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लिविंग लिजेंड्स ऑफ बलिया ,फोरम के तत्वावधान में संगच्छद्धवं ( हम साथ- साथ चलें) की ऑनलाइन व्याख्यानमाला में क्रिएटिंग रुरल इंप्लॉयमेंट : लुकिंग बियोंड एग्रिकल्चर' विषय पर प्रस्तुत हुआ व्याख्यान

 


मधुसूदन सिंह

बलिया ।। जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के ' लिविंग लिजेंड्स ऑफ बलिया' फोरम के तत्वावधान में मंगलवार (22जून) को 'संगच्छद्धवं ( हम साथ- साथ चलें) शीर्षक आनलाइन व्याख्यानमाला के अंतर्गत   डा० राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, के कुलपति डॉ रमेश चंद्र श्रीवास्तव ने  ' क्रिएटिंग  रुरल इंप्लॉयमेंट : लुकिंग बियोंड एग्रिकल्चर' विषय   पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कृषि पर निर्भरता बहुत ज्यादा है। यहाँ बेरोजगारी दर शेष भारत की तुलना में काफी ज्यादा है। रोजगार की तलाश में ही यहाँ से लोग पलायन करते हैं।  अतः हमें उनके रोजगार की व्यवस्था यहीं पर करनी होगी। इस संदर्भ में उन्होंने 'सुखेत मॉडल' का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया। सुखेत बिहार के मुज़फरपुर  जिले का एक गाँव है, जहाँ कृषि आधारित नवाचारी उद्यमिता के प्रयोग कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किये जा रहे हैं। आपने बताया कि उज्ज्वला योजना में प्राप्त सिलिंडर को भरवाने के बदले गाय का गोबर इकट्ठा किया जा रहा है, जिससे कंपोस्ट खाद बनाई जा रही है। केले के जिस तने को फेंक दिया जाता था, उससे रेशे निकाल कर उसका प्रयोग हस्तशिल्प उत्पाद बनाने में और उसका गूदा जिसमें पोटाश ज्यादा होता है के प्रयोग से वर्मीकंपोस्ट बनाया जा रहा है। अरहर के बेकार समझे जाने वाले तने से बहुत सी उपयोगी वस्तुयें जैसे अगरबत्ती की डंडी, मोबाइल स्टैंड, पेन स्टैंड आदि तथा इसके रेशे से अन्य सजावटी वस्तुयें बनाई जा रही हैं। मक्के से पैकेजिंग मैटेरियल बनाया जा सकता है, जो थर्मोकोल का बेहतर विकल्प है । इससे एक स्टैंड इत्यादि वस्तुयें भी बनाई जा सकती हैं। लीची के बीजों से फिश फीड, जबकि पुआल से मशरूम उत्पादन किया जा सकता है। इसी प्रकार हल्दी की पत्तियों से तेल निकाला जा सकता है जो मच्छर, कीटों , पादप रोगाणुओं के नियंत्रण के साथ खाद्य संरक्षण में भी प्रयोग किया जा सकता है। सब्जियों के कचरे से हर्बल गुलाल बनाया जा सकता है। इस प्रकार कृषि क्षेत्र के बेकार होने वाले पदार्थों से बहुत सारे उद्योग चलाये जा सकते हैं। बड़े स्तर पर इसका प्रयोग करके लगभग 68 लाख लोगों को रोजगार दिया जा सकता है और 17000 करोड़ तक की धनराशि उपार्जित की जा सकती है। उन्होंने अपने बलिया से जुड़ाव का जिक्र करते हुए कहा कि हम सभी बलिया की माटी के सपूत हैं और इस धरती के विकास में अपना हर संभव योगदान देंगे। 

       अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलपति प्रो ० कल्पलता पांडेय ने कहा कि जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के विकास के लिए कृत संकल्पित है। हमने इसीलिए लिविंग लिजेंड्स फोरम की स्थापना की ताकि बलिया की विशिष्ट प्रतिभाओं के सहयोग से इस क्षेत्र के विकास की कार्ययोजना तैयार की जा सके और इनकी विशेषज्ञता का सहयोग लेते हुए इस रास्ते पर आगे बढ़ा जा सके। आपने बताया कि शीघ्र ही जननायक विश्वविद्यालय और राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय के बीच एम ओ यू साइन हो जायेगा और कृषि विश्वविद्यालय की विशेषज्ञता का लाभ बलिया जनपद को मिल सकेगा। 

     इस गोष्ठी में अतिथियों का स्वागत डा० डा० यादवेंद्रप्रताप सिंह, , संचालन डा०  प्रमोद शंकर पांडेय तथा धन्यवाद ज्ञापन डा० जैनेंद्र कुमार पांडेय ने किया। इस गोष्ठी में प्रो ० जे पी एन पांडेय, डा० साहेब दूबे, डा० अशोक सिंह, डा० निशा राघव, डा० सुचेता प्रकाश, डा० ओ पी सिंह आदि विभिन्न महाविद्यालयों के प्राचार्य, प्राध्यापक गण, शोध छात्र एवं विद्यार्थी सम्मिलित रहे।