Breaking News

दिल्ली उच्च न्यायालय का बड़ा फैसला :बच्चे के बालिग होने पर भी पिता की जिम्मेदारियां नही हो जाती है खत्म



नईदिल्ली ।। दिल्ली हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता की मांग को लेकर नगर निगम में अपर डिविजनल क्लर्क के पद पर कार्यरत महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि बेटे के बालिग होने के बाद भी पिता की जिम्मेदारियां समाप्त नही हो जाती है।

याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस एस प्रसाद की पीठ ने कहा कि ऐसा नही कहा जा सकता है कि 18 वर्ष के होने पर पुत्र के प्रति पिता की जिम्मेदारी पूरी हो जाती है और उसकी शिक्षा का पूरा खर्च माँ पर आ जाता है। बेटा अभी मात्र 12वीं पास है और याचिकाकर्ता को ही उसका पूरा खर्च वहन करना पड़ रहा है। जीवन जीने के लिए बढ़ते खर्च पर कोर्ट अपनी आंख नही मूंद सकती है।

पीठ ने महिला के पति को निर्देश दिया है कि बेटे के वयस्क होने की तारीख से जब तक वह स्नातक की पढ़ाई पूरी न कर ले या कुछ कमाने न लगे तब तक याचिकाकर्ता को गुजारा भत्ता के रूप में 15 हजार रुपये अदा करे। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया है कि वर्ष 2008 में दायर किये गए वाद को तेजी से सुनवाई कर 12 माह में निपटारा किया जाय। इस दौरान पीठ ने यह भी कहा कि माँ से उम्मीद नही की जा सकती है कि वह बेटे का पूरा खर्च वहन करेगी। वहीं पिता सिर्फ बेटी के गुजारे के लिए थोड़ी सी मदद करेगा। याची की आय तीन लोगों की फैमिली के लिए पर्याप्त नही है। 


बता दे कि नगर निगम में कार्य करने वाली महिला की शादी एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया में ज्वाइंट जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत व्यक्ति से नवंबर 1997 में हुई थी। दोनों को एक बेटा व एक बेटी है। दोनों के बीच विवाद होने के बाद मामला फैमिली कोर्ट में पहुँचा। फैमिली कोर्ट ने महिला को गुजारा भत्ता देने से इनकार करते हुए दो बच्चो के लिए पहले सात हजार रुपये का गुजारा भत्ता निर्धारित किया और फिर इसे बढ़ाकर 13 हजार रुपए कर दिया था। महिला के द्वारा गुजारा भत्ते की मांग को लेकर दायर याचिका को परिवार न्यायालय ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि वह पर्याप्त कमाई करती है और गुजारा भत्ता पाने की हकदार नही है। (साभार लॉ ट्रेंड)