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बलिया : गरीब सवर्णों को आरक्षण: मोदी सरकार की राह में हैं ये मुश्किलें









नईदिल्ली 7 जनवरी 2019 ।।
नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने लोकसभा चुनावों से पहले बड़ा कदम उठाते हुए पिछड़े सवर्णों को आर्थिक आधार पर नौकरियों और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने को मंजूरी दी है. हालांकि इस फैसले के कानून बनने में कई संवैधानिक अड़चने हैं. अगर यह फैसला लागू होता है तो आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा हो जाएगी जो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्‍लंघन होगा. 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए जाति आधारित आरक्षण को 50 प्रतिशत तक सीमित कर दिया था. इसमें कोर्ट ने कहा था, 'समानता के सिद्धांत को नुकसान पहुंचाने के लिए आरक्षण या प्राथमिकता के किसी नियम को प्रबलता से लागू नहीं किया जा सकता.'

वर्तमान में ओबीसी को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति(एससी) को 15 और अनुसूचित जनजाति(एसटी) को 7.5 प्रतिशत आरक्षण मिलता है. इस तरह से कुल 49.5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. यदि केंद्र सरकार का गरीब सवर्णों को आरक्षण का फैसला लागू होता है तो यह आंकड़ा 59 प्रतिशत के पार चला जाएगा ।






संविधान की धारा 15 और 16 में संशोधन किया जाएगा जिससे कि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्‍थानों में नए समूह को आरक्षण मिल सके.

लोकसभा के पूर्व सचिव और संविधान विशेषज्ञ पीडीपी अचारी का कहना है कि बिल में यह बताना होगा कि आर्थिक आधार पर पिछड़े सवर्ण कौन हैं और यदि इससे 50 प्रतिशत की सीमा टूटती है तो फिर इसे संविधान संशोधन के जरिए पास कराना होगा. इसके बाद न्‍यायपालिका के दायरे में आने से बचाने के लिए संविधान की नौवीं अनुसूची में डालना होगा.

तमिलनाडु में राज्‍य विधानसभा ने तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और जनजाति (राज्‍य सरकार के तहत आने वाली नौकरियों या नियुक्तियों और शैक्षणिक संस्‍थान में सीटों का आरक्षण) कानून 1993 पास किया था जिसके चलते आरक्षण की सीमा 69 प्रतिशत तक हो गई.

1994 में संसद ने 76वें संविधान संशोधन को पास कर इस कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल दिया. इस केस का उदाहरण देते हुए बिहार के उद्योग मंत्री जय कुमार सिंह ने गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण के रूप में 'न्‍याय' मांगा था. सिंह ने कहा था कि गरीब सवर्णों को मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत आरक्षण दिया जाए.

साल 2011 में बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने स्‍वर्ण पिछड़ा आयोग बनाया था. इस आयोग का काम गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के तरीकों का अध्‍ययन करना था.

बता दें कि संविधान के अनुसार, जिन नागरिकों की सालाना आय एक लाख रुपये से कम है और जो एससी, एसटी और ओबीसी से नहीं आते हैं वे आर्थिक पिछड़े माने जाएंगे.