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ऐतिहासिक ददरी मेला के नाम पर नगर पालिका का गंदा मजाक : चट्टी चौराहों के मेलो से भी बदत्तर लगाया मेला










मधुसूदन सिंह

बलिया ।। पौराणिक ऐतिहासिक ददरी मेला को लगाने को लेकर नगर पालिका हो, जिला प्रशासन हो या इसको आयोजित कराने के लिये आंदोलन करने वाले राजनैतिक दलों के नेता हो, कोई भी इसके अस्तित्व को लेकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन संजीदा नही दिखा । आलम यह हुआ कि रणनीति के चलते शासनादेश के बावजूद अगर ऐतिहासिकता के नाम पर मेला लगाने का स्थानीय प्रशासन ने जो निर्णय लिया वह बलिया के ऐतिहासिक सांस्कृतिक पौराणिक धरोहर ददरी मेला के साथ बहुत ही गन्दा मजाक साबित हुआ है । इस वर्ष लगा मेला किसी चट्टी चौराहे के मेले से भी बदत्तर स्थिति में लगा है ।

कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के बाद जिस मेला में कदम रखने की भी जगह नही बचती थी ,उस मेले में इस बार दो चाट जलेबी की दुकान के दुकानदार ग्राहकों के लिये तरसते दिखे । कार्तिक पूर्णिमा स्नान के बाद सत्तू मूली खाने की परंपरा की आस में इसकी दुकान लगाये मात्र एक दुकानदार के यहां भी ग्राहक नही दिखे । यहां तक की एक चाय की दुकानवाला और चनाजोर गरम बेचने वाला भी ग्राहकों के लिये तरसते दिखे । चनाजोर गरम बेचने वाला तो फोटो खींचे जाते वक्त शर्म के मारे अपना मुंह छुपाते हुए बोला,भैया जब ग्राहक ही नही है तो फोटो किस काम का । बावजूद इसके एक सप्ताह के मेले के लिये नगर पालिका ने इस वर्ष एडवांस में ही एक लट्ठे के लिये 1700 रुपये जमा करा लिया है ।

सच कहूं तो इस मेले को देखकर ,बलिया के इस धरोहर के साथ नगर पालिका के अधिकारी द्वारा किये गये क्रूरतम अपमान के कृत्य को देखकर कलेजा मुंह को आ गया । अब देखना है कि बलिया के राजनेता बलिया के धरोहर को सार्वजनिक रूप से मजाक बनाने वाले अधिकारियों के खिलाफ क्या रणनीति बनाते है ।