Breaking News

बलिया : बीएएमएस चिकित्सक शल्य क्रिया नही कर सकते? के सवाल पर फंसे सीएमओ बलिया , जबाब न देने के कारण माननीय राज्य सूचना आयोग ने किया दंडित , डॉ अरविंद कुमार कुमार सिंह की शिकायत पर हुआ है फैसला

 बीएएमएस चिकित्सक शल्य क्रिया नही कर सकते? के सवाल पर फंसे सीएमओ बलिया , जबाब न देने के कारण माननीय राज्य सूचना आयोग ने किया दंडित , डॉ अरविंद कुमार  कुमार सिंह की शिकायत पर हुआ है फैसला 

मधुसूदन सिंह
बलिया 17 मार्च 2019 ।। माननीय राज्य सूचना आयोग लखनऊ ने बलिया के सीएमओ को पिछले 25 तारीख को जो व्यक्तिगत पेशी का आदेश दिया था , नही उपस्थित होने के कारण अधिकतम 25 हजार रुपये से दंडित करते हुए एक बार पुनः व्यक्तिगत रुप से आयोग के सामने पेश होने का आदेश दिया है । यह आदेश बलिया जनपद के आमघाट निवासी डॉ अरविंद कुमार सिंह की याचिका पर दिया है । डॉ सिंह ने माननीय राज्य सूचना आयोग के समक्ष प्रस्तुत होकर गुहार लगाई थी कि जिलाधिकारी बलिया से जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत जनसूचना मांगी गई थी जिसको डीएम बलिया ने सूचना सीएमओ बलिया से सम्बंधित होनी बताकर सीएमओ बलिया को निर्देशित किया था कि वांछित सूचना डॉ अरविंद कुमार सिंह को उपलब्ध करायी जाय जिसको जब सीएमओ बलिया द्वारा नही दी गयी तो आवेदक ने माननीय राज्य सूचना आयोग में अपील की । आयोग से विधिवत सूचना भेजकर सीएमओ बलिया को तलब किया गया लेकिन सीएमओ बलिया के पास इतनी फुर्सत नही थी कि माननीय आयोग के समक्ष नियत तिथियों को प्रस्तुत होकर अपने पक्ष में बयान/दस्तावेज प्रस्तुत कर सके ।
क्या है पूरा मामला
बता दे कि यह पूरा प्रकरण डॉ अरविंद कुमार सिंह द्वारा मांगी गयी सूचना "बीएएमएस चिकित्सक सर्जरी नही कर सकता है , इस संबंध में किसी प्रकार का आदेश हो तो प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराये" से सम्बंधित है । डॉ सिंह का कहना है कि चूंकि सीएमओ बलिया जो दूसरी पैथी(एलोपैथ) से सम्बंधित है , वे हम आयुर्वेदिक चिकित्सको को कोई भी आदेश देने के लिये सक्षम नही है, न ही यह इनके अधिकार क्षेत्र की बात है । सीएमओ बलिया एलोपैथी में प्रैक्टिस करने वाले चिकित्सको और उनके अस्पतालों के लिये आदेश तो निर्गत कर सकते है लेकिन आयुर्वेद के चिकित्सकों और इनके द्वारा संचालित अस्पतालों पर नही । बता दे कि सारा पेंच आयुर्वेदिक चिकित्सको द्वारा संचालित अस्पतालों में हो रहे प्रसव को रोकने की कवायत से फंसा है । सीएमओ बलिया का कहना है कि आयुर्वेदिक चिकित्सक सर्जरी द्वारा चिकित्सा नही कर सकते है (बीएएमएस डाक्टरो के लिये) जबकि डॉ अरविंद कुमार सिंह का कहना है कि हम ऐसा करने के लिये अधिकृत है ।

क्या कहता है मेडिकल से सम्बंधित एक्ट
बता दे कि भारत सरकार ने ऐलोपैथिक चिकित्सको के पंजीकरण के लिये मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और आयुर्वेदिक चिकित्सको के लिये बोर्ड ऑफ आयुर्वेदिक एंड यूनानी तिब्बी सिस्टम्स ऑफ मेडिसिन(पुराना नाम - भारतीय चिकित्सा परिषद) बनाया हुआ है । ऐलोपैथिक चिकित्सको के लिये जनपद में आदेश निर्गत करने और नियमो का अनुपालन कराने के लिये सीएमओ की नियुक्ति है । जबकि आयुर्वेदिक चिकित्सको से शासनादेशों और कानूनों का अनुपालन कराने के लिये जिला आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी की नियुक्ति है । यही से इस प्रकरण में पेंच उतपन्न हो जाता है । जब सीएमओ आयुर्वेदिक चिकित्सको के लिये आदेश निर्गत करने के लिये सक्षम अधिकारी नही है तो किस अधिकार से आयुर्वेदिक प्राइवेट अस्पतालों पर छापेमारी करते है और अपने यहां रजिस्ट्रेशन का दबाव बनाते है ?
क्या कहता है इंडियन एविडेंस एक्ट 1872
  इंडियन एविडेंस एक्ट 1872  के सेक्शन 45 के 15(2 d) में ऐलोपैथिक चिकित्सको के लिये लिखा है कि give evidence at any inquest or any court of law as an expert under section 45 of the Indian Evidence Act 1872 on any matter relating to medicine .
जबकि इसी एक्ट के तहत प्रदेश सरकार द्वारा जारी यूपी इंडियन मेडिसिन एक्ट 1939 के सेक्शन 39(4 C) में आयुर्वेदिक चिकित्सको के सम्बंध में कहा गया है कि

give evidence at any inquest or any court of law as an expert under section 45 of the Indian Evidence Act 1872 on any matter relating to medicine, surgery or midwifery .
   इसका मतलब साफ है कि कोर्ट में ऐलोपैथिक चिकित्सक सिर्फ मेडिसिन के एक्सपर्ट की हैसियत से ही अपनी गवाही दे सकते है जबकि आयुर्वेद के चिकित्सक मेडिसिन , सर्जरी और प्रसव सम्बन्धी तीनो मामलो में एक्सपर्ट के रूप में अपनी गवाही दर्ज कराने का अधिकार रखते है ।
सर्जरी से सम्बंधित क्या है भ्रांतियां
आम लोगो मे यह भ्रांतियां है कि सिर्फ एलोपैथी चिकित्सक ही सर्जरी कर सकता है जबकि यह सत्य नही है । हमारी भारतीय चिकित्सा पद्धति , ऐलोपैथिक पद्धति से हजारों साल पहले से ही चिकित्सकीय ज्ञान के लिये जानी जाती है , प्रसिद्ध है । भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सक सुश्रुत आधुनिक शल्य चिकित्सा के पितामह माने जाते है । सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व का बताया जाता है । सुश्रुत महान चिकित्सक धन्वंतरि के शिष्य थे । शल्य चिकित्सा की शिक्षा सुश्रुत ने काशीपति दिवोदास से प्राप्त की थी । सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा से सम्बंधित एक "सुश्रुत संहिता "की भी रचना की थी जो आज भी आयुर्वेद में शिक्षा ग्रहण करने वाले प्रशिक्षु चिकित्सको को पढ़ायी जाती है । इस संहिता के अनुसार सुश्रुत छठी शताब्दी ईसा पूर्व में शल्य क्रिया में प्रयुक्त होने वाले 125 प्रकार के औजारों की खोज ही नही किये थे ,शल्य क्रिया के दौरान प्रयोग भी करते थे । सुश्रुत 300 प्रकार की शल्य क्रियायें करते थे । शल्य क्रिया के दौरान रोगी को दर्द न हो इसके लिये सुश्रुत या तो रोगी को मद्यपान कराते थे या अपने द्वारा बनायी गयी विशेष औषधि पिलाते थे यानी संज्ञाहरण (एनथीसिया -निश्तेचक) की विधि भी भलीभांति जानते थे । यही नही सुश्रुत जहां अपने समय मे शल्य क्रिया के द्वारा सुरक्षित प्रसव कराते थे वही नेत्र शल्य क्रिया द्वारा मोतियाबिंद का इलाज करते थे तो  मधुमेह और मोटापे से सम्बंधित बीमारियों का भी उपचार करते थे । इनके शिष्य चरक भी आयुर्वेक के प्रसिद्ध चिकित्सक हुए और इनके द्वारा लिखित चरक संहिता आयुर्वेद चिकित्सा में वरदान कहलाती है । इससे स्पष्ट हो जाता है कि सुश्रुत आयुर्वेद के चिकित्सक होते हुए भी जहां 300 प्रकार की शल्य क्रियाये करते थे , एनथीसिया का कार्य करते थे , कास्मेटिक सर्जरी करते थे , मोतियाबिंद का ऑपरेशन करते थे वही मधुमेह और मोटापे जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज भी करते थे । यही नही शल्य क्रिया से प्रसव भी कराने में उनको महारथ हासिल थी । अब ऐसे में सुश्रुत संहिता और चरक संहिता जो सरकार द्वारा संचालित आयुर्वेदिक कालेजो में पढ़ाई जाती है तो इसको पढ़कर निकले चिकित्सक शल्य क्रियाये क्यो नही कर सकते है ?
जबकि एलोपैथ में फिजियन सिर्फ दवाये लिख सकते है , सर्जन सिर्फ सर्जरी कर सकते है वो भी बिना एनथीसिया विशेषज्ञ चिकित्सक के नही , वही सभी सर्जरी के लिये अलग अलग विशेषज्ञ है । जबकि एक आयुर्वेद के चिकित्सक को न तो एनथीसिया विशेषज्ञ चिकित्सक की , न ही किसी अन्य चिकित्सक के सहयोग की आवश्यकता होती है ।