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डूबता हुआ गाँव, डूबती हुयी फ़सल,जब डूब रहा है सब कुछ, उम्मीदों के हाथ है किधर ?

डूबता हुआ गाँव, डूबती हुयी फ़सल,जब डूब रहा है सब कुछ, उम्मीदों के हाथ है किधर ? 

डॉ. प्रीति उपाध्याय


बलिया 5 अक्टूबर 2019 ।। टीवी, अख़बार, सोशल मीडिया या फिर गाँव-जवार, चौक-चौबारे, शहर-दर-शहर यही ख़बर है। यत्र-तत्र-सर्वत्र फैले पानी के भीतर झाँकिए, हमारे अन्नदाताओं की कितनी मेहनत, कितने सपने और जाने कितनी उम्मीदों ने इस जल-प्लावन में समाधि ले ली है। जाने कितनों की छत इस पानी में बह गयीं, कितनों की आस धरी की धरी गयीं। हाल ही में मेरा अपने गृह जनपद बलिया जाना हुआ, जाने से पहले बस ये पता था कि बारिश हो रही है, पर मंज़र काफ़ी भयावह था। पूरा जनजीवन ठप्प।



इस जलाधिक्य में, इस बाढ़ में इलाके के कई गाँव के भीतरी हिस्सों में जल भर गया। गाँव के गाँव, खेत के खेत डूब गए, कई घर डूब गए। बाढ़ में केवल वे ही नहीं डूबे, उनके साथ कईयों की जीविका के साधन डूब गए, आस टूटी, आसरे डूबे और डूबीं उनकी उम्मीदें और उन उम्मीदों से जुड़े सपने भी। उत्तर प्रदेश और बिहार में भारी बारिश से आई इस बाढ़ ने एक भयावह दृश्य दिखाया है, जिसके समयबद्ध प्रबंधन पर सरकार का ध्यान होना चाहिए।



प्राकृतिक आपदाएँ आती रहती हैं, परंतु इसके कुशल प्रबंधन से इससे निपटा जा सकता है। अतिजल वृष्टि और उसके कारण आयी बाढ़ जलवायु परिवर्तन का एक परिणाम है और यह जलवायु से जुड़े कारकों में हो रहे परिवर्तन (जैसे वैश्विक तापमान का बढ़ना) और वर्षा आदि से प्रभावित होता है। बाढ़ के कई प्रकार हैं, जैसे नदी की बाढ़, समुद्र तटीय बाढ़, अचानक आयी बाढ़ जो कि अक्सर छोटी अवधि में भारी बारिश के कारण होता है, और शहरी बाढ़ जो कि धीमी बारिश में शहरी इलाक़ों में आती है और हमारे सारे सरकारी व्यवस्थाओं जैसे कि जल निकासी पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाती है।



जलवायु परिवर्तन और बाढ़

हालाँकि जलवायु परिवर्तन को सीधे बाढ़ से जोड़ना एक कठिन प्रयास है, क्यूँकि आपदाओं को पारकर हम आगे तो बाढ़ जाते है पर उसके अतीत में आए बाढ़ और उससे हुए नुक़सान के डेटा को नहीं संजोने की वजह से हम जल्द ही भूल जाते हैं सरकार को जलवायु में आ रहे बदलाव को समझते हुए, बाढ़ प्रबंधन पर त्वरित ध्यान देना चाहिए, जिससे कम से कम जन, धन और फ़सल का नुक़सान हो। बारिश की आवृति और उसके पैटर्न को समझते हुए अतीत में आए बाढ़ के डेटा का विश्लेषण करना होगा। ये विश्लेषण ही आने वाले दिनों में हमें बाढ़ से निपटने की एक कुशल रणनीति बनाने यह सहायक हो होगी। प्रभाव क्षेत्र में आने वाले सम्भावित सामान्य लोगों को इससे निपटने के तरीक़ों से अवगत कराना होगा।



यह तथ्य है: ऐसा नहीं है कि सरकारें, इस समस्या की ओर देखती नहीं, बल्कि वे गैर सरकारी संगठन और अन्य प्राकृतिक आपदा प्रबंधन संगठन साथ मिलकर जब, जहाँ और जिस प्रकार की आवश्यकता होती है, सहायता प्रदान करती है। परंतु अधिकांश मामलों में यह प्रयास स्थानीय समुदायों की जरूरतों को पूरा करने में विफल हो जाती है, विशेष रूप से आपदा के तुरंत बाद। और यदि हम लंबी अवधि में इन सरकारी कोशिशों पर ग़ौर करें तो हम पाते हैं कि सरकार अपनी सीमित वित्तीय क्षमताओं के कारण, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों तक अपर्याप्त पहुंच, जनसाधारण में जागरूकता की कमी और सरकारों की राजनीतिक बाधाओं के कारण यह पूरी तरह से सफल नहीं हो पाता।



बचें कैसे:

सरकार को नीतियाँ बनाते हुए विकसित देशों को देखना चाहिए जैसे अमेरिका और ब्रिटेन। वहाँ भी बाढ़ आते रहते हैं, वे उन्हें रोक नहीं सकते पर जन जीवन को पुनः पटरी पर लाने में उन्हें देर नहीं लगती और इसका कारण है इनका त्वरित प्रबंधन। बाढ़ के ख़तरों को कम करने के प्रक्रम को तुरंत लागू करना मुश्किल है क्यूँकि इनके लिए सरकारी संस्थाओं का दीर्घकालिक विकास आवश्यक है।



अति जलवृष्टि के परिणाम स्वरूप आए बाढ़ को रोकना लगभग असंभव है साथ ही इसके  प्रतिकूल परिणामों को नापना भी काफ़ी मुश्किल भरा होता है। इसलिए, सरकारों को बाढ़ के परिणामों को कम करने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो कि अक्सर काफी चुनौतीपूर्ण होता है, पर कुशल प्रबंधन से यह सम्भव है। नुक़सान की पूरी भरपाई नहीं भी तो कम से कम नुकसान को न्यून तो किया ही जा सकता है। नुक़सान को कम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बने आपदा प्रबंधन संस्थानों से राज्य स्तर के संस्थानों का एक समन्वय बनाना होगा जो यह तय करे कि प्राकृतिक ख़तरों की वजह से हुए पूँजीगत नुक़सान का आकलन कर उसकी पूर्ति करे, शहरी इलाक़ों में जल, मल की निकासी और सफ़ाई का प्रबंध देखे। अतीत में 1998, 2000, 2001, और 2008 में आए हुए इस तरह की जल आपदा से सीख लेते हुए बिजली, दूर संचार, यातायात (सड़क और रेल) के मानकों में फेर बदल लाया जाए तो इस तरह की आपदाओं में ज़्यादा से ज़्यादा देर टिक सके और वापस पटरी पर लाने में कम समय लें।



वैसे तो बाढ़ से जुड़े कटाव नियंत्रण और इसके प्रबंधन का विषय राज्‍यों के क्षेत्राधिकार में आता है। बाढ़ प्रबंधन एवं कटाव-रोधी योजनाएँ राज्‍य सरकारों द्वारा प्राथमिकता के अनुसार अपने संसाधनों द्वारा नियोजित, अन्‍वेषित एवं कार्यान्वित की जाती हैं। इसके लिये केंद्र सरकार राज्‍यों को तकनीकी मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्रदान करती है। राज्य के साथ ही, जिलों/शहरों के स्तर पर भी बनी हुयी संस्थानों जैसे की नगर पालिका की कार्यप्रणाली को सूक्ष्मता से देखा जाए और सम्भावित वर्षा या अन्य किसी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए उन्हें संसाधनों सहित तैयार रहने को आदेश दिया जाए। संरचनात्मक उपाय जैसे कि तटबंध, कटाव रोकने के उपाय, जल निकास तंत्र का सुदृढ़ीकरण, तटीय सुरक्षा के लिये दीवार जैसे उपाय जो कि उस खास भू-आकृतिक क्षेत्र के लिये सर्वश्रेष्ठ हों। गैर-संरचनागत उपाय, जैसे कि आश्रय गृहों का निर्माण, सार्वजनिक उपयोग की जगहों को बाढ़ सुरक्षित बनाना, अंतर्राज्यीय नदी बेसिन का प्रबंधन, बाढ़ के मैदानों का क्षेत्रीकरण इत्यादि। पुनर्वनीकरण, जल निकास तंत्र में सुधार, वाटर-शेड प्रबंधन, मृदा संरक्षण जैसे उपाय।

सरकार को चाहिए कि एक ओर उसे बेहतर वेदर फ़ोरकास्ट (मौसम का पूर्वानुमान) रिपोर्ट समय से पूर्व प्राप्त हो और उसके आधार पर स्थानीय समुदाय जो कि बाढ़ से सीधे प्रभावित होते हैं, उनपर केंद्रित होते हुए सरकार नीतियाँ बनाए, जो किसान-मज़दूर संग आम जनजीवन को, उनकी संपत्ति, वित्त, नौकरी की सुरक्षा, भावनात्मक और स्वास्थ्य की स्थिति और आजीविका को प्रभावित करता है। इसलिए, प्रभावित समुदायों को इन नुक़सानों से उबारने और उनके सामान्य जीवन को जल्द से जल्द पटरी पर वापस लाने के लिए उनको वित्तीय सहायता मुहैया कराने की नीतियाँ गठित कर उनका मनोबल बनाए रखने में आगे बढ़कर  मदद करनी होगी।  सूखा हो या बाढ़, प्राकृतिक आपदाओं का त्वरित और समयबद्ध प्रबंधन ज़रूरी है, सरकार और जनता सबको इसके लिए तैयार रहना होगा। समझना होगा, पर्यावरण में हो रहे इस बदलाव को।

व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि ये वे ही गाँव हैं, वे ही परेशान लोग हैं जो एक मज़बूत सरकार बना कर एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं। सो सरकार की नैतिक ज़िम्मेदारी भी ज़्यादा बनती है। बाढ़ प्रभावित उन सभी युवाओं, महिलाओं और बच्चों के उस मनोबल को जोड़े रखना ही बाढ़ प्रबंधन का एक मजबूत उद्देश्य होना चाहिए। बाढ़ से उबरने की प्रक्रिया में समुदाय के लोगों को पुनरस्थिति प्रक्रिया को बहाल करने के लिए उत्साहित करना होगा, जिसमें सरकार और संस्थानों का विशेष योगदान करना होगा। सहयोग का हर संभव हाथ, आम आदमी के साथ होना चाहिए, वह भी त्वरित और समय पर।

 मेरी समझ से, बाढ़ से लड़ने की क्षमता में सुधार के लिए नीतिगत बदलाव के साथ 'सरकार-सह-समुदाय केंद्रित' दृष्टिकोण की सिफारिश की जानी चाहिए।