Home
/
Unlabelled
/
अधूरी प्रेम कहानी : मुस्लिम युवक से विजयलक्ष्मी को हुआ प्यार , दीवार बन गये नेहरू , नही होने दी शादी
अधूरी प्रेम कहानी : मुस्लिम युवक से विजयलक्ष्मी को हुआ प्यार , दीवार बन गये नेहरू , नही होने दी शादी
Love Story: विजयलक्ष्मी को मुस्लिम युवक से था प्यार, नेहरू परिवार ने मोहब्बत में पैदा की दीवार
Sanjay Srivastava

11 नवम्बर 2018 ।।
जवाहर लाल नेहरू की बहन और संयुक्त राष्ट्र में भारत की पहली राजदूत विजयलक्ष्मी पंडित जब 19 साल की थीं, तो उन्हें एक मुस्लिम युवक से प्यार हो गया. वो उससे शादी करना चाहती थीं, लेकिन पूरा नेहरू परिवार इसके खिलाफ था. परिवार के दबाव में न केवल विजयलक्ष्मी को इरादा बदलना पड़ा, बल्कि उस मुस्लिम युवक को भी आनन-फानन में इलाहाबाद से बाहर भेज दिया गया.
ये मुस्लिम युवक कोई साधारण शख्स नहीं था, बल्कि बेहद प्रतिभाशाली और पढ़ा-लिखा शख्स था. जिसने बाद अमेरिका में भारत की आजादी के पक्ष में बड़ा कैंपेन चलाया. गांधी उससे बहुत स्नेह करते थे. बाद में खुद जवाहरलाल नेहरू ने इस युवक को मिस्र का राजदूत बनाया था. उसके निधन के बाद बताया जाता है कि भारत में उसकी कब्र पर विजयलक्ष्मी पंडित फूल चढ़ाया करती थीं.
इस युवक का नाम है सैयद हुसैन. वह बंगाल के बहुत प्रतिष्ठित और समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखते थे. उच्च शिक्षित थे. जब मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद से अंग्रेजी में 'इंडिपेंडेंट' के नाम से अखबार शुरू करना चाहा, तो उन्हें एक तेजतर्रार और समझदार एडिटर की जरूरत थी.
सैयद हुसैन कलकत्ता में पैदा हुए थे. उनके पिता सैयद मुहम्मद जाने-माने विद्वान थे और तब बंगाल के रजिस्ट्रार जनरल थे. उनके बाबा नवाब लतीफ खान बहादुर ने बंगाल के शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया था.
असरदार भाषण देते थे हुसैन
सैयद हुसैन बहुत मेधावी थे. खासकर विषयों पर उनकी पकड़ और असरदार भाषण देने की कला हर किसी को उनका मुरीद बना देती थी. 1909 में वो अमेरिका में कानून की पढ़ाई करने गए. इसके बाद इंग्लैंड में वो भारतीय छात्रों के बीच बहस और चर्चाओं में लोकप्रिय होने लगे. 1916 में उन्होंने तब के महान संपादक माने जाने वाले बीजी हार्निमन के अखबार 'बॉम्बे क्रॉनिकल' को ज्वॉइन किया. बॉम्बे के होम रूल लीग में भी उनकी सक्रियता गजब की थी. 1918 में होम रूल ने उन्हें सेक्रेटरी बनाकर इंग्लैंड भेजा.
मोतीलाल नेहरू के अखबार के संपादक बने
कुल मिलाकर कहने की बात ये है कि सैयद का व्यक्तित्व और काम ऐसा था कि उस समय देश के सभी बड़े नेता सिर्फ उन्हें जानते नहीं थे, बल्कि उनके कायल भी थे. यहां तक गांधी खुद उनसे बहुत स्नेह करते थे. जब मोतीलाल 'इंडिपेडेंट' के लिए संपादक तलाश रहे थे. तब किसी ने उन्हें सैयद का नाम सुझाया. मोतीलाल की पेशकश पर सैयद तुरंत इलाहाबाद आ गए और अखबार के संपादक बन गए.
देखते ही देखते अपनी ध्यान खींचने वाले हेडिंग्स और तेजतर्रार संपादकीय के लिए 'इंडिपेंडेंट' चर्चित अखबार बन गया. तब विजयलक्ष्मी 19 साल की थीं. वो रोज अखबार के ऑफिस आती थीं. अखबार के संपादन के कामों को सीखने की कोशिश कर रही थीं. हुसैन 31 साल के थे. उस दौर में कोई भी हुसैन की स्मार्टनेस, उनके व्यक्तित्व और जानकारियों से कायल हो सकता था.

विजयलक्ष्मी प्यार में पड़ गईं
विजयलक्ष्मी जल्द ही हुसैन के प्यार में पड़ गईं. हुसैन ने उनके इस प्यार को शुरू में हतोत्साहित करने की कोशिश की, लेकिन ऐसा लंबे समय तक कर नहीं पाए. धीरे-धीरे इस बात की चर्चा होने लगी. विजयलक्ष्मी इस प्यार को लेकर इतनी गंभीर थीं कि वह हुसैन से शादी करना चाहती थीं. उन्होंने अपने परिवार में साफ-साफ ये जाहिर भी की थी कि वह हुसैन से प्यार करती हैं.

हालांकि, ये बात उनके पिता और भाई जवाहरलाल दोनों को पसंद नहीं आई. क्योंकि दूसरे धर्म में शादी पर उनकी सहमति नहीं थी. उन्होंने इसे जाहिर भी किया लेकिन इस पर जब विजयलक्ष्मी अड़ी रहीं, तो हुसैन के लिए इलाहाबाद में बने रहने में दिक्कतें आने लगीं. मोतीलाल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हुसैन के इलाहाबाद में रहने से हालात बेकाबू हो सकते हैं. लिहाजा उन्होंने हुसैन से अखबार और इलाहाबाद दोनों को छोड़ने का अनुरोध किया.
अफेयर लगातार चर्चाओं में रहा
उन दिनों विजयलक्ष्मी और हुसैन का अफेयर कई सालों तक नेशनल और इंटरनेशनल प्रेस में छाया रहा. 1920 में हुसैन ने इलाहाबाद छोड़ दिया. इसके बाद भी दोनों की शादी की अटकलें उड़ती रहीं. उस समय गांधी भी इस शादी के खिलाफ थे. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि अलग-अलग धर्म के लोगों को आपस में शादी करने पर सामाजिक स्तर पर कई दिक्कतें पैदा हो सकती हैं. 1920 में हुसैन खिलाफत आंदोलन का हिस्सा बनकर इंग्लैंड चले गए. वहीं रहकर भारतीय स्वाधीनता की आवाज को बल देने लगे. लंदन में वो कांग्रेस के आधिकारिक प्रकाशन के संपादक भी बने. ब्रिटेन से फिर वो अमेरिका चले गए. जहां वो 1946 तक रहे. बीच में 1937 में कुछ समय के लिए जरूर भारत आए थे.
विजयलक्ष्मी की शादी मराठी ब्राह्मण बैरिस्टर से हुई
इसके बाद नेहरू परिवार ने विजयलक्ष्मी के लिए योग्य वर की तलाश शुरू की. 1921 में महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण बैरिस्टर रंजीत सीताराम पंडित से उनकी शादी कर दी. सीताराम केवल बैरिस्टर ही नहीं, बल्कि विद्वान भी थे. उन्होंने कल्हण के महाकाव्य 'राजतरंगिनी' का अनुवाद संस्कृत से अंग्रेजी में किया था. विजयलक्ष्मी के तीन बच्चे हुए. लेकिन शायद उनके दिल से हुसैन कभी नहीं निकल सके.
इस अफेयर के बाद भी भारत की आजादी को लेकर हुसैन के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. वह अमेरिका चले गए और वहां जाकर लगातार भारत की आजादी को लेकर वहां के नेताओं के बीच माहौल तैयार करते रहे. लगातार वहां के तमाम मंचों पर भारत की आजादी को लेकर लेक्चर देते रहे. बाद में अमेरिका ने भारत को आजाद करने को लेकर ब्रिटेन पर जिस तरह दबाव डाला, उसके पीछे हुसैन की अमेरिका में की गई लॉबिंग काफी अहम थी.

अमेरिका में उनकी भाषण कला और बुद्धिमत्ता की खासी तारीफ की जाती थी. 'लॉस एंजिल्स टाइम्स' ने उन्हें टैगोर के बाद अमेरिका आने वाला अति विलक्षण भारतीय बताया, जबकि न्यूयॉर्क के फॉरेन पॉलिसी एसोसिएशन ने कहा, पांच सालों में हमारी कांफ्रेंसेज में जिन सैकड़ों लोगों ने लेक्चर दिए, उनमें कोई भी हुसैन जैसा ब्रिलिएंट नहीं था.
अमेरिका में साथ देखे जाने लगे थे
नेहरू के पर्सनल सचिव एमओ मथाई ने अपनी किताब में लिखा, 1945 में हुसैन और विजयलक्ष्मी अमेरिका में लगातार साथ देखे जाने लगे. गांधीजी को अमेरिका में रहने वाले भारतीयों से खत मिलते थे कि हुसैन हर उस जगह होते हैं जहां विजयलक्ष्मी होती हैं. हुसैन एक तरह गांधीजी के परम भक्त तो थे ही दूसरी ओर नेहरू के मित्र भी थे. जब भारत आजाद हुआ तो नेहरू ने ही हुसैन को मिस्र का पहला भारतीय राजदूत बनाया. उसी दौरान विजयलक्ष्मी पंडित को सोवियत संघ का राजदूत बनाकर भेजा गया.
1949 में हुसैन का निधन
हुसैन ताजिंदगी अकेले ही रहे. उन्होंने कभी शादी नहीं की. मिस्र में राजदूत रहने के दौरान लोग उनके रहनसहन के कायल थे. उन्हें 1949 में अमेरिका का राजदूत बनाने की घोषणा कर दी गई थी. इसी बीच मिस्र के होटल में हार्टअटैक से उनका निधन हो गया. वहां राजकीय सम्मान के साथ उन्हें विदाई दी गई. काइरो की एक सड़क का नाम भी उनके नाम पर रखा गया.
1949 में हुसैन का निधन
हुसैन ताजिंदगी अकेले ही रहे. उन्होंने कभी शादी नहीं की. मिस्र में राजदूत रहने के दौरान लोग उनके रहनसहन के कायल थे. उन्हें 1949 में अमेरिका का राजदूत बनाने की घोषणा कर दी गई थी. इसी बीच मिस्र के होटल में हार्टअटैक से उनका निधन हो गया. वहां राजकीय सम्मान के साथ उन्हें विदाई दी गई. काइरो की एक सड़क का नाम भी उनके नाम पर रखा गया.
हुसैन के निधन की खबर ने विजयलक्ष्मी को भी सदमे में ला दिया. कहा जाता है कि जब विजयलक्ष्मी जिंदा रही वो हुसैन की कब्र पर बराबर जाती रहीं और लगातार उस पर फूल चढ़ाती रहीं. उनके मन का एक कोना हमेशा हुसैन के लिए धड़कता रहा.
(साभार न्यूज18)
अधूरी प्रेम कहानी : मुस्लिम युवक से विजयलक्ष्मी को हुआ प्यार , दीवार बन गये नेहरू , नही होने दी शादी
Reviewed by बलिया एक्सप्रेस
on
November 11, 2018
Rating: 5
