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पुलिस अफसरों की कार्यप्रणाली पर हाईकोर्ट ने की सख्त टिप्पड़ी, विधि सिद्धान्तो को नजर अन्दाज कर पुलिस अधिकारी पारित कर रहे है आदेश



ए कुमार

प्रयागराज ।। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फेस-2, नोएडा जनपद गौतमबुद्धनगर में तैनात लीडिंग फायरमैन नरेश कुमार के निलम्बन आदेश दिनांक 24.12.2019 पर रोक लगाते हुये स्थगित कर दिया है । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपों की विभागीय जांच बैठाये बगैर पुलिस अधिकारियों के निलम्बन को शॉकिंग करार दिया है। याचिकाकर्ता के विरुद्ध यह आरोप था कि दिनांक 23.12.2019 को थाना फेस-2 नोएडा जनपद गौतमबुद्धनगर में मुकदमा अपराध संख्या 1083 / 2019 धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में लिप्त होने व भ्रष्टाचार निवारण संगठन, मेरठ टीम द्वारा ट्रैप कर गिरफ्तार करने पर उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी की आचरण नियमावली 1956 के नियम 3 का उल्लघंन कर पुलिस बल की छवि धूमिल करना एवं अनुशासनहीनता के आरोप थे।


तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गौतमबुद्धनगर वैभव कृष्ण द्वारा लीडिंग फायरमैन मनोज कुमार नोएडा जनपद गौतमबुद्धनगर को दिनांक 24.12.2019 को उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली -1991 के नियम 17(1) के प्रावधानों के अन्तर्गत निलम्बित कर दिया गया था एवं निलम्बन की अवधि में रिजर्व पुलिस लाइन जनपद गौतमबुद्धनगर में सम्बद्ध कर दिया गया था।


याची की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं सहायक अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम का कहना था कि हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार बनाम जय सिंह दीक्षित व सच्चिदानन्द त्रिपाठी समेत तमाम केसों में यह कानून प्रतिपादित कर दिया है कि निलम्बन आदेश पारित करते समय सक्षम अधिकारी के पास उसके खिलाफ निलम्बन के लिये पर्याप्त साक्ष्य होने चाहिये। याची के खिलाफ अधिकारी के पास कोई ऐसा साक्ष्य या तथ्य नहीं था जिसके आधार पर निलम्बित किया जा सके एवं याची का निलम्बन आदेश नियम एवं कानून के विरूद्ध है तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के केस में याची को विद्वेष की भावना से झूठा फसाया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि निलम्बन आदेश उत्तर प्रदेश अग्निशमन सेवा अधीनस्थ अधिकारी/कर्मचारी सेवा नियमावली 2016 के नियम 27(4) के विरुद्ध है क्योंकि निलम्बन आदेश फायर सर्विस मुख्यालय द्वारा जारी किया जाना चाहिये था, या फायर सर्विस मुख्यालय द्वारा, आदेश पारित करने से पूर्व सक्षम अधिकारी को अनुमति लेनी चाहिये थी, जो कि नहीं ली गयी।


उक्त प्रकरण की सुनवाई करते हुये माननीय न्यायमूर्ति एम०सी0 त्रिपाठी ने पुलिस के आलाधिकारियों एवं राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुये 4 हफ्ते में जवाब तलब किया है तथा तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गौतमबुद्धनगर वैभव कृष्ण द्वारा पारित निलम्बन आदेश दिनांक 24.12.2019 को अग्रिम सुनवाई तक के लिये स्थगित कर दिया है। अपने आदेश में न्यायालय ने पुलिस अधिकारियों के मनमाने आदेशों से नाखुश होकर अधिकारियों की कार्य प्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की है। न्यायालय ने कहा है कि यह बहुत आश्चर्य का विषय है कि पुलिस विभाग के आला अफसर लगातार उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित किये गये कानून के सिद्धान्त के विरूद्ध आदेश पारित कर रहे है एवं इस तरीके के अवैध निलम्बन आदेश पारित करने की वजह से कोर्ट के ऊपर Burden (भार) पड़ रहा है, जबकि न्यायालय पर वैसे ही विचाराधीन मुकदमों का बोझ है। न्यायालय ने कहा है कि विधि के सिद्धान्तो को नजर अन्दाज कर पुलिस अधिकारी  नियम विरुद्ध आदेश पारित कर रहे है ।