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नगर पालिका के सेवानिवृत्त कर्मी भी हो जाय सावधान,क्योकि ईओ आप पर भी कर सकते है अनुशासनहीनता में कठोर कार्यवाही

 


मधुसूदन सिंह

बलिया ।। अगर आज तक आप यह सोचते है कि सेवानिवृत्ति के बाद आप पर विभागीय कार्यवाही ,वो भी अनुशासनहीनता में नही हो सकती है तो यह आपकी गलत फहमी है । अगर आपको मेरी बात का विश्वास न हो रहा हो तो नगर पालिका परिषद बलिया के सेवानिवृत्त मीटर रीडर अलीम खान से मिलकर पूंछ सकते है जिनको अधिशासी अधिकारी दिनेश कुमार विश्वकर्मा ने अपने 10 नवम्बर 2020 के पत्रांक 539 के द्वारा जारी नोटिस में चेतावनी दी है ।

 अधिशासी अधिकारी आजतक अपना और चेयरमैन के अधिकार को परिभाषित ही नही कर पाये है और कई बार बिना चेयरमैन की स स्तुति के ही अपना आदेश जारी कर देते है जो विवाद का कारण बन जाता है । ताजा मामला भी ईओ विश्वकर्मा की जिद से उतपन्न हुआ है । बता दे कि मार्च 2020 में मीटर रीडर के पद से सेवानिवृत्त हुए अलीम खान के आवास पर कई कर्मचारियों की नजर थी । सबसे पहले अवर अभियंता शशि प्रकाश ने 30 अप्रैल 2020 को अपने नाम से चेयरमैन अजय कुमार समाजसेवी से आवंटित करा लिया ।

इसकी जानकारी होते ही चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों ने विरोध किया कि यह आवास चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के लिये बना है और यह इसी श्रेणी के कर्मी को आवंटित होना चाहिये ,और अवर अभियंता को जारी आवंटन आदेश निरस्त होना चाहिये । जिस पर चेयरमैन ने यह कहते हुए कि मुझसे तथ्यों को छुपाकर अवर अभियंता शशि प्रकाश को आवास आवंटित करा लिया गया है,को निरस्त करते हुए यह आवास 5 अगस्त 2020 को भारत भूषण मिश्र को आवंटित किया जाता है । जिसमे 7 नवम्बर 2020 को भारत भूषण मिश्र अलीम खान की जगह रहने लगे ।

मामला तब चर्चा में आया जब राजस्व निरीक्षक अजेश कुमार मिश्र इस आवास पर अपना आवंटन बताते हुए पहले जबरिया घुसने का प्रयास किया और सफल न होने पर 9 नवम्बर 2020 को सीडीओ/प्रभारी स्थानीय निकाय को पत्र भेजकर भारत भूषण मिश्र पर ताला तोड़कर आवास में घुसने का आरोप लगाया गया । साथ ही ईओ विश्वकर्मा ने इसी शिकायती पत्र के आधार पर 10 नवम्बर 2020 को सेवानिवृत्त मीटर रीडर अलीम खान को अनुशासनहीनता के लिये नोटिस जारी कर दिया ।

सवाल यह उठ रहा है कि नगर पालिका में संवैधानिक रूप से सर्वोच्च पद किसका है -चेयरमैन का या अधिशासी अधिकारी का ? अगर चेयरमैन सर्वोच्च बॉडी है तो उसके आदेश का अनुपालन कराना ईओ की जिम्मेदारी है । अगर ईओ चेयरमैन के आदेश का अनुपालन कराने की बजाय चेयरमैन के आदेश के विरुद्ध आदेश निकालते है तो अनुशासनहीनता यह है । जिस अधिकारी के खिलाफ खुद चेयरमैन ने दर्जनों भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है ,जिसकी जांच रिपोर्ट कई जांच अधिकारियों/मजिस्ट्रेटों द्वारा दी जा चुकी है और अब अंतिम कार्यवाही होनी बाकी है, उस अधिकारी द्वारा सोची समझी साजिश के तहत चेयरमैन के आदेश के खिलाफ उच्चाधिकारियों को अजेश कुमार मिश्र द्वारा शिकायती पत्र भेजवाना ,अनुशासनहीनता यह है । क्योंकि इसका फैसला चेयरमैन को करना है कि आवास किसको आवंटित होना है । कानून के ज्ञाता होने के बाद भी लगता है ईओ साहब को यह संज्ञान नही है कि जबतक चेयरमैन का अधिकार सीज नही होता है,उसके अधिकार को कोई भी अधिकारी नही ले सकता है ।

लगभग 26 भ्रष्टाचार के आरोपो और उसकी जांच रिपोर्ट जमा हो जाने के बाद (सूत्रों के अनुसार) भी अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोरतम कार्यवाही करने वाली योगी सरकार में भी अगर ईओ दिनेश कुमार विश्वकर्मा के खिलाफ तब कार्यवाही नही होना जब खुद मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ल भी अपने पत्रो के द्वारा इस अधिमारी को भ्रष्टाचार में लिप्त होना कहकर हटाने व जांच के बाद कार्यवाही करने की मांग कर चुके है,के खिलाफ अगर स्थानीय स्तर पर या निदेशालय स्तर से कार्यवाही नही हो रही है तो निश्चय ही यह दर्शाने के लिये काफी है कि इस अधिकारी के तार शासन में भी है जो माननीय योगी जी के रहते हुए भी भ्रष्टाचार को अंदर से बढ़ा रहे है ।