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चकबन्दी की ग़फ़लत में अतिक्रमण का खेल : बलिया के खाप वेनीपाह गांव में कही गंवई संघर्ष का कारण न बन जाय चकबन्दी

 चकबन्दी की ग़फ़लत में अतिक्रमण का खेल : बलिया के खाप वेनीपाह गांव में कही गंवई संघर्ष का कारण न बन जाय चकबन्दी

दो दशक पूर्व सम्पन्न चकबन्दी को लेकर कायम है उहापोह
चकमार्गों व नाली का अतिक्रमण कर मिला चुके हैं खेत में
 विजय मिश्र की रिपोर्ट

 बलिया 22 फरवरी 2020 ।। ‘‘उत्तर प्रदेश चकबन्दी एक्ट 1953’’ के तहत की जाने वाली चकबन्दी प्रक्रिया एक सशक्त, चरणबद्ध एवं पारदर्शी योजना मानी जाती है। काश्तकारों के बिखरे खेतों को एक स्थान पर करते हुए कृषि खातों की संख्या को कम करना चकबन्दी का एक प्रमुख उद्देश्य है, जबकि ‘खाप वेनीपाह’ के मामले में यह उल्टा साबित हुआ है। आलम यह है कि इस चकबन्दी के चलते गांव में खूनी संघर्ष होने की नौबत आती जा रही है ।
 बता दे कि शासकीय अभिलेखों में दर्ज जानकारी के अनुसार अब तक यहां दो बार चकबन्दी हो चुकी है। पहली बार यहां सन् 1962 में चकबन्दी हुई थी। तब यहां कृषि खातों की कुल संख्या मात्र 27 थी, जो सन् 1997 की चकबन्दी में बढ़कर 40 पार हो गयी। इनमें कुछ चकमार्ग एवं नालियां भी शामिल हैं। जो अतिक्रमण का शिकार होकर प्रारम्भ से ही अपने अस्तीत्व की लड़ाई लड़ रही हैं। बलिया तहसील के अन्तर्गत आने वाला ‘खाप वेनीपाह’ मौजा हल्दी से सहतवार जाने वाली सड़क पर बिगहीं गांव के किनारे स्थित है।
   किसी भी गांव में चकबन्दी प्रक्रिया के तहत प्रयास किया जाता है कि प्रत्येक चक (खेत) को चकमार्ग एवं नाली की सुविधा मुहैया हो। जिससे कि, किसानों के आवागमन एवं सिंचाई आदि की समस्या का निवारण हो सके। साथ ही भविष्य की आबादी के प्रसार हेतु दूरदर्शिता भी दिखायी जाती है। अतिक्रमण के चलते ‘खाप वेनीपाह’ मौजा के अनेक किसानों के लिये चकबन्दी बेमानी साबित हो रही है। खतौनी में दर्ज यहां के कई चकमार्ग व नाली अतिक्रमित होकर खेतों में लुप्त हो चुके हैं।
    सही ढंग से क्रियान्वयन न होने से सरकार की एक महत्वपूर्ण एवं लाभकारी योजना का किस कदर बंटाधर हो जाता है उसे ‘खाप वेनीपाह’ के उदाहरण से समझा जा सकता है। लगभग 22 वर्ष पहले शासकीय अभिलेखों में संपन्न हो चुकी चकबन्दी को लेकर यहां के किसानों में अभी भी उहापोह का दौर चल रहा है। बावजूद इसके कि, बलिया के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा 18 नवम्बर सन् 1997 को ही ‘खाप वेनीपाह’ की चकबन्दी को सम्पन्न करते हुए धारा 52 के प्रकाशन की संस्तुति की जा चुकी है।
     ग्रामसभा मुड़ाडीह के अंतर्गत आने वाले ‘खाप वेनीपाह’ के पश्चिमी छोर पर घर बनाकर रह रहे एक बुजुर्ग किसान सन् 1997 की चकबन्दी पर सवाल उठाते हुए दुःख व्यक्त करते हैं कि, ‘जोत आकार पत्र 45 का वितरण तो याद आता है, लेकिन यहां धारा 52 का प्रकाशन कब कर दिया गया मालूम नहीं पड़ा।’ वहीं एक अन्य किसान जिनको चकमार्ग से लगा हुआ खेत आवंटित हुआ है, मुस्कुराते हुए चेतावनी देते हैं कि देते है कि, ‘भले ही उनकी जमीन पर अन्य काश्तकार किसानी कर रहे हैं, लेकिन उसे अपना समझने की भूल ना करें।’ चकबन्दी के दौरान ‘कब्जा परिवर्तन’की कार्यवाही का कितना अनुपालन हुआ, किसानों की उक्त बातों सें समझा जा सकता है। जबकि, शासकीय अभिलेखों में काफी पहले परिवर्तन हो चुका है।
    चकबन्दी मामलों के जानकार बताते हैं कि, धारा 52 के प्रकाशन की संस्तुति के पहले चकबन्दी प्रक्रिया के कई चरण पूरे किए जाते हैं। इस दरमियान सामने आये सभी प्रकार के मामलों एवं विवादों को निपटा लेने एवं समस्त काश्तकारों को उनके नये खेतों पर जाने हेतु ‘कब्जा परिवर्तन’ की कार्यवाही करवाने के उपरांत ही जिलाधिकारी के हस्ताक्षर से चकबन्दी अधिनियम की धारा 52 के प्रकाशन की संस्तुति की जाती है। धारा 52 के प्रकाशन की संस्तुति को चकबन्दी सम्पन्न होने की घोषणा माना जाता है। इसके साथ ही वहां के नए अभिलेख बनाकर राजस्व प्रशासन को सौंप दिए जाते हैं। तदुपरांत किसानों को खतौनी इत्यादि कागजात संबंधित तहसील से मिलने शुरू हो जाते हैं।’ जैसा कि ‘खाप वेनीपाह’ के काश्तकारों को वर्षों से बलिया की सदर तहसील से खतौनी इत्यादि मिलती है। चकबन्दी प्रक्रिया के लंबित रहने पर यह काम चकबन्दी महकमा करता।
    ज्ञातव्य है कि, चकमार्ग पर अतिक्रमण के एक मामले में सकरात्मक पहल करते हुये एसडीएम सिकंदरपुर ने बीते दिनों राजस्व एवं पुलिस विभाग की संयुक्त टीम गठित करके पकड़ी थाना क्षेत्र के रतसी मेहमापुर में लगभग एक दशक पुराने मामले का निस्तारण कर दिया। ऐसी ही एक बानगी सदर तहसील क्षेत्र के माधोपुर गांव के मामले में भी देखने को मिली, जब एसडीएम सदर अश्वनी कुमार श्रीवास्तव ने तहसीलदार की रिपोर्ट पर नाराजगी जताते हुए नई परती की भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराने का सख्त आदेश निर्गत किया। ‘खाप वेनीपाह’ के मामले में भी एसडीएम सदर से इसी प्रकार की कार्रवाई अपेक्षित है।