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बड़ा सवाल : गंगा की बेटी' बनकर प्रियंका गांधी लगा पाएंगी कांग्रेस की नैया पार ?





18 मार्च 2019 ।।
(राजकुमार पांडेय)
देखने सुनने में भले ही लगे कि नाव से चुनावी समर की शुरुआत करके कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अलग तरीके से प्रचार करने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन, सिर्फ यही हकीकत और संदेश नहीं है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपनी नाव को किनारे लगाने के लिए सोची समझी रणनीति के तहत ऐसा कर रही है.

उत्तर प्रदेश और बिहार की सामाजिक और राजनीति जीवन में गंगा बहुत अधिक जुड़ी हुई है. यहां के लिए गंगा नदी न होकर आज भी यहां के जीवन में रची बसी एक परंपरा और रोजी रोटी का जरिया भी है. शायद यही कारण है कि पिछले चुनाव में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस से चुनावी मैदान में उतरे थे तो उन्होंने भी कहा था कि गंगा मैया ने उन्हें बुलाया है. इस बार प्रियंका गांधी ने भी गंगा की दुहाई दी है. गंगा की धारा का प्रयोग कर वे दो तरीके से पार्टी की नाव किनारे तक लगाना चाह रहीं है.

प्रियंका गांधी (File Photo)


वरिष्ठ पत्रकार अंबिकानंद सहाय के शब्दों में– “प्रियंका की यात्रा बहुत सोची समझी रणनीति है. दरअसल मोटे तौर पर भारतीय हिंदू संस्कृति के चार खंभे कहे जा सकते है. गंगा-यमुना, राम और कृष्ण. हिंदू जनमानस किसी न किसी रूप में इनसे जुड़ा रहता है. अब अगर कहा जाए कि दक्षिणपंथी दलों ने कांग्रेस को मुस्लिमों की तुष्टि करने वाली पार्टी करार देकर ही कमजोर किया तो बहुत गलत नहीं होगा. हकीकत जो भी हो, कांग्रेस के लिए एक परसेप्शन ऐसा बन गया था.”

अंबिका नंद सहाय का ये भी मानना है राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव के दौर में इसे समझा और कांग्रेस के तौर तरीके को बदला. साथ ही वे ये भी जोड़ते हैं कि कांग्रेस इस साफ्ट हिंदुत्व से मुलसमान भी नाराज नहीं होंगे. क्योंकि उन्हें ज्यादा दिक्कत बीजेपी से है. उनकी इस दलील से कांग्रेस मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई भी सहमत हैं.
किदवई का कहना है- “ हमारे समाज में अगर किसी के प्रति हमलावर हुए बगैर कोई अपने धर्म कर्म का पालन करता है तो उसे सम्मान भी मिलता है. चाहें वो चारों धाम करने वाला धर्मनिष्ठ हिंदू हो या फिर हज करने वाले हाजी साहेब.”


इस लिहाज से ये कहा जा सकता है कि कांग्रेस अपने पारंपरिक ब्राह्मण और हिंदू मतदाताओं को आवाज देने की कोशिश कर रही है. साथ ही कांग्रेस की कोशिश ये भी है कि गैरयादव पिछड़ों को अपने साथ किया जाए. इसमें मल्लाह, निषाद और काछी जैसी जातियां बहुत महत्वपूर्ण हैं. पिछड़ों के एक बड़े वर्ग कुर्मी को जोड़ने के लिए कांग्रेस ने पहले ही हार्दिक पटेल को अपने पाले में कर लिया है. इस लिहाज से गंगा यात्रा निषादों को जोड़ने के लिए भी कारगर हो सकती है.

प्रियंका गांधी (File Photo)


निषादों में 15-16 उपजातियां शामिल हैं. जिसमें केवट, मल्लाह, बिन्द, कश्यप, धीमर, मांझी, कहार, राजभर, भर, प्रजापति, कुम्हार, मछुआ, तुरैहा, गौड़, बाथम, मझवार, किसान, लोध, महार, खरवार, गोडीया, रैकवार, सोरहीया, खुलवट, चाई, कोली, भोई, कीर, तोमर, भील, जलक्षत्री, धुरीया शामिल हैं.

गोरखपुर के सांसद प्रवीण निषाद का दावा है कि निषाद जाति का यूपी की करीब 100 विधानसभा सीटों पर जबकि 20 लोकसभा सीटों पर प्रभाव माना जाता है, इन्होंने ही सीएम योगी आदित्यनाथ से उपचुनावों में उनका गोरखपुर का किला जीत लिया था

दूर से देखने पर उत्तर प्रदेश में एक गठबंधन दलित और पिछड़ों का बन गया जान पड़ता है. इस प्रतिस्पर्धा के दौर में इन दोनों समुदायों में तमाम जातियां पिछड़ गई. वे पूरे समुदाय के साथ वोट नहीं कर रही है. पिछले चुनाव में उन्होंने बीजेपी का साथ दिया था. इस बार वे असंतुष्ट हैं और कांग्रेस कोशिश करे तो ये समुदाय उनके पाले में जा सकते हैं. राशीद किदवई, वरिष्‍ठ पत्रकार

अंबिका नंद सहाय भी इससे सहमति जताते हुए एक पुरानी कहावत दुहराते हैं. बकौल अंबिका नंद सहाय- “बिहार के दिग्गज नेता कर्पूरी ठाकुर कहते थे कि कांग्रेस का आधार जिस चौखंभे पर टिका है उसमें महिलाएं, ब्राह्मण, मुसलमान और अनुसूचित जाति के मतदाता हैं.”


उनका कहना है कि उस समय पिछड़ों का आज के जैसा ताकतवर संगठन नहीं था लिहाजा उनमें से भी ज्यादातर कांग्रेस के साथ होते रहे. अब भले ही वे अलग हो गए हों लेकिन कांग्रेस गैर यादव पिछड़ों और गैर जाटव एससी को अपने पाले में ला कर जो ताकत दिखाएगी, वही तय करेगा कि ब्राह्मण और मुसलमान मतदाता उसके साथ आते हैं या नहीं.

हालांकि ये भी एक हकीकत है कि कांग्रेस को इस चुनाव से ज्यादा फिक्र 2022 के चुनावों की है और नाव पर निकली कांग्रेस की ये योद्धा उसी की पेशबंदी करती दिख रही है ।
(साभार न्यूज18)