Breaking News

क्या घर के अंदर शराब पीना है निजता का अधिकार ? कोर्ट ने फैसला किया सुरक्षित



अहमदाबाद ।। गुजरात मे एक बार फिर से शराबबंदी को लेकर मामला हाई कोर्ट पहुँच गया है। शराबबंदी को जहाँ निजता व समान हक का विरोधी बताया गया है वहीं इस पर सरकार ने कहा है कि 1951 में सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी पर मुहर लगाते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के नशामुक्ति के ध्येय को पूर्ण करने के लिए गुजरात मे शराबबंदी बेहद जरूरी बताया था। वही कोर्ट ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है ।


गुजरात हाई कोर्ट में शराबबंदी के विरोध में पांच याचिकाएं दायर की गई है जबकि इसके समर्थन में तीन याचिकाएं कोर्ट के समक्ष आई है। चीफ जस्टिस विक्रम नाथ एंव जस्टिस बिरेन वैष्णव की खंडपीठ में चल रही शराबबंदी पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने बताया कि गुजरात मे 70 वर्षों से शराबबंदी है,परन्तु देश के अन्य राज्यो में ऐसा नही है। 

शराबबंदी गुजरात के रहने वालों के निजता का हनन है एंव संविधान प्रदत समान हक के विरोधी है। राज्य में मेडिकल के आधार पर 31 हजार परमिट दिए गए हैं जबकि टूरिस्ट एंव विजिटर्स को 66 हजार काम चलाऊ परमिट उपलब्ध करवाए गए है। यदि टूरिस्ट एंव बाहरी लोगों को गुजरात मे शराब पीने की छूट है तो फिर गुजरात के लोगों को शराब का सेवन करने से रोका क्यों जा रहा है। शराबबंदी का विरोध करने वाले सभी याचिकाकर्ताओं के पक्षकार अधिवक्ता मिहिर का कहना है कि गुजरात के लोगों को अपनी चारदीवारी के अंदर कुछ भी खाने पीने का अधिकार है। घर मे मौजूद व्यक्ति क्या खाता पिता है इसमें सरकार दखलंदाजी नही कर सकती। 

शराबबंदी कानून के चलते पुलिस लोगों के घर और अन्य जगहों पर छापेमारी करती है जो कि लोगों की निजता का हनन है। 

गुजरात सरकार के महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने कोर्ट को बताया कि मुम्बई प्रोहिबिशन एक्ट 1949 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट ने 1951 में गुजरात मे शराबबंदी को जायज ठहराया था,इसलिए सरकार के इस कानून को लेकर कोई बदलाव नही किया जा सकता।  (साभार लॉ ट्रेंड)