यालय बलिहार एवं मिडिल स्कूल रामगढ़ में हुई । उच्चशिक्षा की सुविधा नहीं होने के कारण वे उच्च शिक्षा से वंचित रह गए , किंतु  वे प्रतिभा के अत्यन्त धनी थे।  इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा की व्यवस्था न होने की बात उनके मन- मस्तिष्क में कचोटती रही और उन्होंने तब तक चैन की सांस नहीं लिए जब तक इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा की अलख नहीं जगा लिए । अंततः वर्ष 1973 में उनके द्वारा महाविद्यालय दूबेछपरा की स्थापना की गयी जो आज स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा प्रदान करने में जनपद का एक अग्रणी संस्थान बना हुआ है।

      समाज सेवा के साथ- साथ राजनीति को सही दिशा  देने के उद्देश्य से वे राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाते रहे और बैरिया विकासखंड के ब्लाक प्रमुख पद ,बलिया जनपद कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष जैसे पदों को सुशोभित करते हुए समाज सेवा के साथ - साथ राजनीति को भी सही दिशा देने का कार्य करते रहे। चूँकि श्री मिश्र जी को पद- प्रतिष्ठा से लगाव नहीं था , इसलिए इनकी बात सर्वत्र सुनी जाती थी एवं सर्वत्र प्रतिष्ठा एवं सम्मान मिलता था।

     पं० अमरनाथ मिश्र जी खासतौर से द्वाबा क्षेत्र की शिक्षा व्यवस्था के उन्नयन हेतु विशेष योगदान देते रहे । जिसका प्रमाण है कि वे द्वाबा क्षेत्र सहित जनपद के अधिकांश शिक्षण संस्थाओं से किसी न किसी रूपमें सम्बद्ध रहे। यही नहीं जनपद के बाहर भी कई शिक्षण संस्थाओं से सम्बद्ध रहे। क्षेत्र में विकासजनक अवस्थापनात्मक तत्वों की स्थापना एवं विकास में भी उनका विशेष योगदान रहा। चिकित्सा के क्षेत्र में भी अपने गाँव बलिहार में चिकित्सालय की स्थापना कर क्षेत्र के लोगों के लिए चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराया।

     पं० अमरनाथ मिश्र धर्म एवं अध्यात्म के भी मर्मज्ञ थे। वे धार्मिक - आध्यात्मिक कार्यों के संचालन एवं साधना में सदैव लीन रहते थे। यही कारण है कि उनके द्वारा अयोध्या, हरिद्वार एवं बद्रीनाथ धाम में धर्मशाला एवं अतिथि गृह का निर्माण कराया। इस प्रकार उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा एवं समाज के समग्र विकास हेतु समर्पित कर दिया।

      इस तरह यदि देखा जाय तो पं० अमरनाथ मिश्र एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी, शैक्षिक उन्नयन के प्रणेता, सच्चे कर्मयोगी, समाज सेवी, राजनीतिज्ञ एवं धार्मिक तथा आध्यात्मिक उत्थान के प्रणेता थे। इस प्रकार वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी मनीषी थे। उनके शब्दकोश में असम्भव नाम का शब्द ही नहीं था। वे सामाजिक, आर्थिक,  राजनैतिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक एवं आध्यात्मिक आदि प्रत्येक क्षेत्र में ऐसा कार्य किए कि उनकी मिशाल दी जाती है. वे समग्र विकास के पुरोधा थे। यही कारण है कि पं० अमरनाथ मिश्र जी अपने कृत कार्यों द्वारा सदैव हमारे बीच विद्यमान हैं एवं विद्यमान रहेंगे।