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बलिया : शिक्षक ही रखता है शिक्षार्थी के समग्र विकास की नींव--डा० गणेश

  शिक्षक ही रखता है शिक्षार्थी के समग्र विकास की नींव--डा० गणेश







बलिया 13 जनवरी, 2019 ।।   नागा जी सरस्वती विद्या मंदिर, माल्देपुर, बलिया में डी० एल० एड० ( ब्रिज कोर्स) का समापन समारोह अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ । इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि  गुलाब देवी महिला महाविद्यालय बलिया के सहायक प्राध्यापक डा० दिनेश सिंह एवं विशिष्ट अतिथि  सतीश चन्द्र महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाध्यक्ष डा० अंगद सिंह थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य डा० गणेश कुमार पाठक ने किया।
         कार्यक्रम का शुभारम्भ सर्वप्रथम दीप प्रज्जलन कर  एवं माँ  सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर हुआ। इसके बाद ब्रिज कोर्स के शिक्षक राधेश्याम मिश्र द्वारा कार्यक्रम एवं प्रशिक्षण के स्वरूप को प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम के बीच- बीच में प्रशिक्षणार्थियों द्वारा गीत, कविता एवं भाव को भी प्रस्तुत किया गया।
       कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित करते हुए डा० दिनेश सिंह ने कहा कि दूरस्थ शिक्षा ने शिक्षक बनने का रास्ता सुगम कर दिया है। ब्रिज कोर्स इसी का एक माध्यम है। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से कहाकि वे सच्चे शिक्षक बनकर अपने शिष्यों का सही मार्गदर्शन कर उनके भविष्य निर्माण में अहम् भूमिका निभाएँ। विशिष्ट अतिथि डा० अंगद सिंह ने कहा कि शिक्षक ही समाज को सही रास्ता दिखा सकते हैं। प्रशिक्षणार्थी सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें विद्या मंदिर प्रशिक्षण पूर्ण करने हेतु मिला है।
      अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डा० गणेश कुमार पाठक ने कहा कि ब्रिज कोर्स ने प्रशिक्षणार्थियों के लिए शिक्षक बनने का रास्ता खोल दिया है। ब्रिज कोर्स में शिक्षा के नियमों, विधियों, शिक्षा योजना आदि विषयों पर शिक्षक एवं शिक्षार्थी में परस्पर विचार- विमर्श होता है ताकि विषय का पुनर्रीक्षण किया जा सके और सही तथ्यों से प्रशिक्षणार्थियों को अवगत कराया जा सके।
     डा० पाठक ने कहा कि ब्रिज कोर्स के प्रशिक्षणार्थियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि इनमें से कुछ तो शिक्षक बन चुके हैं और कुछ शिक्षक बनने की प्रक्रिया में हैं, इसलिए उन्हें अभी से अपने अन्दर शिक्षक के गुणों का समावेश कर लेना चाहिए। कहा कि ,शिक्षक का तात्पर्य होता है- 'शि' मतलब शिष्य को शिखर पर पहुँचाने वाला, 'क्ष' मतलब क्षमाशील अर्थात शिष्य के गलतियों को भी क्षमा करने वाला और 'क' होता है शिष्य को उसका कर्तव्य बोध कराने वाला। इसके साथ ही साथ शिष्य एवं शिक्षक दोनों को नम्र, समर्पित, यथार्थवादी, अध्ययनशील, परिश्रमी, चिन्तनशील एवं क्रियाशील होना चाहिए। इन गुणों के साथ ही साथ एक शिक्षक को  चरित्रवान, नैतिक गुणों से युक्त, उदारवादी, सहनशील , सौम्य, सज्जन, सामंजस्य स्थापित करने वाला एवं सद्गुणी होना चाहिए।कहने का तात्पर्य यह है कि एक शिक्षक में सभी गुणों का समावेश होना चाहिए तभी ऐसा शिक्षक अपने शिष्य का सर्वांगीण विकास कर सकता है और यदि शिष्य का समग्र विकास हो गया तो उससे परिवार का विकास होगा, फिर समाज का विकास होगा और अंततः देश का विकास होगा। एक शिक्षक को समाज में होने वाली सामाजिक बुराईयों पर भी पैनी नजर रखनी चाहिए और उसे दूर करने हेतु प्रयास करना चाहिए। इसमें शिक्षक एवं शिष्य दोनों अपनी अहम् भूमिका निभा सकते हैं।


      कार्यक्रम के अंत में विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री अरविन्द सिंह चौहान द्वारा सभी अतिथियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए प्रशिक्षणार्थियों को आशिर्वचन प्रदान किया गया। इस अवसर पर नागाजी सरस्वती विद्यामंदिर,माल्देपुर के शिक्षक राधेश्याम त्रिपाठी एवं निर्भय उपाध्याय द्वारा दिए गए प्रशिक्षण कार्यों की प्रशिक्षणार्थियों द्वारा भूरि - भूरि प्रशंसा की गयी तथा इन शिक्षकों सहित सभी अतिथियों एवं विद्यालय के प्रधानाचार्य को भी पुष्प गुच्छ एवं अंगवस्त्रम् से सम्मानित किया गया।