अनारक्षित सीट से चुनाव लड़ने वाले आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों का हमेशा के लिये रद्द हो आरक्षण का अधिकार
मधुसूदन सिंह
बलिया ।। भारतीय संविधान के निर्माताओ ने समाज की मुख्य धारा में शामिल होने से वंचित लोगो को मात्र 10 साल के लिये आरक्षण के सहारे समाज के साथ खड़े होने के लिये आरक्षण का प्राविधान किया था । लेकिन देश की राजनीति ने जो आरक्षण पहले अनुसूचित जाति/जन जाति के लिये ही था,उसको ओबीसी और अब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर समाज मे विघटन पैदा करने का काम किया है । आज देश मे हर काम आरक्षण के सहारे ही हो रहा है । आरक्षण रूपी जहर पूरे समाज को विघटित करने पर लगा हुआ है ।
सबसे बड़ा दुखद पहलू यह है कि जो लोग आरक्षण के सहारे चाहे आईएएस /आईपीएस बन जा रहे है, या अन्य सरकारी नौकरियां प्राप्त कर ले रहे है, समाज के अन्य वर्ग के उम्मीदवारों के साथ बराबरी का काम कर रहे है, फिर भी इनको पदोन्नति में भी आरक्षण दिया जा रहा है,आखिर क्यों ? जब ये एक सामान्य वर्ग के चयनित उम्मीदवार के साथ ट्रेनिंग करते है,ट्रेनिंग उत्तीर्ण करते है, फिर ये कहां से सामान्य वर्ग से कमतर हुए कि इनको पदोन्नति में भी आरक्षण चाहिये ? देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को समझा और इसको गैर कानूनी करार दे दिया । लेकिन धन्य है हमारे देश के राजनेता जो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को भी कानून बनाकर सिर्फ वोट के लिये बदल देते है । जरा हम सब सोचे कि एक आदमी को ऊपर पहुंचाने के लिये दूसरे को नीचे पहुंचाने के लिये बार बार दबाना क्या उचित है ? होना तो यह चाहिए कि आरक्षण के सहारे नौकरी मिलते ही उस व्यक्ति का आरक्षण समाप्त कर सामान्य श्रेणी में कर देना चाहिये , जिससे आरक्षित वर्ग के दूसरे व्यक्ति को अगली बाद लाभ मिल सके । जबकि हो यह रहा है कि जो लोग आरक्षण के सहारे सरकारी नौकरी प्राप्त कर तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते जा रहे है,उनको न धन की कमी है,न मान सम्मान की,न इनके बच्चे पढ़ाई लिखाई में कमजोर है, फिर भी ये आरक्षण का लाभ लेकर दूसरे के हक को हड़प रहे है,क्या एक मंत्री एमपी विधायक आईएएस/आईपीएस आदि को या इनके बच्चो को आरक्षण की जरूरत है ?
जिस तरह हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सभी सम्पन्न लोगों से एलपीजी की सब्सिडी छोड़ने की अपील की थी, क्या ऐसी ही एक अपील सम्पन्न लोगों से आरक्षण छोड़ने की नही की जानी चाहिये ? होना तो यही चाहिये लेकिन यह होगा नही क्योकि आरक्षण पर ही हमारे देश के राजनीतिज्ञों की राजनीति जो टिकी हुई है ।
वही एक काम और होना चाहिये जो नही हो रहा है,यह काम है अनारक्षित सीट से आरक्षित वर्ग के व्यक्तियों का चुनाव लड़ना । अनारक्षित सीट से कोई भी चुनाव लड़े ,इसपर आपत्ति नही है । मगर एक बात तो यह होनी चाहिये कि अनारक्षित सीट से अगर कोई चुनाव लड़े तो उसका आरक्षण का अधिकार सदा के लिये समाप्त होना चाहिये क्योंकि वह बिना आरक्षण के चुनाव लड़ने में सक्षम है तभी तो अनारक्षित सीट से लड़ रहा है ? और जो सक्षम है उसको आरक्षण की जरूरत क्या है ।
लेकिन यह हिंदुस्तान है, यहां की राजनीति अंग्रेजो की नीति बांटो और राज करो पर चल रही है, चाहे धर्म के नाम पर बांटो, चाहे जाति के नाम पर बांटो या चाहे क्षेत्र के नाम पर बांटो । यही कारण है कि देश मे आपसी भाईचारे और साम्प्रदायिक सौहार्द में कमी आती जा रही है ।
जयहिंद